मासिक साधना उपयोगी तिथियाँ

व्रत त्योहार और महत्वपूर्ण तिथियाँ

25 फरवरी - माघी पूर्णिमा
03 मार्च - रविवारी सप्तमी (शाम 06:19 से 04 मार्च सूर्योदय तक )
06 मार्च -
व्यतिपात योग (दोपहर 14:58 से 07 मार्च दिन 12:02 मिनट तक)
08 मार्च - विजया एकादशी (यह त्रि स्पृशा एकादशी है )
09 मार्च - शनि प्रदोष व्रत
10 मार्च - महा शिवरात्री (निशीथ काल मध्यरात्री 12:24 से 01:13 तक )
11 मार्च - सोमवती अमावस्या (
सूर्योदय से रात्री 1:23 तक )
11 मार्च - द्वापर युगादी तिथि
14 मार्च - षडशीति संक्रांति (पुण्यकाल शाम 4:58 से
सूर्योदय तक)
19 मार्च - होलाष्टक प्रारम्भ
20 मार्च - बुधवारी अष्टमी (
सूर्योदय से दोपहर 12:12 तक)
23 मार्च - आमलकी एकादशी
24 मार्च - प्रदोष व्रत
26 मार्च - होलिका दहन
27 मार्च - धुलेंडी , चैतन्य महाप्रभु जयंती
29 मार्च - संत तुकाराम द्वितीय
30 मार्च - छत्रपति शिवाजी जयन्ती

रविवार, 1 मार्च 2009

आसक्ति मिटाने के ७ उपाय - स्वामी सुरेशानन्द जी

दिसम्बर २००८ पूनम दर्शन दिल्ली में आयोजित पूनम दर्शन सत्संग में स्वामी सुरेशानन्द जी ने आसक्ति मिटाने के ७ उपाय बताये जो कि इस प्रकार है

आसक्ति मिटाने के ७ सरल उपाय हैं

१- दृढ निश्चय कर लिया जाये कि जो गुरुजी कहेंगे वो मुझे करना ही है बस।

२- वासना पूर्ति के मार्ग में चलने वालों का हम संग नही करेंगे। चाहे कोई भी क्युं न हो, वासना पूर्ति के मार्ग में जो जा रहे है उनकी दोस्ती नही करेंगे।

३- कभी भी हम लोग ऐसा विचार नही करेंगे कि वासना पूर्ति करने वाले लोग सुखी है। बडे बंगले में रहते है , बडी कार में घूमते हैं, खाक सुखी है सुखी वो है भगवान कृष्ण ने गीता में बताया हैं काम के वेग को और क्रोध के वेग को सहन करते की शक्ति रखता है दम रखता है भगवान कहता है कि बो मेरे मत में सुखी है, "सहयोगी सहसुखी नरः" आप गीता में पढिये ५वे अध्याय में, भगवान नें यह नही कहा है कि काम विकार नही आयेगा क्रोध विकार आयेगा ही नही, लोभ कभी आयेगा ही नही, भगवान ने कहा कि काम का वेग क्रोध का वेग, इस वेग में जो बह नही जाता उसको सहन करने का दम अपने पास रखता है, भगवान श्रीकृष्ण कहते है कि वो मेरे मत में सुखी है और मेरे मत में वो योगी है।

४- अपने भोजन में पवित्रता सदैव रखी जाये। लहसुन प्याज निश्चित ही तमो गुण बढाने वाली चीजें है परन्तु कोई बुजुर्ग है किसी को शारीरिक कोई तकलीफ़ है, खाँसी की तकलीफ़ है या श्वास की बिमारी है वो अगर आदमी थोडा लहसुन, प्याज खा ले तो उसको कोई पाप नही लगेगा, घुटने का दर्द रहता है किसी को, वात प्रकोप रहता है न वायु का तो शरीर में दर्द रहता है घुटनों में कमर में तो किसी को ऐसा दर्द हो घुटनों आदि में तो वह औषधवश लहसुन खा सकता है, अंगेजी दवाई खाये इससे तो अच्छा है की वो थोडी सी हरी लहसुन खा ले, इसका मतलब से नही कि जो जवान है वो लोग सोचे कि हम भी लहसुन प्याज खाये हा शारीरिक तकलीफ़ है तो ठीक है। लोग बडे कमाल के है शरीर का नाश हो ऐसी चीज नही खाते है लेकिन बुद्धि नाश हो जाये ऐसी चीज पैसे देकर खाते हैं। इसलिये भगवत गीता के ६ठे अध्याय से १७वे श्लोक में और १७वें अध्याय से ८वे, ९वे, और १०वे श्लोक में भगवान श्रीकृष्ण ने आहार सम्बन्धी बहुत बढिया बातें बताई है।

५- अपने जीवन में स्थान की पवित्रता रखी जाये, ऐसी जगह में न जाये जहाँ जाने से रजोगुण बढे और तमो गुण बढे। ऐसी जगह जाने में आग्रह रखें जहाँ जाने से सत्व गुण बढें, भक्ति बढें, भगवान के नाम में रुचि बढें।

६- कभी भी अपना समय बेकार की मेगजीन पढ्ने में, बेकार की टीवी सीरीयल देखने में, बेकार की बातों में न गँवाया जायें। समय मिल गया तो माला से या मन से जप शुरु कर दिया जाय। जप हो गया तो सत्संग की कोई पुस्तक पढी जाय। वो भी पढ ली तो शान्त बैठे और श्वास बाहर-भीतर जाये उस पर जप किया जाये,

७- भगवान कपिल बताते है माता देवहूति को कि माँ आसक्ति निश्चित रूप से दुखः देने वाली है परन्तु वही आसक्ति अगर भगवान और भगवत्प्राप्त गुरु में होती है तो वो तारने वाली होती हैं।

स्रोत: स्वामी सुरेशानन्द जी वीसीडी भाग ४ व ५ - पूर्णिमा दर्शन रोहिणी (दिल्ली)

शुक्रवार, 20 फ़रवरी 2009

गुरु-दक्षिणा

दुबईवासियों से पूज्य गुरुदेव ने मांगी गुरु-दक्षिणा

हम लोग अपनी संस्कृति गँवा रहे है। नही नही, यूरोप में चर्चा चली थी विद्वानों की कि हमारे देश की उन्नति और इज्जत, शान-बान कैसे बरकार रहे तो जब तक हम अपनी भाषा को पकडे रहेंगे, अपनी रीति, रस्मों-रिवाजों को पकडे रहेंगे तब तक हमें कोई नीचा दिखा सकता है और जिस दिन हम दूसरों की भाषा और दूसरों के रीति-रस्मों के गुलाम होंगे वह जाति धीरे-धीरे नष्ट हो गयी। वह जाति धीरे-धीरे गुलाम हो गई। कई ऐसे टापू है जो अभी भी अपनी भारतीय संस्कृति को संजोये हुये है। वहाँ विदेशों में पति को पति बोलती है नारी और पत्नी को धर्म-पत्नी बोलता है पति, पुत्र को पुत्र बोलता है पिता और पिता को पिताश्री बोलता है पुत्र और यहाँ पाप्पा, मम्मी, डैडी-डैडा़....... अब बदलो कुछ, जय राम जी की....... आप तो बदलोगें आपके संपर्क में आने वाले भी बदलेंगे।

मैं दुबई गया था। एक हिन्दु और एक मुसलमान दोस्त आपस में टेलीफोन में बात कर रहे हैं। मुसलमान फोन उठाता हैं तो बोलता है "वालेकम-अस-सलाम" और हिन्दु हरि ॐ नही बोलता है, राम राम नही बोलता है, जय भारत नही बोलता, जय हिन्दी नही बोलता है बोलता है "हाय.... हाय.... बाय..... बाय....." मैने दुबई के सत्संग में पूर्णाहुति के समय बोला कि दक्षिणा तो तुम से मैं लूँगा और दक्षिणा में तुमसे ये वचन लेता हूँ कि जब भी टेलीफोन करोगें बेटे या तुम तो "हरि ॐ" या "राम राम" से शुरुवात करना। हाय... बाय... छोडो, वो जब सलामालेकम नही छोडते तो तुम "हरि ॐ" या "राम-राम" क्यों छोड़तें हो भाई।

हिन्दु दोस्त के पास मुसलमान दोस्त पहुँचा है तो उसकी माँ ने कहा अरे ! मोहन ..... वो आयो थे हाफिज आया है। तो मोहन मिला हाफिज से, लेकिन मोहन जब हाफिज के घर गया तो उसकी अम्मा बोलती है कि बैठ जा इधर, मेरा बेटा कुरान पढ़ रहा है। जब जब मोहन गया अपने मित्र से पास उसकी माँ ने बैठा दिया कोने में कि मेरा बेटा मौलवी से कुरान सीख रहा है। लेकिन मुसलमान लडके को कभी किसी हिन्दु माँ ने नही बताया कि मेरा बेटा आज गीता पढ़ रहा हैं। ताली बजाने की बात नही है रोने की बात हैं। शर्म की बात हैं। जय राम जी की......

इन्सान का इतिहास उठाकर देख लो जो अपनी भाषा भूले है जो अपना रीत-रिवाज-रस्म भूले है और जो अपना धर्म-कर्म भूले है वे धीरे-धीरे-धीरे गुलाम हो गये है नष्ट से हो गये है और गुलामी के बीच भी जिन्होने अपनी संस्कृति बचाये रखी संजोये रखी भाषा और अपना उसूल तो उनमें हरियाणा में इसीलिये खुशी था कि जहाँ देखूँ गुरुओं की वाणी के माईक की आवाज आती है जय राम जी की ........ और गुरु की वाणी सुनने में, संत की वाणी सुनने में पंजाब अभी भी जिन्दादिल है जय राम जी की................

अब मै बात कर रहा था उन तीन देवियों की - दूसरी माई कहती है कि कभी-कभी वो आफिस को जाते है या दुकान जाते है तो जल्दीबाजी में पैंट पहनना भूल जाते है और मुझे कपडे लेकर जाने पड़ते है ऐसा भुल्लकड है वो तो तीसरी ने कहा ! छ्ड़ो यार ये गल, मेरा पति तो ग्जब के भुल्लकड है मैं कपडे बाजार में गई कपडे लेने बहु के लिये कपडे लेने थे तो मेरे पतिदेव आफिस से कही जल्दी छूट गये होंगे। बाजार से गुजरे तो दूर से देखा कि मै दुकान में बैठी थी देख रही थी तो खड़े हो गये मेरे नजदीक आकर, तो मैने उनको देख कर थोड़ा हँसी तो वो भी हँसे फिर मैं कपड़े देख रही थी फिर मेरे सामने देखे घूर घूर के देखे तो मेरे को हँसी आ गई मै हँसी तो वो भी हँसे फिर थोडा नजदीक आये मेरे तरफ़ देखा सिर से पैर तक मैने सोचा कि गजब का देख रहे है तो मुझे हँसी आयी तो वो भी हँसे फिर धीरे से और नजदीक आये और मेरे को बोलते है कि बहन जी ओ बहन जी मैने आपको देखा है, बहन जी मैने आपको कही देखा है मै तो दंग रह गई कि जीवन भर साथ रही और वो आज मुझको कहते है कि मुझे लगता है कि मैने आपको कही देखा है इस व्यक्ति पर आपको हँसी आयेगी और आप जिसको सुनायेंगे उसको भी हँसी आयेगी लेकिन उस पति ने उतनी गलती नही की जितनी आप लोग कर रहे हों वो तो पत्नी से २ घण्टे जुदा भी हो गया था, ४ घण्टे जुदा भी हो गया था और दूर गया तो मैने कही आपको देखा है लेकिन आप उस परमेश्वर से कभी जुदा नही हुये और अभी तक उसकी तरफ़ नजर नही जाती कि मैने कही पर तुझे देखा है सुबह तू जगाने वाला था मैने देखा है पत्नि चिल्ला रही है अलार्म बज रहा है लेकिन तू नही जगाता तो मैं नही जगता, तू नाश्ता उठाने के लिये सत्ता नही देता तो मैं नाश्ता नही कर सकता था। मैने वो भी देखा और अभी भी देख रहा हूँ कि तेरी सत्ता से धड़्कन चल रही है जो कुछ देख रहा हूँ तुझी से देख रहा हूँ। इस बात को भी हम भूल गया हूँ। जितना पति भुल्लकड़ था उससे ज्यादा तो हम भुल्लकड़ हो गये है उस व्यक्ति पर तो हमें हँसी आती है कि सुबह देखी पत्नी दोपहर को भूल गया कितना उल्लू का पट्ठा है, लेकिन हम उल्लू का पट्ठे को भी पीछे छोड दे ऐसे पट्ठे हो गये हम तो, क्या कभी सोचा कि सुबह जगाने वाले कितना भी जगाये लेकिन जब तक तू नही जगाता तब तक नही जगते हम, खिलाने वाले कितना भी खिलाये जब तक तू खाने की सत्ता नही देता तब तक खाना खराब हो गया है, समझाने वाले कितना भी समझाये लेकिन जब तक समझने की सत्ता तेरी नही तब तक समझा कुछ भी समझा नही जाता हैं। "सो साहिब सद सदा हूजुरे, अंधा जानत ताको दूरे" तो उस भुल्लकड़ पर हँसने की बजाये हमको अपने ऊपर हँसना चाहिये कि हम उससे भी ज्यादा भुल्लकड है और ऐसी भूल अब ना हो। उस भुल्लकड को याद शक्ति बढाने के लिये मैं कहुँगा कि तुलसी के पत्ते खाया करे। जय राम जी की ............. गाय के घी की मालिश किया करे मेमोरी बढाने के लिये। लेकिन तुम्हारे को इतने से ही नही तुमको तो ये कहना पड़ेगा कि तुम्हारे लिये ये ईलाज है कि हर रोज नियम से जप किया करो, और बार बार उसकी याद किया करो कि यह भूल की आदत मिट जाये। गुरुवाणी में आता है कि " भुलिया जबी आपको तभी हुआ खराब " कभी जाये केदार कभी जाये मक्के, अपना ख्याल नही तो खाये घर घर के धक्के।

स्रोत:- पूज्य गुरुदेव के सत्संग " मैने तुझे कही देखा है " में से लिये गये कुछ अमृत बिन्दु

गुरुवार, 12 फ़रवरी 2009

भक्ति में बाधक ६ दोष - स्वामी सुरेशानन्द जी

भक्ति में बाधक ६ दोष और भक्ति में वर्धक ६ गुण

भक्ति में ६ दोष बाधक है, इनसे भक्ति में बाधा हो जाती हैं। इन ६ से बचना, आप भी बचों मैं भी बचु, तो हमारी भक्ति में खूब-खूब बरकत आयेगी।

१. अधिक आहार - अधिक खाओ नही भले ही कितना भी स्वादिष्ट हों तू जा दूसरा आओ चलो खा लो, नही-नही, स्वाद का ख्याल करके नही, स्वास्थ्य का ख्याल करके खाये, तो अधिक आहार से बचना। अधिक आहार का एक अर्थ ये भी होगा कि अधिक संग्रह, पैसा-पैसा-पैसा कितना भी इकट्ठा कर ले मरेगा तो, इसलिये मै भी भूखा न रहु साधू भी भूखा न जाय। तो अधिक आहार भक्ति में बाधक हैं।
२. भक्ति के प्रतिकूल चेष्टा - हम एक तरफ़ तो चाहते है कि इसी जन्म में हमें ईश्वर का साक्षात्कार हो जाये और एक तरफ़ हम थोडे समय तक टिकने वाले सुख की इच्छा करते हुये भटकते रहें या उसी की ईच्छा मन में करते रहें क्षणिक सुख की तो ये भक्ति में बाधक तत्व है दूसरा......

३. अपने नियम में आग्रहपूर्वक की दृढ़्ता - ये भक्ति में बाधक तीसरा तत्व हैं। जड़ होकर माला घुमा देते है। जड़ होकर पाठ कर लेते है। जड़्ता पूर्वक खाली एकादशी का व्रत किया, एकादशी का संकेत तो समझे पहले। खाली निराहार जो रहते है उनको मैनें देखा है कि एकादशी से पहले रात को खूब भारी खुराक खा लेंगे। लडडू, सुखडी, मालपुये, खीर, रबडी.... बोले कल एकादशी हैं और फिर कई लोग तो एकादशी की रात को १२:३० बजे और खा लेते है, एकादशी पूरी हो गई बोले १२:०० बज गये ना.... दूसरा दिन शुरु हो गया। तो ध्यान रहे कि अपने नियम में आग्रहपूर्वक की दृढ़्ता नही प्रेमपूर्वक की दृढ़्ता। आग्रहपूर्वक की दृढ़्ता ये भक्ति में बाधक है।

४. विषयी लोगों का संग - जिनकी भक्ति में रुचि नही है, भोगों में रुचि हैं ऐसे लोगों का संग भक्ति में बाधक हैं।

५. मन में रहा हुआ राग - किसी व्यक्ति के लिये या किसी वस्तु के लिये मन में रहा हुआ राग ये भक्ति में बाधक हैं। इससे मन चंचल हो जाता हैं। लोग कहते है कि मेरे मन की चंचलता कैसे मिटे ?.... हकीकत में मन में रहा हुआ राग मिट जाये तो चंचलता मिटाने का सवाल ही नही रहेगा। फिर आप हम बैठेंगें तो गहराई में चले जायेंगें। आपको बोलने की ईच्छा नही होगी। आँख खोलने की ईच्छा नही होगी। न बोलने की, न आँख खोलने की... शान्ति का संपादन सहज में होगा। जो साधना के शिखर हमसे अनछुये रह गये वो हम छूने लगेंगे। जिस गहराई का हमको पता नही चल पाया उसका पता चलने लगेगा और जीवन में से दुःख मिटने लगेंगे और हमारी जब विदा होगी शरीर से इस संसार से तब अस्तित्व राजी होगा, ईश्वर प्रसन्न होंगे कि आया कोई मेरा रूप, ऐसे भक्त की विदाई पर ईश्वर प्रसन्न होंगे। इन्द्रियों के देवता राजी होंगे कि धन्य है इसने अपने जीवन में इन्द्रियों के द्वारा भक्ति की। आँखों से, कानों से, सबसे जीभ से इस आदमी ने भक्ति की है।
६. प्रजल्प - प्रजल्प माने व्यर्थ की बातें बोलना, अतिश्योक्ति करते रहना। एक लडका आया भागता हुआ और बोला पिताजी मैनें आज रास्ते में २ दर्जन शेर देखें बाप ने कहा तेरा दिमाग तो खराब नही हो गया २ दर्जन शेर किसको बोलते है बोला हाँ पिताजी २ दर्जन शेर देखे, उसके पिता बोले हो नही सकते २ दर्जन शेर शहर में, तो बेटा बोला २ नही तो १ दर्जन तो होंगें ही, पिताजी बोले नही बेटे १ दर्जन शेर शहर में नही हो सकते। तो बोले पिताजी ५ तो थे, पिताजी बोले बेटे ५ शेर शहर में नही हो सकते हैं। तो वो बोला पिताजी १ तो था मुझे झूठा साबित मत करों। पिताजी बोले बेटा शहर में शेर नही होता बेटे तूने कुत्ता देखा होगा तूने, तो वो बोला हाँ कुत्ता जरूर था ... अब २ दर्जन शेर गये, १ दर्जन भी गये, ५ भी गये और १ भी गया और कुत्ते पे आ गया.... फिर बाप ने कहा कि मैनें तुझे करोडों बार कहा है कि अतिश्योक्ति मत किया कर तो मेहमान बैठे थे वो बोले आप भी तो अतिश्योक्ति कर रहे है बेटे की उम्र कितनी है वो बोले ५ साल, ५ साल बेटे की उमर है और आपने इसको करोडों बार कह दिया। १.५ साल तक तो वो बोलता ही नही, बाकी बचे ३.५ साल तो क्या ३.५ साल में तुमने इसको करोडों बार कह दिया अतिश्योक्ति तो आप भी कर रहे हो। तो कई बार प्रजल्प भी भक्ति में बाधक देता है। तो इन ६ बाधकों से बचे।

ये तो थे भक्ति के ६ बाधक अब भक्ति के ६ तत्व जो भक्ति में सहायक है भक्ति में अनुकूल ६ गुण है कौन-कौन से हैं।

उत्साहः, निश्चयात धैर्यात, तत तत कर्म प्रवृर्नात ।संग त्यागात सतो व्रते षडवीर भक्ति प्रसिद्धति ॥

१. उत्साह - भक्ति वर्धक नियमों के पालन में उत्साह, आनन्द, खुशी, जल्दी उठ्ने में उत्साह, ऐसा नही जल्दी उठने में आलस्य। उत्साह ये भक्ति वर्धक नियमों में जरूरी है। उत्साह बना रहे।
२. विश्वास - शास्त्र और गुरुदेव के वचनों में अटूट विश्वास होना चाहिये। गुरुदेव ने कहा है बस बात पूरी हो गई। शबरी ने कैसे गुरु की बात में विश्वास किया तो कैसे भगवान राम के दर्शन हो गये।
३. धैर्य - असंख्य विघ्न आने पर भी धैर्य रखें। अभीष्ट सिद्धि में विलम्ब होये तो भी धैर्य रखें कि ५ साल हो गये है मैं साधना कर रहा हूँ मेरे को कोई अभी ऊँचा अनुभव नही हुआ। ये धैर्य रखे। ५ साल हो गये साधना कर रहे है तो कमाई तो हो गई १० माला रोज जपते है वो कमाई किसकी हुई। आपकी ही तो हुई, जप करने वाले की हुई भले मन नही लगा। बिना मन लगे जप किया ये तो सुमिरण नाहि लेकिन ये तो जप नाहि ऐसा तो कही नही लिखा।

माला तो कर में फिरे, जीभ फिरे मुख माही,मनवा तो दसों दिश फिरे ये तो सुमिरण नाहि ॥

ये सुमिरण नही है पर ये तो जप नाहि ये तो किसी ग्रन्थ में नही लिखा है। जप तो हो ही गया कमाई तो हो ही गयी। ये कितना बडा़ लाभ हैं। इसलिये मेरा मन लग जाय या मेरा मन नही लगता ऐसा मत सोचों। धैर्य..... भक्ति में अनुकूल तीसरा गुण धैर्य हैं।

४. तत तत कर्म प्रवृतनात - मानें भक्ति को पोषने वाले कर्म विधि और निषेध दो प्रकार से होते हैं। एक तो सत्संग सुनना ये भक्ति वर्धक हैं। भक्ति में अनुकूल है और निषेध कि भाई संसारिक भोग सुखों का परित्याग ये निषेध, तत तत कर्म प्रवृतनात, अशुद्ध आहार ये निषेध में आया सात्विक आहार ये विधि में आया। तत तत कर्म प्रवृतनात, थियेटर में जाकर बैठे ये निषेध में आयेगा। उसमें कमी आयेगी संस्कार बिगडेगें। आँख बिगडेगी। आँखों की रोशनी खराब होना ठीक है पर दृष्टि खराब होना ये ठीक नही है। दृष्टि कमजोर होना ये तो चल जायेगा पर दृष्टि खराब होना ये नही चलेगा। दृष्टि कमजोर भले हो पर दृष्टि खराब न हो। दृष्टि में ऐसा तो अंजन लगाया जाय आँखों में कि जिस दृष्य को भी हम देखे उसे विकृत करके न देखें। हरिः हरिः हरिः हरिः हरिः ......... ॐ नमों नारायणाय ......... ॐ नमों नारायणाय ......... ॐ नमों नारायणाय ........ ये भक्ति में अनुकूल चौथा गुण है।

५. संग त्यागात - मायावादी, निर-ईश्वरवादी, ईश्वर में नही मानते है, ईश्वर प्राप्त सदगुरु में नही मानते हैं। उन मूर्खों का संग त्याग कर दें। संग त्यागात सतो व्रते, भक्तों जैसा व्यव्हार करें। सतो व्रते, एक भक्त कैसा व्यवहार करता हैं। सोचो कि मेरी जगह पर मीराबाई होती तो क्या करती, मेरी जगह पर विवेकानन्द जी होते तो क्या करते, मेरी जगह पर कबीरदास जी के शिष्य सलूका-मलूका होते तो क्या करते। क्या उनकी श्रद्धा-भक्ति कम होती, भक्तों जैसा व्यवहार करें। सतो व्रते, ये भक्ति वर्धक पाँचवा गुण हैं।

छटाँ गुण में सुन ना पाया इसलिये यहाँ पर नही लिख पाया आपसे क्षमा चाहता हूँ।

स्रोतः- स्वामी सुरेशानन्द जी सत्संग, सायन, मुम्बई वी.सी.डी भाग-१,२

गुरुवार, 5 फ़रवरी 2009

पूनमव्रत महात्मय - सुरेशानन्द जी

पूनमव्रत दर्शन

भारतीय संस्कृति में ऐसी सुन्दर व्यवस्था है कि अधिकतर भगवत सम्बंधी कार्य पूनम के दिन ही किये जाते है। जैसे तीर्थ स्नान, उसकी महिमा है। गुरुदेव के दर्शन, पूनम के दिन विशेष उसकी महिमा हैं। पूर्णिमा तिथी का विशेष महात्म्य क्या है। यजुर्वेद में आता हैं

"चन्द्रमा मनसो जातस चक्षों सूर्यो अजायतः" ।

अर्थात हमारे मन की उत्पत्ति चन्द्रमा से हुई है और पूनम के दिन चन्द्र पूर्ण कला विकसित होता है। पूर्ण कला सम्पन्न होता है। उस दिन हमारा मन भी पूर्ण उल्लासित होता हैं जैसे पूनम के दिन समुद्र आदि के जल में भी विस्तार आ जाता हैं ज्वार आता है बढ्ती आती है विशेष, रोज की अपेक्षा तो पूनम के दिन हमारा मन भी चरम विस्तार पाता हैं तो उस फैले हुए विस्तारता युक्त मन में जगत की कोई कामना या वासना न भरे बल्कि गुरुदेव की भक्ति व्यापे इसलिये सनातन धर्म में ये व्यवस्था है कि पूनम के दिन ऐसे पवित्र कार्य करे और पूनम के दिन गुरु दर्शन का नियम रखें तो उस दिन हमारा मन और अधिकाधिक भक्ति संपन्न होता हैं। वासनायें दूर होती है। इसलिये जो श्रद्धा से पूनम व्रत करते है हर पूनम को गुरु दर्शन करके फिर अन्न-जल ग्रहण करते है तो उनको विशेष-विशेष भक्ति लाभ होता है ये मैनें कई पूनम व्रतधारी भाई-बहनों के जीवन में देखा है। उनकी एक अलग ही आभा हैं। पूनम व्रतधारी जो वास्तव में पूनम व्रतधारी हैं उनका एक अलग ही प्रभाव है। जो गुरुदेव से कुछ चाहते नही है केवल एक प्रेम है कि ज्ञानदाता, भक्तिदाता, दिक्षादाता हमारा कल्याण चाहने वाले और करने वाले गुरुदेव के महिने में एक बार हमको दर्शन का लाभ मिल जायें।

"दर्शनम तव लोकस्य सर्वथा अघहरं परम"।

ऐसे भक्तों की आभा कुछ अलग ही होती है। उनकी मानसिकता बहुत ही अच्छी और ऊँची होती हैं। उनकी आन्तरिक स्थिति बहुत बढिया होती हैं बाहर कैसी भी परिस्थिति आ जाये वो परिस्थितियाँ उनको विचलित नही कर सकती है। आनन्द में रहते है। बर्फ पानी का ही एक दूसरा रूप है जमा हुआ, बर्फ पर स्याही की एक बूँद डालों तो वो फैलेगी नही वो उतने में ही रहेगी पर बर्फ पानी बन गई, गल गई, उसमे स्याही की एक बूँद डालो फैल जायेगी। पूनम के दिन हम जब गुरुदर्शन करते है गुरु की कृपा की एक किरण वो हमारे दिल-दिमाग में भर जाती हैं इसीलिये पूनम के दिन गुरुदेव के दर्शन का महात्म्य है और जो इस महात्म्य से अनजान है। वो बिचारे अपने मन में कामनाये और वासनाये भरते हुए और बढाते हुए अपना अमूल्य निर्मूल्य गवाँ देते है। मुठ्ठी बाँधे आते है, हाथ पसारे चले जाते है। कुछ ले कर आये थे श्वासों का खजाना वो भी गँवा कर चले जाते है और साधक जो आस्थावान होते है वो श्वासों का खजाना ले कर धरती पर जन्मे थे श्वासों का खजाना तो कम होता जाता है पर भीतर भक्ति का खजाना वो बढाते जाते है और बडे सम्पदावान हो जाते है। पूनम के दिन गुरुदर्शन की महिमा है। पूनम के दिन चन्द्रमा को अर्घ्य देने की भी महिमा है, पूनम की रात को, दूध ना मिले तो पानी से ही चन्द्रमा को अर्घ्य दे और अर्घ्य देते समय बोलियेगा, जिनको कोई आर्थिक परेशानी हो उनको तो चन्द्र्मा को अर्घ्य हर पूनम के दिन जरूर देना चाहिये। दूध कही भी अर्घ्यदान देना हो तो ताँबे के लोटे से नही दिया जाता है फिर स्टील का लोटा चाहिये। पूनम की रात को चन्द्रमा को अर्घ्य देते समय पौराणिक श्लोक हैं वो पढना चाहिये।

दधि शंख तुषाराभम, क्षीरो दारनव शनीभम ।
नमामि शशिनम सोमम, सम्भोर मुकुट भूषणं ॥

शिवजी ने हे चन्द्र देव! आपको अपना मुकुट बनाया हैं अपने भाल (मस्तक) में धारण किया हैं। आपको मेरा प्रणाम हैं। आपको शिवजी के भाल में स्थान मिला, हे चन्द्रदेव! मन के मालिक देव! हमको हमारे गुरुदेव के हृदय में स्थान मिले। जो हमारे तारणहार है, उनके दिल में, चरणों में सदा के लिये स्थान मिल जायें। हम उनसे कभी दूर न हों हम सदैव उनके सम्मुख रहें। हमारी गुरुदेव के दिल में जगह बन जाय और वो बनी रहे। इस प्रकार चन्द्रमा के अर्घ्य दें दे।

स्रोतः- उत्तरायण ध्यानयोग शिविर २००९ (११ जनवरी २००९ सुबह के सत्र में)।
पूनम दर्शन व्रत दो तरह से किया जाता है :-

१ - जहाँ गुरुदेव हो वही जाकर दर्शन किये जाये।
२ - जो साधक भाई-बहन देश से दूर है या जो जहाँ गुरुजी है वहाँ नही जा सकते है तो वे साधक भाई-बहन निकट के आश्रम में जाकर गुरुदेव के दर्शन करे और पूनम व्रत का पालन करे।
लिखने में यदि कुछ गलती हो गई हो तो गुरुदेव के चरणों में क्षमा प्रार्थी हूँ ...

हरिः ॐ .........

सोमवार, 26 जनवरी 2009

वाणी के १० दोष - स्वामी सुरेशानन्द जी

वाणी के १० दोष


वाणी के १० दोष माने गये है शास्त्रों में, यदि ये १० दोष न हो तो हमारी वाणी के द्वारा हमेशा शुभ होगा, अच्छा होगा, बढिया होगा। उससे लोगों को भी आनन्द आयेगा और अपने को भी आनन्द आयेगा । वाणी के १० दोष घरों में कृपया आप बच के चले, घर पे खास, घर में शान्ति रहेगी, घर में झगडे नही होंगे न तो लक्ष्मी आयेगी, पैसा बढेगा। पति दुकान पे आफ़िस पे काम-धन्धा करता है मेहनत करता है बेचारा पर, घर पे आकर लडाई-झगडा भी करता है। तो फिर बोलते है कि घर पर बरकत नही होती, बचत नही होती, क्या करे ? तो जहाँ झगडे होते है क्लेश होते है वहाँ लक्ष्मी रहती नही हैं। तो वाणी के १० दोष सतसंग से दूर होते है। सतसंग में ये शक्ति हैं कि ये दोष दूर हों। सतसंग सब सुखों का मूल है। सतसंग से वांछित सिद्धि होती है और सतसंग में केवल बैठ कर सुनना ही नही, सतसंग माने फिर जो सुना फिर घर गये तो जो समय है हमारे पास उसका सदुपयोग करते रहना ऐसा नही कि सिरियल देखने बैठ गये, फिल्म देखने बैठ गये क्या हो जायेगा कोई बात नही फिल्म देख लो, कोई बडा भारी अपराध भी नही है पर जिसको आध्यात्मिक उन्नति करनी हो तो उसको इससे तो बचना ही पडेगा। समय अपना नष्ट ना हो।
हम कही से जा रहे हो पैदल या कार में या ट्रेन में तो कई बार आपका अनुभव होगा कि कोई गन्दा नाला पास से बह रहा है तो बदबू आती है, तो हम क्या करते है कि बदबू से बचने के लिये तुरन्त अपनी नाक पर रुमाल रख लेते है कि बदबू आई, तो जैसे हम दुर्गन्ध को हम अपने अन्दर आने देना पसन्द नही करते वैसे ही हम कोई कुविचार को, कोई कुसंग को, कोई संग के दोष को, गलत आदमी मिल गया और वो हमको गलत राह पर ले जाना चाहता है तो हम उसको अपने भीतर प्रवेश न करने दे उसके संस्कारों को उसकी आदतों को अपने भीतर न धुसने दे तो हमको लाभ बहुत होगा। शूगर की दवाई भी खाये और फिर मीठा भी खाये तो शूगर नियंत्रण में कैसे होगी। करेले का रस पीना पडेगा। कडुवा होगा पर हितकर हैं।
तो जहाँ शुद्ध हवा नही आती न कमरे में, आपका कमरा कितना बढियाँ क्यो न हो पर आपके कमरे में अगर शुद्ध हवा नही आती है सूर्यनारायण की सुबह की ताजी धूप नही आती है तो फिर वहाँ पर बिमारी फैलेगीं, रोग होंगे, शरीर तनदुरुस्त नही रहेगा । उसी प्रकार अगर सतसंग के द्वारा हमारे विचारों की और संस्कारों की शुद्धि नही होगी तो जन्म-मरण का रोग वो तैयारी है समझों। शुद्ध हवा नही आती तो रोग होंगे वहाँ पर। आप अपना कमरा बंद करके बैठ जाओं खिडकी भी बंद रखो, दरवाजा भी बंद रखो १५ मिनट आप बैठो, फिर आप बाहर जाओ, फिर अपने कमरे में आओ आपको अपना कमरा ही दुर्गन्धयुक्त लगेगा तो वहाँ शुद्ध हवा जरूरी है ऐसे ही हमारा जो मानसिक कुपोषण होता रहता हैं, रुग्ण मानसिकता वाले लोगों के संग के कारण तो रोज अपने घर पर शाम को जब फ्री हो जाये तो थोडा सतसंग चलाकर बैठे नही तो आजतक चैनल पर सुबह बहुत जल्दी आता है ५ बजकर ४० मिनट (भारतीयसमयानुसार) पर आता है सुबह-सुबह थोडा अपना समझ का खुराक ले लो फिर आई बी एन-७ चैनल पर आता है ६ बजकर १० मिनट पर आता है थोडा अपना समझ का खुराक ले लें बापू की वाणी सुन ले उस समय तो पूरा दिन बढिया जायेगा।
तो वाणी के १० दोष निम्न है

०१ कुबोल दोष - माने चुभने वाली वाणी बोलना, चुभने वाले शब्द बोलते रहना। ये वाणी का कुबोल दोष है, बेटे को, बेटी को, पति को, पत्नी को ऐसे बोल ना बोले जिससे उअनको तकलीफ हो, उनका दिल दुःखे। ऐसा कोई भी न बोले, तो बोले कि इसने गलती कर दी तो बोलना पडेगा न तो उसने गलती कर दी तो अब क्या करे हम यमदूत तो है नही, क्या अपने से कोई गलती नही होती, इसका मतलब ये नही कि गलत आदमी का पोषण करते रहना पर घर पर सभी का ख्याल करके और बेटा-बेटी भक्ति के मार्ग में चलते है अगर उनकी श्रद्धा है तो माता-पिता को चाहिये कि उनको सहयोग करें कि चलो हमारी उम्र हुई हम नही कर पाये इतनी साधना, बेटे-बेटी तुम करते हो तुमको धन्यवाद हैं शाबास तुम और अच्छी तरह से करों और अपनी उपासना बढाओं और अपने साधना बढाओ हमें खुशी होगी। ऐसा करके उसका पोषण कर दिया जाये तो कुबोल दोष वाणी का नही रहेगा।


०२ सहसात्कार दोष - माने अविचार पूर्वक बोलना, विचार कर न बोलना। अविचार पूर्वक ना बोले, विचारपूर्वक कर बोलें और जब हम नही बोल रहे है तो देखे कि मन क्या सोच रहा हैं। बडी साधना है ये, विचारपूर्वक नही बोलेगा आदमी तो उपहास का पात्र बनेगा। इसलिये "बिना विचारे जो करे सो पाछे पछतायें" खूब विचारपूर्वक।


०३ असद आरोपण दोष - असद आरोपण दोष माने क्या कि दूसरों को गलत मार्गदर्शन देते रहना। अरे नही-नही सतसंग की क्या जरुरत है। दीक्षा की क्या जरुरत हैं। दूसरों को गलत मार्गदर्शन देना दूसरों को गलत सूचनाये देना ऐसा हुआ, वैसा हुआ अरे तू सही बात बता न, तू सच्चाई से दूर क्यों रहता हैं। सत्य स्वरूप ईश्वर का तुझे डर नही है क्यो किसी को गलत मार्गदर्शन देना। असद वाणी का ये जो असद आरोपण दोष है इसमें ये भी आ जायेगा कि दूसरे का दोष नही है फिर भी उसपर वो दोष मड देना कि इसने ये किया इसने वो किया इसलिये ऐसा हो गया। असद आरोपण दोष हैं यें। लोग बहुत बेचारे सतसंग के अभाव में गुमराह बहुत होते है। बाहर की दुर्गन्ध से अपने को बचाते है लेकिन भीतर इन दोषों की दुर्गन्ध इसको सहते रहते हैं इसमें मजा आता हैं।


०४ निरपेक्ष दोष - निरपेक्ष दोष माना शास्त्र से विपरीत वाणी ही बोलते रहना। शास्त्रों की परवाह न करना। शास्त्रों में जो लोक-परलोक की बातें आती हैं उसकों अनदेखा करना या उसको झूठी मानना। हम नही मानते इन सब बातों को, हम नही मानते शास्त्र कों, हम तो ये बोलेंगे, ये निरपेक्ष दोष है।


०५ संक्षेप दोष - माने अपनी बात को ठीक से न कह पाना। यथार्थ रूप से न प्रस्तुत कर पाना। बाल संस्कार की जो सेवा करते है या ऋषि प्रसाद की जो सेवा करते है बाहर, बाल संस्कार जो चलाते है वो लोग थोडा मौन रखे। मौन रखने से आपके शब्दों में जान आयेगी। मौन रखने से वाणी जो बोली जायेगी वो कंठ से नही, हृदय से आयेगी। शब्द नही होंगे कोरे शब्दों के पीछे आपका हृदय काम करेगा। आपके प्राण लगेंगे। और आपके बालसंस्कार केन्द्र में बच्चों की संख्या और अधिक बढेगी। बच्चों को आनन्द आयेगा और आपके बालसंस्कार में आने वाले बच्चे और अधिक सफलता की ऊँचाई को छुवेंगे। मेरिट में आयेंगे। रोग मुक्त होंगे। बच्चे प्रभावशाली होंगे। बच्चों के माता-पिता भी खुश होंगे। उनका उत्साह बढेगा।


०६ क्लेश दोष - माने झगडे की भाषा बोलना। बात-बात में गरम हो जाना एकदम। लोग ऐसी ही भाषा बोलते है झगडे की, झगडा बडे ऐसी ही भाषा बोलते है। झगडा मिट जाये ऐसी भाषा बोलनी चाहिये। समाज में है तो कभी कुछ कभी कुछ होता रहता है झगडा बडे ऐसा वाक्य न बोला जाये। ऐसा वाक्य बोला जये कि झगडा मिट जाये। शान्ति के साम्राज्य की स्थापना हो जाये। कितना अच्छा होगा, आज जरुरत हैं हमारे देश में, पूरे विश्व मानव को जरुरत है। कि झगडे की भाषा न बोलें अपितु शान्ति बडे ऐसी भाषा बोले। मधुर व्यवहार नाम की पुस्तक हम लोग उसका जितना हो सके उसका प्रचार-प्रसार करे लोगों तक पहुचायें अधिक से अधिक घरों में ताकि घर-घर में शान्ति हों। घर-घर में लक्ष्मी का आगमन हो समृद्धि बढें। कौन साधु नही चाहेगा कि हमारा देश सम्पन्न हों।


०७ विकथा दोष - माने व्यर्थ बोल रहे हैं। मानों कि पानी में मथनी चला रहे है कि मक्खन निकलेगा। कई लोगों की आदत होती है व्यर्थ बहुत बोलते रहते हैं तो ये विकथा दोष हैं।


०८ हास्यास्पद दोष - माने किसी का उपहास करते हुए बोलना, किसी की मजाक उडाते हुए बोलना। अपने जीवन में किसी का उपहास क्यों करना, किसी की मजाक क्यों उडाना, किसी पर कटाक्ष क्यों करना, सावधानी।


०९ अशुद्ध दोष - माना बोलते हुऐ ठीक से न बोल पाना और व्याकरण की कई भूलें रह जाना।


१० द्वेष दोष - माने द्वेष और ईर्ष्या से प्रेरित होकर बोलते रहना ऐसा न हो। सबका भला हो। मधुर व्यवहार पुस्तक और बापूजी की वाणी का बारंबार श्रवण तो वाणी के ये १० दोष दूर होते जाते है सतसंगी साधकों के जीवन में से और साधकों के जीवन में तेजस्विता और ओजस्विता आती जाती है बढती जाती है। भले उनसे कोई दुर्व्यवहार करे पर साधक समता में रहते है भले कही भी रहते हो, दिल्ली में हो चाहे लुधियाना में, भारत में हो य विदेश में रहते हो आनन्द में रहते हैं

हरिः ॐ

स्रोत - उत्तरायण ध्यान योग शिविर २००९ (वीसीडी स्वामी सुरेशानन्द जी भाग ०८)यदि सुनना चहते है तो इस लिंक पे जाये

http://www.ashram.org/AshramPortalNew/Webcast/satsangwebcast.aspx?titleid=634

यदि लिखने में कुछ गलती हो गयी हो तो कृपया क्षमा चाहता हूँ।

रविवार, 11 जनवरी 2009

माघ मास की महिमा

माघ मास की महिमा

११ जनवरी से ९ फ़रवरी तक माघ मास है। सामान्य जल भी गंगा जल माना जाता है माघ मास में । प्रत्येक तिथी पर्व के रूप में माघ मास की मानी गयी है इन तिथीयों में स्नान, दान, जप, उपवास, भगवत् पूजा, संत दर्शन, अत्यन्त फलदायी माना जाता है। माघी पूर्णिमा, अगर किसी कारण एक महीना आप स्नान नही कर सकते भोर में तडके, तो एक सप्ताह ही कर लीजिये और एक सप्ताह नही कर सकते तो ३ दिन तो उस पर्व के निमित्त कर लिजीयें और ३ दिन भी नही कर सकते तो पूनम के दिन तो कर ही लेना। और इस माघ मास में २६ जनवरी आज १० है २६ जनवरी का दिन जो है उसका बडा महत्व हैं क्योकि २६ जनवरी को सोमवती अमावस्या है। जैसा सूर्य ग्रहण के समय जप तप दान करने का फल होता है वैसा ही फल सोमवती अमावस्या को होता हैं। ऐसा ही महाफल। महापुण्य रविवार की सप्तमी पड़ जाये तो वो महाफल होता हैं। मंगलवार की चतुर्थी तिथी आ जाये तो भी वही महाफल होता हैं और बुधवार की अष्टमी आ जाये तो इन पर्वों का इन तिथीयों का बडा प्रभाव पडता हैं।

स्रोत :- पूज्य सदगुरुदेव के अजमेरी गेट दिल्ली (१० जनवरी ०९) में आयोजित पूनम दर्शन सत्संग से

वर्ष २००९ में ये तिथीयाँ किस दिन आती है वो निम्न हैं -

०४ मार्च २००९ - बुधवार - अष्टमी
२८ अप्रेल २००९ - मंगलवार - चतुर्थी
२८ जून २००९ - रविवार - सप्तमी
१५ जुलाई २००९ - बुधवार - अष्टमी
२९ जुलाई २००९ - बुधवार - अष्टमी
०८ सितम्बर २००९ - मंगलवार - चतुर्थी
२२ सितम्बर २००९ - मंगलवार - चतुर्थी
२५ अक्टूबर २००९ - रविवार - सप्तमी
२५ नवम्बर २००९ - बुधवार - अष्टमी
०९ दिसम्बर २००९ - बुधवार - अष्टमी

यदि कोई गलती हो गयी हो तो गुरुदेव से क्षमा प्रार्थी हूँ ।