मैं बहुत नास्तिक प्रकृति का था। ईश्वर या भगवान के प्रति मुझे तनिक भी श्रद्धा नहीं थी क्योंकि मैं विज्ञान का विद्यार्थी था और विज्ञान से बढ़कर दूसरा कोई धर्म हो ही नहीं सकता, ऐसी मेरी मान्यता थी। मेरी माता जी पूज्य स्वामी का साहित्य हमेशा पढ़ती रहती थी और मुझसे भी पढ़ने का आग्रह किया करती थी लेकिन मैं साधु-संतों के वचनों पर विश्वास नहीं करता था, इसलिए मैं उले टाल देता था। डिप्लोमा इन इलेक्ट्रोनिक्स की अंतिम वर्ष की परीक्षा देने के बाद घर पर ही छुट्टियों में मैंने माता जी के अत्यधिक आग्रह के कारण संत श्री आसारामजी आश्रम द्वारा प्रकाशित जीते जी मुक्ति पुस्तक पढ़ना आरम्भ किया। जैसे-जैसे उस पुस्तक का एक-एक पृष्ठ पढ़ता गया, वैसे-वैसे अदृश्य आनंद से अभिभूत होकर मेरी नास्तिकता आस्तिकता में परिवर्तित होने लगी। ईश्वर और धर्म का महत्त्व मुझे समझ में आने लगा। मैं इन महापुरूष के दर्शन के लिए बेचैन होने लगा जिन्होंने जिन्होंने मेरे जीवन में धर्म के प्रति आस्तकिता का बीजारोपण किया। मैंने अनेक प्रयत्न किये लेकिन अनेकानेक समस्याओं के कारण उनके पावन दर्शन करने नहीं जा सका।
एक बार मैंने पढ़ा कि श्री आसारामायण के 108 पाठ करने वालों की सभी मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं। मैंने भी श्रीआसारामायण के 108 पाठ किये और गुरूदेव को मन ही मन प्रार्थना की कि मंत्रदीक्षा के मार्ग में आने वाले सभी व्यवधान दूर कर दर्शन देकर अनुगृहीत कीजिएगा।
उस दिन मेरे विश्वास को अत्यधिक बल मिला तथा ईश्वर का अस्तित्व जगत में है, ऐसा आभास होने लगा। श्रीआसारामायण के 108 पाठ पूर्ण होते ही सूरत आश्रम जाकर पूज्य श्री के दर्शन तथा मंत्रदीक्षा प्राप्ति के मेरे सब मार्ग खुल गये। मंत्रदीक्षा के समय गुरूदेव द्वारा की गई शक्तिपात-वर्षा से प्राप्त अलौकिक आनंद के मधुर क्षणों का अनुभव शब्दों में वर्णित करना मेरे लिए असंभव है। पूज्यश्री के पावन सान्निध्य में आये हुए मुझे तीन वर्ष से अधिक समय हो चुका है और इस दौरान अनेक दिव्यातिदिव्य अनुभवों के दौर से मैं गुजर चुका हूँ। पूज्य गुरूदेव के सान्निध्य में रहते हुए मैंने अनुभव किया है कि इस कलियुग में पूज्यश्री ही भक्तिदाता, मुक्तिदाता व सर्वसमर्थ संत हैं। पूज्य श्री के महान् गुणों का वर्णन करने को बैठूँ तो कितने ही ग्रन्थ तैयार हो जाय लेकिन यहाँ मैं सिर्फ इतना ही कहूँगा कि पूज्य श्री के सान्निध्य और मार्गदर्शन में जीवन, समाज और राष्ट्र जितना उन्नत हो सकता है, उतना विज्ञान से नहीं। मेरा भ्रमभेद मिटाकर मुझे निजानंद का रसपान करवाने वाले श्री गुरूदेव के श्रीचरणों में मेरे कोटि-कोटि नमन्....
किशोर विश्वनाथ चौधरी
27, चेतना नगर, नासिका (महा.)
ये तो श्री आसारामायण पाठ की एक महिमा है, ऐसी तो कितनी सारी है जिनका बयान नही किया जा सकता हैं। ऐसे कितने लोगों के अनुभव है जिनके बारे में हमने सुना भी नही होगा। जो जो पाठ करता है उसके मन की मुराद तो पूरी होती ही है और उसकी गुरुभक्ति भी बढ़ती हैं। क्योंकि जैसे जैसे आप इस पाठ की पंक्तियों में डूबते जायेंगे आपको गुरुदेव की जीवन लीला के साक्षात दर्शन होते चले जायेंगे। अगर मेरी इस बात पर यकीन ना आये तो खुद ही अनुभव करके देख लीजिये।
हरि: ॐ .........
एक बार मैंने पढ़ा कि श्री आसारामायण के 108 पाठ करने वालों की सभी मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं। मैंने भी श्रीआसारामायण के 108 पाठ किये और गुरूदेव को मन ही मन प्रार्थना की कि मंत्रदीक्षा के मार्ग में आने वाले सभी व्यवधान दूर कर दर्शन देकर अनुगृहीत कीजिएगा।
उस दिन मेरे विश्वास को अत्यधिक बल मिला तथा ईश्वर का अस्तित्व जगत में है, ऐसा आभास होने लगा। श्रीआसारामायण के 108 पाठ पूर्ण होते ही सूरत आश्रम जाकर पूज्य श्री के दर्शन तथा मंत्रदीक्षा प्राप्ति के मेरे सब मार्ग खुल गये। मंत्रदीक्षा के समय गुरूदेव द्वारा की गई शक्तिपात-वर्षा से प्राप्त अलौकिक आनंद के मधुर क्षणों का अनुभव शब्दों में वर्णित करना मेरे लिए असंभव है। पूज्यश्री के पावन सान्निध्य में आये हुए मुझे तीन वर्ष से अधिक समय हो चुका है और इस दौरान अनेक दिव्यातिदिव्य अनुभवों के दौर से मैं गुजर चुका हूँ। पूज्य गुरूदेव के सान्निध्य में रहते हुए मैंने अनुभव किया है कि इस कलियुग में पूज्यश्री ही भक्तिदाता, मुक्तिदाता व सर्वसमर्थ संत हैं। पूज्य श्री के महान् गुणों का वर्णन करने को बैठूँ तो कितने ही ग्रन्थ तैयार हो जाय लेकिन यहाँ मैं सिर्फ इतना ही कहूँगा कि पूज्य श्री के सान्निध्य और मार्गदर्शन में जीवन, समाज और राष्ट्र जितना उन्नत हो सकता है, उतना विज्ञान से नहीं। मेरा भ्रमभेद मिटाकर मुझे निजानंद का रसपान करवाने वाले श्री गुरूदेव के श्रीचरणों में मेरे कोटि-कोटि नमन्....
किशोर विश्वनाथ चौधरी
27, चेतना नगर, नासिका (महा.)
ये तो श्री आसारामायण पाठ की एक महिमा है, ऐसी तो कितनी सारी है जिनका बयान नही किया जा सकता हैं। ऐसे कितने लोगों के अनुभव है जिनके बारे में हमने सुना भी नही होगा। जो जो पाठ करता है उसके मन की मुराद तो पूरी होती ही है और उसकी गुरुभक्ति भी बढ़ती हैं। क्योंकि जैसे जैसे आप इस पाठ की पंक्तियों में डूबते जायेंगे आपको गुरुदेव की जीवन लीला के साक्षात दर्शन होते चले जायेंगे। अगर मेरी इस बात पर यकीन ना आये तो खुद ही अनुभव करके देख लीजिये।
हरि: ॐ .........