दिसम्बर २००८ पूनम दर्शन दिल्ली में आयोजित पूनम दर्शन सत्संग में स्वामी सुरेशानन्द जी ने आसक्ति मिटाने के ७ उपाय बताये जो कि इस प्रकार है
आसक्ति मिटाने के ७ सरल उपाय हैं
१- दृढ निश्चय कर लिया जाये कि जो गुरुजी कहेंगे वो मुझे करना ही है बस।
२- वासना पूर्ति के मार्ग में चलने वालों का हम संग नही करेंगे। चाहे कोई भी क्युं न हो, वासना पूर्ति के मार्ग में जो जा रहे है उनकी दोस्ती नही करेंगे।
३- कभी भी हम लोग ऐसा विचार नही करेंगे कि वासना पूर्ति करने वाले लोग सुखी है। बडे बंगले में रहते है , बडी कार में घूमते हैं, खाक सुखी है सुखी वो है भगवान कृष्ण ने गीता में बताया हैं काम के वेग को और क्रोध के वेग को सहन करते की शक्ति रखता है दम रखता है भगवान कहता है कि बो मेरे मत में सुखी है, "सहयोगी सहसुखी नरः" आप गीता में पढिये ५वे अध्याय में, भगवान नें यह नही कहा है कि काम विकार नही आयेगा क्रोध विकार आयेगा ही नही, लोभ कभी आयेगा ही नही, भगवान ने कहा कि काम का वेग क्रोध का वेग, इस वेग में जो बह नही जाता उसको सहन करने का दम अपने पास रखता है, भगवान श्रीकृष्ण कहते है कि वो मेरे मत में सुखी है और मेरे मत में वो योगी है।
४- अपने भोजन में पवित्रता सदैव रखी जाये। लहसुन प्याज निश्चित ही तमो गुण बढाने वाली चीजें है परन्तु कोई बुजुर्ग है किसी को शारीरिक कोई तकलीफ़ है, खाँसी की तकलीफ़ है या श्वास की बिमारी है वो अगर आदमी थोडा लहसुन, प्याज खा ले तो उसको कोई पाप नही लगेगा, घुटने का दर्द रहता है किसी को, वात प्रकोप रहता है न वायु का तो शरीर में दर्द रहता है घुटनों में कमर में तो किसी को ऐसा दर्द हो घुटनों आदि में तो वह औषधवश लहसुन खा सकता है, अंगेजी दवाई खाये इससे तो अच्छा है की वो थोडी सी हरी लहसुन खा ले, इसका मतलब से नही कि जो जवान है वो लोग सोचे कि हम भी लहसुन प्याज खाये हा शारीरिक तकलीफ़ है तो ठीक है। लोग बडे कमाल के है शरीर का नाश हो ऐसी चीज नही खाते है लेकिन बुद्धि नाश हो जाये ऐसी चीज पैसे देकर खाते हैं। इसलिये भगवत गीता के ६ठे अध्याय से १७वे श्लोक में और १७वें अध्याय से ८वे, ९वे, और १०वे श्लोक में भगवान श्रीकृष्ण ने आहार सम्बन्धी बहुत बढिया बातें बताई है।
५- अपने जीवन में स्थान की पवित्रता रखी जाये, ऐसी जगह में न जाये जहाँ जाने से रजोगुण बढे और तमो गुण बढे। ऐसी जगह जाने में आग्रह रखें जहाँ जाने से सत्व गुण बढें, भक्ति बढें, भगवान के नाम में रुचि बढें।
६- कभी भी अपना समय बेकार की मेगजीन पढ्ने में, बेकार की टीवी सीरीयल देखने में, बेकार की बातों में न गँवाया जायें। समय मिल गया तो माला से या मन से जप शुरु कर दिया जाय। जप हो गया तो सत्संग की कोई पुस्तक पढी जाय। वो भी पढ ली तो शान्त बैठे और श्वास बाहर-भीतर जाये उस पर जप किया जाये,
७- भगवान कपिल बताते है माता देवहूति को कि माँ आसक्ति निश्चित रूप से दुखः देने वाली है परन्तु वही आसक्ति अगर भगवान और भगवत्प्राप्त गुरु में होती है तो वो तारने वाली होती हैं।
स्रोत: स्वामी सुरेशानन्द जी वीसीडी भाग ४ व ५ - पूर्णिमा दर्शन रोहिणी (दिल्ली)