मनुष्य को कभी भी स्वार्थ में आबद्ध नहीं होना चाहिए। व्यावहारिक वासनाओं को पोसने का स्वार्थ सुख का अभिलाषी है वह सच्ची सेवा नहीं कर सकता। जो संसारी वासनाओं का गुलाम है वह अपना ठीक से विकास नहीं कर सकता। जो अपने स्वार्थ का गुलाम है वह अपना कल्याण नहीं कर सकता। व्यक्तिगत स्वार्थ कुटुम्ब में कलह पैदा कर देगा, कुटुम्ब का स्वार्थ पड़ोस में कलह पैदा कर देगा, पड़ोस का स्वार्थ गाँव में कलह पैदा कर देगा, गाँव का स्वार्थ तहसील में कलह पैदा करेगा, तहसील का स्वार्थ जिले में कलह पैदा कर देगा, जिले का स्वार्थ राज्य में कलह पैदा कर देगा और राज्य प्रांतीयता का स्वार्थ राष्ट्र में कलह पैदा कर देगा, राष्ट्रीयता का स्वार्थ विश्व में कलह करेगा और वैश्विकता का स्वार्थ विश्वेश्वर के दूर पटक देगा। स्वार्थ में आकर मूर्खतावश जो कुप्रचार करते हैं, करवाते हैं मेरे दिल में उनके प्रति नफरत नहीं होती।
दूसरे लोग फोन पर फोन करते हैं 'बापू जी की सहनशक्ति कैसी है ! इतना कुप्रचार, इतना जुल्म पर जुल्म हो रहा है और बापू जी को देखो तो कोई दुःख नहीं ! जब देखो मुस्कराते रहते हैं। हमको तो बड़ा दुःख होता है।'
बेटा ! तुम जहाँ बैठकर देखते हो वहाँ तुम ठीक हो लेकिन वास्तविकता कुछ और है। जो अखण्ड भारत को तोड़ना चाहते हैं उनकी मुरादें हैं कि हम आपस में लड़ें-भिड़ें, झगड़े परन्तु हमारा ज्ञान कहता है किः
जो हम आपस में न झगड़ते।
बने हुए क्यों खेल बिगड़ते।।
लोग यह मानते हैं कि संघर्ष के बिना विकास नहीं होता, संघर्ष के बिना अपनी चाही हुई चीज नहीं मिलती। भाई साहब ! विदेशी लोग तो ऐसी बड़ी भारी गलती में पड़े हैं कि लड़ाओ और राज करो ()। हिन्दू हिन्दुओं को लड़ाओ, हिन्दूवादी सरकार को बदनाम करो, हिन्दू संस्थाओं को बदनाम करो। हिन्दुओँ को आपस में लड़ाकर उन पर राज करने की मुराद वालों ने, धर्मांतरण कराने वालों ने हिन्दू साधुओं और पुलिस के बीच में, हिन्दू संस्थाओं और मीडिया के बीच में एक खाई खड़ी कर दी। ये लोग सफल भी हो पाते हैं जब हम स्वार्थ के वशीभूत होकर आपस में लड़ने लग जाते हैं। हमें आपस में लड़ना नहीं चाहिए। लड़ाई-झगड़े से जो भी मिलेगा वह सुखद नहीं होगा और सात्त्विक ज्ञान, आत्मज्ञान, गीताज्ञान से जो मिलेगा वह कभी दुःखद नहीं होगा। संघर्ष से आपको कुछ मिल गया तो आप भोगी बन जाओगे, और अधिक संघर्ष करोगे, अपने से कमजोर लोगों का शोषण करने लग जाओगे।
संघर्ष से अपनी इच्छापूर्ति करो – यह स्वार्थियों की, संकीर्ण मानसिकतावालों की मान्यता बहुत छोटी जगह पर बैठकर होती है। वास्तव में संघर्ष करके अपनी इच्छापूर्ति करने के बाद भी दुःख नहीं मिटता, चिंता नहीं मिटती, विकार नहीं मिटते, अशांति नहीं मिटती। उस अशांति, विकार तथा बदले की भावना से मरने के बाद भी न जाने किस-किस रूप में एक-दूसरे से प्रतिशोध लेने के लिए न जाने किन किन योनियों में भटकते हैं, मारकाट करते रहते हैं, तपते-तपाते रहते हैं कुत्तों की नाईं।
स्वार्थी, नासमझ आपस में कुत्तों की नाईं लड़ मरते हैं परंतु समझदार मनुष्य तो बहुत ऊँचे ज्ञान के धनी होते हैं, दूरदृष्टिवाले होते हैं। लोग कहते हैं- 'बापू के करोड़ो शिष्य हैं। बापू जी आज्ञा करें तो देश को हिला देंगे, यह कर देंगे – वह कर देंगे।' मैंने कहाः 'नहीं बाबा ! देश को हिलाओगे तो भी अपने की ही घाटा है।'
षड्यंत्रकारियों के बहकावे में आकर समझदारी की कमीवाले कुछ की कुछ साजिशें करते हैं। जो षड्यंत्र करके दूसरें का बुरा सोचता है, बुरा चाहता है, बुरा करता है उसका तो अपनी ही बुरा हो जाता है। आप किसी का बुरा चाहोगे तो पहले अपने दिल में बुराई लायेंगे, इससे कुछ-न-कुछ आपकी बुद्धि मारी जायेगी। बुद्धि मारी जाती है तब लाखों करोड़ों की नजरों में आदरणीय व्यक्ति के लिए भी हलकी भाषा बोलते है। फिर उनको लोगों की बददुआएँ मिलती हैं। शास्त्र में आता है कि
अपूज्या यत्र पूज्यन्ते पूजनीयो न पूज्यते।
त्रीणि तत्र भविष्यन्ति दारिद्रयं मरणं भयम्।।
(शिव पुराण, रूद्र. सती. 35.9)
जहाँ पूजनीय माता-पिता, सदगुरुओं का आदर नहीं होता और अपूजनीय लोगों का आदर-सत्कार होता है, वहाँ भय, दरिद्रता और मृत्यु का तांडव होने लगता है। गलत निर्णय होने लगते हैं। अशांति के कारण अकाल मृत्यु हो जाती है, हार्टअटैक आ जाता है, एक्सीडेंट होने लगते हैं। इसका प्रत्यक्ष दृष्टान्त है – अफगानिस्तान में महात्मा बुद्ध की मूर्तियाँ तोड़ी गयीं, महापुरुषों के प्रति नफरत जगायी गयी तो वहाँ कितना कितना कहर हो रहा है !
स्वार्थ आदमी को गुमराह कर देता है। वे लोग सचमुच मूर्ख हैं जो अपनी ही संस्कृति की जड़ों को काटने में लगे रहते हैं। ये फिर भटक जाते हैं, स्वार्थ में अंधे होकर किसी भी तरीके से पैसा इकट्ठा करने लग जाते हैं। ऐसे लोग मरने के बाद नीच योनियों में जाते हैं।
लोगों में सुख शांति का प्रसाद बाँटने वाले संतों-महापुरुषों के प्रति जिनको वैरभाव है, समझ लो उनकी तो तौबा है ! वे न जाने कुत्ता बनकर कितने जन्मों तक दुष्कर्मों का फल भोगेंगे, मेंढक बनेंगे। रामायण में आता हैः
हर गुर निंदक दादुर होई।
जन्म सहस्र पाव तन सोई।।
एक बार नही, हजार जन्मों तक उनको मेंढक बनना पड़ता है, फिर ऊँट बनते हैं, बैल बनते हैं। लोग बोलते हैं- 'इनको दंड मिलना चाहिए।'अरे ! आप हम क्या दंड देंगे ! वे स्वयं दंड ले रहे हैं। अशांति का दंड ले रहे हैं और कई जन्मों में दंड भोगने वाला मन बना रहे हैं। अब उनको हम आप क्या दंड देंगे।
बहुत गयी थोड़ी रही व्याकुल मन मत हो।
धीरज सबका मित्र है करी कमाई मत खो।।
अगर कोई शुभकामना करनी है तो दो-दो माला भगवन्नाम का जप कर लो। स्वार्थ में अँधे बनकर आपस में लड़ाकर मारने वाले इन षड्यंत्रकारियों से बचकर अपनी संस्कृति की रक्षा के लिए, सीमा पर तैनात प्रहरी की तरह सदैव सावधान रहो। अपनी दृष्टि को व्यापक बनाने का अभ्यास करो। महापुरुषों का सत्संग सुनो।
भगवदसुमरिन का, परिस्थितियों में सम रहने की सजगता का, परमात्म-विश्रान्ति का, आकाश में एकटक निहारने का, श्वासोच्छवास में सोऽहं जप द्वारा समाधि-सुख में जाने का आदरसहित अभ्यास करना। कभी-कभी एकांत में समय गुजारना, विचार करना कि इतना मिल गया आखिर क्या ? अपने को स्वार्थ से बचाना। स्वार्थरहित कार्य ईश्वर को कर्जदार बना देता है और स्वार्थसहित कार्य इन्सान को गद्दार बना देता है। निष्काम कर्म, संस्कृति की सेवा, भगवान का सुमिरन और एकांत में आत्मविचार करके आत्मा के आनंद में आने वाला महान हो जाता है।
ऋषि प्रसाद, जून 2010, पृष्ठ संख्या 12,13 अंक 210
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