सदगुरुओं के गुण कौन जान सकता हैं। सदगुरुओं ने कितने तारे उनको कौन जान सकता हैं। आकाश के तारे गिनें जा सकते है परन्तु सदगुरुओं ने कितने तारे कोई नही गिन सकता हैं।
तारे गिने जात है ना तारे गिने जात
ऐसे ही गुरु नानक जी थे जिन्होने कितनों को तारा ये किसी को नही पता।
एक बार गुरु नानक जी का एक शिष्य भगीरथ गुरु नानक जी के पास आया और पूछा कि गुरुजी ! मैं दूसरे शहर जा रहा हूँ, आप मुझे जाने की आज्ञा दीजिये। गुरुनानक जी ने कहा कि भगीरथा जा रहा है तो बेशक जा पर एक बात का ध्यान रखना कि एक रात से ज्यादा मत रुकना, जो तू एक रात से ज्यादा रुका तो तेरा जन्म बिगड़ जायेगा। भगीरथ ने विनती की कि हे मेरे सच्चे बादशाह ! मैं नही रुकुंगा। आपका हुक्म है कि एक रात रुकना तो मेरे सच्चे बादशाह मैं एक रात ही रुकुंगा। मेरा जन्म क्युं बिगडें, क्योकि गुरु के वचन से ही जनम सफ़ल होता हैं और वचन ना मानने से ही वचन बिगडता हैं। फ़िर गुरुनानक जी ने भगीरथ से कहा कि जो तू दूसरे शहर जा रहा है तो एक काम और करना कि मरदाने की बेटी की शादी है उसे जो सामान चाहिये वो लिखवा ले और लेते आना। भगीरथ आया मरदाना के पास और जो जो सामान मरदाना को चाहिये था लिख लिया, सुहाग का जोडा भी लिख लिया, सारा सामान लिख लिया और आज्ञा लेने गुरुनानक जी के पास आया कि सच्चे बादशाह मैं जाउं ! गुरुनानक जी बोले कि जा भगीरथा पर एक रात से ज्यादा मत रुकना, जो तू एक रात से ज्यादा रुका तो तेरा जन्म बिगड़ जायेगा। भगीरथ ने चरणों में माथा रखा और कहा कि सच्चे बादशाह मैं एक रात ही रुकुंगा। भगीरथ दूसरे शहर पहुंचा तो उसका एक व्यापारी मित्र रहता था भाई मनसुख, शाम को वो भाई मनसुख के घर पहुंचा और बोला "मित्रा ! आज की रात मैं तेरे घर रुकुंगा और कल मैं वापस जाउंगा क्योकि मेरे गुरु का हुक्म है जो मैं एक रात से ज्यादा रुकुंगा तो मेरा जनम बिगड जायेगा।" मनसुख ने पूछा कि "ऐसा कौन सा तेरा गुरु है कि जिसका वचन मानने से तेरा जन्म सफ़ल होता है और न मानने से जन्म बिगडता हैं" तब भगीरथ ने हाथ जोड़ कर कहा कि "मेरे गुरु गुरु नानक जी हैं।" जैसे ही मनसुख ने गुरु नानक जी का नाम सुना तो उसका मन खिंच गया, फ़िर भगीरथ ने कहा कि भाई ये सामान का पर्चा है ये सामान बांध दे क्योकि मुझे सुबह ही जाना हैं। सवेरा हुआ, भाई मनसुख ने सामान बांध दिया था। भगीरथ ने कहा कि "मनसुखा ! चल एक बार गुरुनानक जी के दर्शन कर ले पूर्ण पुरुष है गुरु नानक जी परमेश्वर का रूप है भाई मनसुख कहने लगा "कि चलता तो हूँ पर मेरी एक शर्त है कि जब मैं वहाँ पहुँचु तो गुरुनानक मेरा नाम पुकार कर मुझे बुलावे।" दोनों जब गुरुनानक जी के पास पहुचें तो भगीरथ ने गुरु नानक जी के चरणों में माथा टेका। मनसुख साथ में खडा रहा, तो गुरु नानक जी बोले भगीरथा ! आ गया हैं और साथ उसको भी लाया है जिसकी माँ ने इसका नाम मनसुख रखा है। लेकिन कभी इसने मन का सुख नही जाना कि मन का सुख क्या होता है। इसने तन के सुख को ही सदा सुख समझा है। तन का सुख तो इसने बहुत पाया पर मन का सुख आज तक इसको नही मिला। जैसे ही भाई मनसुख ने गुरुनानक जी के मुख से अपना नाम सुना तो वो चरणों में गिर पडा और बोला "सच्चे बादशाह ! मुझे माफ़ कर दो। मै आपकी परीक्षा रहा था कि आप पूर्ण हो की नही। चरणों में गिर कर मनसुख कहता है कि सच्चे बादशाह मुझे अपना सिख (शिष्य) बना लो। ये जब गुरुनानक जी ने सुना तो मनसुख से सिर पर हाथ रखा और बोले मनसुखा जप "श्री वाहेगुरु"। जैसे ही गुरुनानक जी के हाथ की शरण मनसुख को मिली मनसुख को इतना सुख मिला कि आज तक उसे वो सुख नही मिला था। इतना धन कमाकर आज तक मनसुख को जो सुख नही मिला था उससे ज्यादा सुख सिर्फ़ गुरुनानक जी के उसके सिर पर हाथ रखने से मिल गया। फ़िर मनसुख ने विनती की कि हे गरीब नवाज दया करों मुझे अपना सिख बना लो। तो गुरुनानक जी बोले कि मनसुखा जो तुने मेरा सिख बनना है तो तुझे सवेरे जल्दि उठना पडेगा, नियम करना पडेगा, साधसंगत के साथ बैठ कर नाम जप करना पडेगा जा मरदाने के पास जा और सबद लिख ले और रोज कीर्तन करना जो तू कीर्तन करेगा न तो हम तेरे साथ बैठे होंगे। क्योकि जो कर्ते (परमब्रह्म) का कीर्तन करता है तो सारा जग उसके साथ हो जाता है। भाई मनसुख ने मरदाना से सबद ले लिये और गुरुनानक जी से आज्ञा ले कर घर चला आया और रोज नियम करने लगा। वो व्यापारी था तो एक दिन दूर देश से वापस लौट रहा था तो उसका बेडा समुद्री तूफ़ान में फ़ँस गया मल्लाहों ने बहुत कोशिश की लेकिन जब कुछ नही हुआ तो उन्होने लंगर डाल दिये और भाई मनसुख के पास आकर बोले कि अब जहाज नही संभल रहा हैं क्योकि हवा विपरीत हो रही है और बेडा तेज समुद्री लहरों से टूट जायेगा, अब हम लोगों लो डूबने से कोई नही बचा सकता हैं। तो भाई मनसुख ने कहा कि तुम लोग चिन्ता क्यु करते हो जिसका गुरु गुरुनानक हो उसका बेडा कोई डुबा नही सकता वो तो हमेशा तरता ही है। फिर सब लोग बैठ कर गुरुनानक जी का नाम लेकर कीर्तन शुरु किया। कीर्तन में जब वे एक मन और एक चित्त हो गये तब जब आँख खुली तो सभी क्या देखा कि उनका बेडा किनारे लगा हुआ हैं। गुरु नानक जी ने भाई मनसुख का बेडा तार दिया डूबने नही दिया। क्योकि जिस बेडे के अन्दर कीर्तन होता है और जिसका कोई गुरु होता है उसका बेडा भी कभी डूब सकता है ? इस प्रकार से उन सब की जान बच गयी। सभी ने गुरुनानक जी को शुक्रिया अदा किया और सभी बोले
मेरे साहिबा कौन जाने गुण तेरे.... कौन जाने गुण तेरे....
कौन जाने गुण तेरे.... कौन जाने गुण तेरे.... कौन जाने गुण तेरे....
मेरे साहिबा कौन जाने गुण तेरे.... कौन जाने गुण तेरे....
तारे गिने जात है ना तारे गिने जात
ऐसे ही गुरु नानक जी थे जिन्होने कितनों को तारा ये किसी को नही पता।
एक बार गुरु नानक जी का एक शिष्य भगीरथ गुरु नानक जी के पास आया और पूछा कि गुरुजी ! मैं दूसरे शहर जा रहा हूँ, आप मुझे जाने की आज्ञा दीजिये। गुरुनानक जी ने कहा कि भगीरथा जा रहा है तो बेशक जा पर एक बात का ध्यान रखना कि एक रात से ज्यादा मत रुकना, जो तू एक रात से ज्यादा रुका तो तेरा जन्म बिगड़ जायेगा। भगीरथ ने विनती की कि हे मेरे सच्चे बादशाह ! मैं नही रुकुंगा। आपका हुक्म है कि एक रात रुकना तो मेरे सच्चे बादशाह मैं एक रात ही रुकुंगा। मेरा जन्म क्युं बिगडें, क्योकि गुरु के वचन से ही जनम सफ़ल होता हैं और वचन ना मानने से ही वचन बिगडता हैं। फ़िर गुरुनानक जी ने भगीरथ से कहा कि जो तू दूसरे शहर जा रहा है तो एक काम और करना कि मरदाने की बेटी की शादी है उसे जो सामान चाहिये वो लिखवा ले और लेते आना। भगीरथ आया मरदाना के पास और जो जो सामान मरदाना को चाहिये था लिख लिया, सुहाग का जोडा भी लिख लिया, सारा सामान लिख लिया और आज्ञा लेने गुरुनानक जी के पास आया कि सच्चे बादशाह मैं जाउं ! गुरुनानक जी बोले कि जा भगीरथा पर एक रात से ज्यादा मत रुकना, जो तू एक रात से ज्यादा रुका तो तेरा जन्म बिगड़ जायेगा। भगीरथ ने चरणों में माथा रखा और कहा कि सच्चे बादशाह मैं एक रात ही रुकुंगा। भगीरथ दूसरे शहर पहुंचा तो उसका एक व्यापारी मित्र रहता था भाई मनसुख, शाम को वो भाई मनसुख के घर पहुंचा और बोला "मित्रा ! आज की रात मैं तेरे घर रुकुंगा और कल मैं वापस जाउंगा क्योकि मेरे गुरु का हुक्म है जो मैं एक रात से ज्यादा रुकुंगा तो मेरा जनम बिगड जायेगा।" मनसुख ने पूछा कि "ऐसा कौन सा तेरा गुरु है कि जिसका वचन मानने से तेरा जन्म सफ़ल होता है और न मानने से जन्म बिगडता हैं" तब भगीरथ ने हाथ जोड़ कर कहा कि "मेरे गुरु गुरु नानक जी हैं।" जैसे ही मनसुख ने गुरु नानक जी का नाम सुना तो उसका मन खिंच गया, फ़िर भगीरथ ने कहा कि भाई ये सामान का पर्चा है ये सामान बांध दे क्योकि मुझे सुबह ही जाना हैं। सवेरा हुआ, भाई मनसुख ने सामान बांध दिया था। भगीरथ ने कहा कि "मनसुखा ! चल एक बार गुरुनानक जी के दर्शन कर ले पूर्ण पुरुष है गुरु नानक जी परमेश्वर का रूप है भाई मनसुख कहने लगा "कि चलता तो हूँ पर मेरी एक शर्त है कि जब मैं वहाँ पहुँचु तो गुरुनानक मेरा नाम पुकार कर मुझे बुलावे।" दोनों जब गुरुनानक जी के पास पहुचें तो भगीरथ ने गुरु नानक जी के चरणों में माथा टेका। मनसुख साथ में खडा रहा, तो गुरु नानक जी बोले भगीरथा ! आ गया हैं और साथ उसको भी लाया है जिसकी माँ ने इसका नाम मनसुख रखा है। लेकिन कभी इसने मन का सुख नही जाना कि मन का सुख क्या होता है। इसने तन के सुख को ही सदा सुख समझा है। तन का सुख तो इसने बहुत पाया पर मन का सुख आज तक इसको नही मिला। जैसे ही भाई मनसुख ने गुरुनानक जी के मुख से अपना नाम सुना तो वो चरणों में गिर पडा और बोला "सच्चे बादशाह ! मुझे माफ़ कर दो। मै आपकी परीक्षा रहा था कि आप पूर्ण हो की नही। चरणों में गिर कर मनसुख कहता है कि सच्चे बादशाह मुझे अपना सिख (शिष्य) बना लो। ये जब गुरुनानक जी ने सुना तो मनसुख से सिर पर हाथ रखा और बोले मनसुखा जप "श्री वाहेगुरु"। जैसे ही गुरुनानक जी के हाथ की शरण मनसुख को मिली मनसुख को इतना सुख मिला कि आज तक उसे वो सुख नही मिला था। इतना धन कमाकर आज तक मनसुख को जो सुख नही मिला था उससे ज्यादा सुख सिर्फ़ गुरुनानक जी के उसके सिर पर हाथ रखने से मिल गया। फ़िर मनसुख ने विनती की कि हे गरीब नवाज दया करों मुझे अपना सिख बना लो। तो गुरुनानक जी बोले कि मनसुखा जो तुने मेरा सिख बनना है तो तुझे सवेरे जल्दि उठना पडेगा, नियम करना पडेगा, साधसंगत के साथ बैठ कर नाम जप करना पडेगा जा मरदाने के पास जा और सबद लिख ले और रोज कीर्तन करना जो तू कीर्तन करेगा न तो हम तेरे साथ बैठे होंगे। क्योकि जो कर्ते (परमब्रह्म) का कीर्तन करता है तो सारा जग उसके साथ हो जाता है। भाई मनसुख ने मरदाना से सबद ले लिये और गुरुनानक जी से आज्ञा ले कर घर चला आया और रोज नियम करने लगा। वो व्यापारी था तो एक दिन दूर देश से वापस लौट रहा था तो उसका बेडा समुद्री तूफ़ान में फ़ँस गया मल्लाहों ने बहुत कोशिश की लेकिन जब कुछ नही हुआ तो उन्होने लंगर डाल दिये और भाई मनसुख के पास आकर बोले कि अब जहाज नही संभल रहा हैं क्योकि हवा विपरीत हो रही है और बेडा तेज समुद्री लहरों से टूट जायेगा, अब हम लोगों लो डूबने से कोई नही बचा सकता हैं। तो भाई मनसुख ने कहा कि तुम लोग चिन्ता क्यु करते हो जिसका गुरु गुरुनानक हो उसका बेडा कोई डुबा नही सकता वो तो हमेशा तरता ही है। फिर सब लोग बैठ कर गुरुनानक जी का नाम लेकर कीर्तन शुरु किया। कीर्तन में जब वे एक मन और एक चित्त हो गये तब जब आँख खुली तो सभी क्या देखा कि उनका बेडा किनारे लगा हुआ हैं। गुरु नानक जी ने भाई मनसुख का बेडा तार दिया डूबने नही दिया। क्योकि जिस बेडे के अन्दर कीर्तन होता है और जिसका कोई गुरु होता है उसका बेडा भी कभी डूब सकता है ? इस प्रकार से उन सब की जान बच गयी। सभी ने गुरुनानक जी को शुक्रिया अदा किया और सभी बोले
मेरे साहिबा कौन जाने गुण तेरे.... कौन जाने गुण तेरे....
कौन जाने गुण तेरे.... कौन जाने गुण तेरे.... कौन जाने गुण तेरे....
मेरे साहिबा कौन जाने गुण तेरे.... कौन जाने गुण तेरे....