मासिक साधना उपयोगी तिथियाँ

व्रत त्योहार और महत्वपूर्ण तिथियाँ

25 फरवरी - माघी पूर्णिमा
03 मार्च - रविवारी सप्तमी (शाम 06:19 से 04 मार्च सूर्योदय तक )
06 मार्च -
व्यतिपात योग (दोपहर 14:58 से 07 मार्च दिन 12:02 मिनट तक)
08 मार्च - विजया एकादशी (यह त्रि स्पृशा एकादशी है )
09 मार्च - शनि प्रदोष व्रत
10 मार्च - महा शिवरात्री (निशीथ काल मध्यरात्री 12:24 से 01:13 तक )
11 मार्च - सोमवती अमावस्या (
सूर्योदय से रात्री 1:23 तक )
11 मार्च - द्वापर युगादी तिथि
14 मार्च - षडशीति संक्रांति (पुण्यकाल शाम 4:58 से
सूर्योदय तक)
19 मार्च - होलाष्टक प्रारम्भ
20 मार्च - बुधवारी अष्टमी (
सूर्योदय से दोपहर 12:12 तक)
23 मार्च - आमलकी एकादशी
24 मार्च - प्रदोष व्रत
26 मार्च - होलिका दहन
27 मार्च - धुलेंडी , चैतन्य महाप्रभु जयंती
29 मार्च - संत तुकाराम द्वितीय
30 मार्च - छत्रपति शिवाजी जयन्ती

गुरुवार, 23 दिसंबर 2010

स्वदेशी, विदेशी गौवंश का अन्तर



विदेशी गौवंश ‘ए-1’

अनेक खोजो से साबित हुआ है कि अधिकांश विदेशी गौवंश विषाक्त है। आॅकलैण्ड की ‘ए-2, कार्पोरेशन तथा प्रसिद्ध खोजी विद्वान ‘डा. कोरिन लेक् मैकने’ की खोजों के अनुसार ‘ए-1’ प्रकार की गौ के दूध में ‘बीटा कैसीन ए-1, पाया गया है जिससे हमारे शरीर में ‘आई जी एफ-१, इन्सुलिन ग्रोथ हार्मोन-१० तरह अधिक निर्माण होने लगता है। यह पहले ही बताया जा चुका है कि ‘आई जीएफ-1’ से कई प्रकार के कैंसर होने के प्रमाण मिल चुके हैं।

इसके ईलावा-

‘ हैल्थ जनरल’ न्यूजीलैण्ड के अनुसार ‘ए-1’ दूध से हृदय रोग मानसिक रोग, मधुमेह, गठिया, आॅटिज्म (शरीर के अंगो पर नियंत्रण न रहना) आदि रोग होते हैं। सन् 2003 में ‘ए-2’ ‘कार्पोरेशन’ द्वारा किए सर्वेक्षण से पता चला है कि इन गऊओं के दूध् से स्वीडन, यूके, आस्ट्रेलिया, न्यूजिलेंड में हृदय रोग, मधुमेह रोगों में वृद्धि हुई है। फ्रांस तथा जापान में ‘ए-2’ दूध् से इन रोगों में कमी दर्ज की गई है। प्रशन है कि हानिकारक ‘ए-1’ तथा लाभदायक ए-2 दूध् किन गऊओं में है ?

पश्चिमी वैज्ञानिकों के अनुसार ७०% हालिस्टीन, रेड डैनिश और फ्रिजियन गऊएं हानिकारक ‘ए-1’ प्रोटीन वाली है। जर्सी की अनेक जातियां भी इसी प्रकार की है। पर यह स्पष्ट रूप से कोई नहीं बतला रहा कि लाभदायक ‘ए-2’ प्रोटीन वाली गऊएं कौन सी है, कहां है स्वयं जरा ढूंढ़ें। विचार करें!!

ब्राजील में लगभग 40 लाख भारतीय गौवंश तैयार किया गया हैं और पूरे यूरोप में उसका निर्यात हो रहा है।

इनमें अधिकांश गऊएं भारतीय गीर नस्ल और शेष रैड सिंधी तथा सहिवाल हैं। क्या अब बताने की जरूरत है पड़ेगा कि उपयोगी ‘ए-2’ प्रोटीन वाली गऊएं भारतीय है ?

क्या पशुपालन विभाग का दुरूपयोग करके, करोड़ रु. अनुदान देकर, पशु कल्याण के नाम पर भारतीय गौवंश को नष्ट करने की गुप्त योजना पश्चिमी ताकतें चला रही हैं. भोले भारतीयों को उनका आभास तक नहीं है। दूध् बढ़ाने और वंश सुधार के नाम पर भारतीय गौवंश का बीज नाश ‘कृत्रिम गर्भाधन’ करके कत्लखानों से कई गुणा अधिक भारतीय गौवंश का विनाश आपकी सहमति, सहयोग से, आपके अपने द्वारा हो रह है। गौवंश विनाश यानी भारत का विनाश। धन व्यय करके कृत्रिम गर्भाधन से अपने अमूल्य ‘ए-2’ गौवंश को हम स्वयं नष्ट कर रहें हैं।

विषाक्त विदेशी गौवंश से बने संकर भारतीय गौवंश से प्राप्त किया घी, दूध्, दही ही नही, गोबर, गौमुत्रा, स्पर्श और निश्वास भी विषाक्त होगा न? दुग्ध् पदार्थो से हमारा स्वास्थ्य बरबाद नही हो रहा क्या? इनके गोबर, गौमूत्रा से बनी खाद और पंचगव्य औषधिया भी परम हानिकारक प्रभाव वाली होगी। हमारी खेती नष्ट होने, पंचगव्य औषधियों के असफल होने, घी, दूध्, दहीं खाने-पीने पर भी स्वास्थय में सुधार होने की बजाए बिगाड़ का बड़ा कारण यह संकर गौवंश हो सकता है।

समाधान सरल है:

वर्तमान संकर नस का गौवंश ‘ए-1’ तथा ‘ए-2’ के संयुक्त गुणों वाला है। इनमें ५०% से ६०% दोनो गुण हों तो स्वदेशी गर्भधन की व्यवस्था से अगली पीढ़ी में ‘ए-1’ २५% दूसरी बार १२% तथा तीसरी बार ६% रह जाएगा। बिगाड़ने वालों ने सन् 1700 से आज तक 300 साल धैर्य से काम किया, हम 10-12 सा प्रयास क्यों नही कर सकते? करने में काफी सरल है।

स्वदेशी विदेशी का अन्तर- विदेशी गौवंश तथा भारतीय गौवंश में कुछ मौलिक अंतर हमने जो जाने हैं वे निम्न है। पर यह सूचि अन्तिम नही, विद्वान और अनुभवी महानुभव इसमें संशोधन-संर्वधन करने की कृपा करें।

शनिवार, 11 दिसंबर 2010

है को मित्र बना लो नहीं को शत्रु

संसार में दो मुख्य तथ्य हैं- है या नहीं।
इसको आप यूं भी कह सकते हैं कि आपके पास है या आपके पास नहीं है।
है को धनात्मक और नहीं को ऋणात्मक कह सकते हैं। है के पार्श्व में आशा छिपी है और नहीं के पार्श्व में निराशा छिपी है।
प्रायः मनुष्य जो वस्तुएं उसके पास है उसको देखें तो वह सुखी रहता है और जो वस्तुएं उसके पास नहीं है उसके लिए दुःखी रहता है और रोता है।
है और नहीं, धनात्मक और ऋणात्मक, आशा और निराशा आदि के विषय में विद्धानों एवं महापुरुषों ने अनेक सूक्ति लिखी हैं।
हम तो आपसे यही कहेंगे कि है को जानो नहीं को मत जानो। है में सफलता और सुख व प्रसन्नता परिणाम के रूप में मिलेगी जबकि नहीं को जानने में दुःख एवं अप्रसन्नता ही हाथ में लगेगी।
एक बार की बात है कि एक व्यक्ति रोता हुआ चला जा रहा था। उसके साथ एक व्यक्ति और भी चल रहा था। जो व्यक्ति रो रहा था वह थोड़ी देर में हंसने लगा। उसे हंसता देखकर जो व्यक्ति उसके साथ जा रहा था उसने सोचा ऐसा क्या हो गया जो रोता हुआ व्यक्ति अचानक हंसने लगा। न उसको कोई मिला और न उसने किसी से कुछ पूछा। उसके मन में उठने वाली जिज्ञासा ने उसे उससे पूछने के लिए प्रेरित किया तो वह उस व्यक्ति से बोला-'तुमने एकदम रोते-रोते हंसना क्यों प्रारम्भ कर दिया?' उसकी बात सुनकर वह व्यक्ति बोला-'मैं अपने नंगे पांव को देखकर रो रहा था कि भगवान्‌ ने सभी को अच्छे-अच्छे जूते, चप्पल पहनने के लिए दिए हैं और मेरे लिए जूता खरीदने के लिए भी धन नहीं है। यह सोचकर मन बोझिल हो रहा था और तरह-तरह के विचार आ रहे थे। मन दुःखी होकर रोने लगा तो मैं भी अचानक रोने लगा।'

'लेकिन फिर हंसने क्यों लगे?'-उस व्यक्ति ने फिर पूछा।

बात यह है कि जब मैंने सामने वाले व्यक्ति को देखा जिसके पैर नहीं हैं तो मन में सोचा कि मेरे तो पैर हैं और कभी न कभी तो जूते आ ही जाएंगे। पर उसके तो पैर ही नहीं हैं और पैर तो आएंगे नहीं। यह सोचकर मैंने ईश्वर को धन्यवाद दिया कि तूने मेरे पैर तो सही रखे उसके तो हैं ही नहीं। यह सोचकर हंसने लगा था।'-उसकी बात सुनकर रोने वाले व्यक्ति ने कहा।

जो है उसके लिए ईश्वर को सदैव धन्यवाद देना चाहिए। जो आपके पास नहीं है उसके लिए परेशान नहीं होना चाहिए। कर्मशील रहकर अधिकाधिक करके पाने का प्रयास करना चाहिए। सदैव आशावान्‌ रहना चाहिए। निराशा का दामन कदापि नहीं पकड़ना चाहिए। आशा में पाने की संभावना छिपी रहती है। आशा ही कुछ करने के लिए प्रेरित करती है। धनात्मक सोचना चाहिए नाकि ऋणात्मक। धनात्मक पथ पर चलने वाले सदैव उन्नति करते हैं और आगे ही बढ़ते रहते हैं। इसके विपरीत ऋणात्मक पथ पर चलने वाले सदैव अवनति ही पाते हैं और कई काल का ग्रास बन जाते हैं जिसके लिए वे आत्महत्या तक को अपना लेते हैं।

है के लिए प्रसन्न होना चाहिए और नहीं के लिए अप्रसन्न नहीं होना चाहिए। न होने पर जिसके पास है उससे ईर्ष्या भी नहीं करनी चाहिए क्योंकि यह भी आपके लिए तनाव और कुपथ पर चलने के लिए एक सड़क बना देगी जिस पर चलकर या तो आप अपराधी बन जाएंगे अथवा तनाव से ग्रस्त होकर रोगी या आत्महत्यारे बन जाएंगे।

है को जानो जिसके पीछे आशा और धनात्मक सोच छिपी है। आशा ही आपको स्वप्न दिखाती है। स्वप्न देखते हैं तो पूरे भी अवश्य होंगे। पूरे करने के लिए आपको कुछ नहीं करना है बस प्रयास भर करना है। है के लिए प्रभु का सदैव धन्यवाद अदा करें।

नहीं के पीछे निराशा छिपी है, वह तुरन्त आपको अपने अधिकार में ले लेगी और आपका निर्बल मन तुरन्त निराश होकर दुःखी हो जाएगा। जीवन अस्त-व्यस्त हो जाएगा। कुछ भी करने का मन नहीं करेगा। सबकुछ के पीछे नहीं जो आ गया है। नहीं ने आपके अन्दर ऋणात्मकता कूट-कूट कर भर दी है। इसी ऋणात्मकता के बल पर आप सबकुछ उल्टा-पुल्टा करने लगते हैं तो फलस्वरूप असफलता और हानि ही हाथ में लगती है।

मन में ठान लो कि आशा से परिचय बढ़ाना है। आशा ही धनात्मकता की संगत करेगी। धनात्मकता की संगत में सफलता मिलने की सम्भावना शत-प्रतिशत हो जाती है।

कुछ न करने से कुछ करना बेहतर है। बहुत से कार्य तो ऋणात्मकता के कारण कर्त्ता को निराश कर देते हैं और हानि के भय से वह उस कार्य को प्रारम्भ ही नहीं कर पाता है और कार्य प्रारम्भ होने से पूर्व ही असफलता के दर्शन करा देता है।

आपको असफलता से घबराना नहीं चाहिए। आपको आशा और धनात्मकता का कवच ओढ़ना है। असफलता की कोख से सफलता का सूत्र उत्पन्न होता है। इसी सूत्र के बल पर सफलता को अपनी दासी बनाया जा सकता है।

नहीं को कदापि मत पहचानो। अपनी मित्रता है से रखो।

है ही आपको आगे ले जाएगा और धनात्मक सोच के बल पर ही आप आशा को वर लेंगे। आशा ही आपके स्वप्नों के पूर्ण होने की प्रेरणा बनेगी जिसके बल पर आप सफलता को पा ही लेंगे और आपकी मनोकांक्षाएं पूर्ण हो जाने से सब आपके उदाहरण का अनुसरण करने के लिए लालायित होने लगेंगे।

तब उनके लिए यह रहस्य होगा कि आपने यह सब कैसे किया तो आप गर्व से बता सकेंगे कि हमने तो मात्र है को जाना है और नहीं को तो पहचानते भी नहीं हैं। है कि मित्रता ने और नहीं से की गई शत्रुता ने सफलता का सूत्र दे दिया जिससे समस्त भौतिक सुख थोड़े प्रयास के बल पर मिल गए।

आप भी है से मित्रता करके देखें और नहीं को शत्रु बना लें, फिर सफलता आपके साथ ही होगी।