लोग सत्संग के अभाव में ऐसे जीते है जैसे सोये हुये हों, मानो निन्द्राचारी हों। केवल चर्मचक्षुओं के खुले होने से ही आदमी जागा हुआ नही माना जायेगा। आँख खुली तो बोले कि मैं जाग गया नही-नही, हर कदम जागरुपता से आगे बढाया जायें वही व्यक्ति वास्तव में जागा हुआ हैं। ऐसी जाग्रति सत्संग से ही आती हैं। सत्संग के अभाव से, गुरुदीक्षा के अभाव में सारा दिन तेरा-मेरा करते बीत जाता है तो फिर रात को स्वप्न भी ऐसे ही देखते रहते हैं। ५ प्रकार के स्वप्न होते हैं।
१. मात्र कूडा-कर्कट कचरा स्वप्न - दिन में बाजार जाते है लोग कुछ खरीददारी करने तो वहाँ से भी बहुत कुछ कचरा ले आते है किसी से मिले, किसी से बात की, किसी पर दृष्टि पडी या किसी से परिचय हो गया फ़ोन किया, किसी को मैसेज किया या किसी का मैसेज आया ये सब कचरा ही तो है। ये सब कचरा दिन भर में लोग इकट्ठा कर लेते है और फिर रात को स्वप्न में इन्ही को देखते रहते है। धूल बहुत जम जाती है दिन भर में, सत्संग के बिना सिवाय जो भी बात करते है न, समझो कि वो धूल जमा कर रहे हैं। मिट्टी जम रही है, मैल जम रहा हैं। दिन भर हम लोग बाजार जाते है आफ़िस जाते है तो हमारे कपडों में धूल जम जाती है हम कपडे बदल देते है धो देते है साबुन लगाकर हम स्नान करते है शरीर के स्नान की अवश्यकता तो है पर अन्तःकरण की शुद्धता की आवश्यकता महसूस क्यों नही होती ? सत्संग के अभाव के कारण।
२. दूसरे प्रकार के सपने वो होते है बहुत सी आवश्यकताओं के बारे में। दिन भर में मनुष्य को बहुत सी चीजो की आवश्यकता पडती हैं जैसे मुझे ठंडा पानी मिल जाता या ठंडी लस्सी मिल जाती तो कितना मजा आता, तो ये आवश्यकतायें दिन भर में होती है और उनमें से कई आवश्यकतायें पूरी नही होती है तो भूखी आवश्यकताएं परिपूर्ती की मांग करती हैं। फिर स्वप्न में वो प्रकट हो जाती है। जैसे दिन भर किसी ने उपवास किया हो तो रात में स्वप्न देख रहा है कि में आलू की सब्जी खा रहा हूँ, परवल की सब्जी खा रहा हूँ, और रोटी खा रहा हूँ। आलू और गोभी के पराठे खा रहा हूँ दही के साथ और मजा आ रहा है वाह-वाह....। स्वप्न वही देखेगा।
३. तीसरे प्रकार के सपने होते है कुछ ईश्वरीय संकेत के, कुछ गुरु के संकेत के होते हैं कि ऐसा करों, वैसा करों। जैसे त्रिजटा को सपना आया था। जैसे अप्ने एक साधक रहते है अमदावाद में उसको बापू ने कहा कि क्या तु सो रहा है घर में, उठ जल्दी जा अपने होटल में और जो दूध आया है उसको फिकवा दे गटर में। वो जल्दी से गया और उसने दूध को छाना तो उसने देखा कि एक बडी सी मरी हुई छिपकली पडी हुई हैं। तो उसने सोचा कि बापूजी ने मुझे प्रेरणा दी अगर मैं ये दूध ग्राहकों कों दे देता और उनको कुछ हो जाता तो क्या होता ? तो कुछ सपने ईश्वरीय संकेत के होते है और वो बडे गहरे मार्गदर्शक होते हैं। हो सकता है कि आप लोगों को भी ये संकेत मिले हों लेकिन सबको नही मिल पाते हैं क्योंकि लोगों ने उसके साथ अपना संपर्क खो दिया हैं। इसलिये उसके संकेत मिल नही पाते हैं और फिर जीवन में कई प्रश्न बने रहते हैं। संसारी लोगों को भी और कई भक्ति करने वालों को भी कि क्या करुँ मेरा मन नही लगता जप में, मेरा अनुष्ठान पूरा नही हो पाता इसका क्या करुँ तो ये कई प्रश्न बने रहते हैं। तो अगर व्यक्ति शांत रहना सीखे, राग-द्वेष से रहित होना सीखें, आकर्षण-विकर्षण से रहित होना सीखे तो हम उस संकेत को पा सक्ते हैं।
४ चौथे प्रकार के सपने होते है कुछ पिछ्ले जन्मों से भी संबन्ध रखते है जैसे कभी-कभी दिखा कि हम आकाश में उड रहे हैं। अब क्या आदमी कभी आकाश में उड सकता हैं क्या ? संभव ही नही है। लेकिन किसी जन्म में पक्षी बना था उसके संसकार थे चित्त में और स्वप्न में उभरा कि मैं आकाश में उड रहा हूँ। पानी की गहराई में तैर रहा हूँ। तो पिछ्ले जन्मों से ये संबन्ध रखते हैं।
५ पाँचवें प्रकार के सपने होते है जो कि भविष्य से संबन्ध रखते हैं। कभी-कभी स्वप्न में होने वाली घटना आपको स्वप्न में पता चल जाये कि ऐसा होने वाला है। जैसे त्रिजटा को पता चल गया कि हनुमान जी लंका में आग लगाने वाले हैं। कोई पवित्र आत्मा हो या जिनका हृदय शुद्ध हो उसको कई बार बाद में होने वाली घटनायें पहले ही पता चल जाती हैं। हृदय शुद्ध होता हैं तो संकेत मिल जाते हैं। हृदय शुद्ध हो तो अकस्मात ही द्वार खुल जाता है। भविष्य के बारे में संप्रेक्षण हो जाता हैं।
परन्तु ज्युँ-ज्युँ सदगुरु की उपासना होगी भक्ति होगी त्युँ-त्य़ुँ पता चलता है विवेक जगता है कि वास्तव में ये सब स्वप्न हैं। जैसे ५ प्रकार के स्वप्न है न वैसे ही येह जो हम देख रहे है दिन में वो भी एक स्वप्न ही हैं। ये अलग प्रकार का स्वप्न है पर है, यह भी स्वप्न। पर सत्संग और भक्ति के अभाव में यह सत्य प्रतीत होता हैं। तो हमको यह सोचना चाहिये कि रात को स्वप्न में सुख भी होता है और दुख भी होता है परन्तु जब आँख खुली तो न सुख हैं, न दुख हैं और न उसकी असर हैं। तो ज्युँ-ज्युँ हम लोगों की उपासना, भक्ति बढेगी सत्संग सुनेंगे आदरपूर्वक, प्रीतीपूर्वक गुरुदेव का त्युँ-त्य़ुँ आन्तरिक स्थिति भी ऊँची होती जायेगी।
स्रोत :- हरिद्वार कुम्भ - १२ अप्रैल २०१० शाम के सत्र में स्वामी सुरेशानन्द जी (12 APR 0556PM.mp3)
१. मात्र कूडा-कर्कट कचरा स्वप्न - दिन में बाजार जाते है लोग कुछ खरीददारी करने तो वहाँ से भी बहुत कुछ कचरा ले आते है किसी से मिले, किसी से बात की, किसी पर दृष्टि पडी या किसी से परिचय हो गया फ़ोन किया, किसी को मैसेज किया या किसी का मैसेज आया ये सब कचरा ही तो है। ये सब कचरा दिन भर में लोग इकट्ठा कर लेते है और फिर रात को स्वप्न में इन्ही को देखते रहते है। धूल बहुत जम जाती है दिन भर में, सत्संग के बिना सिवाय जो भी बात करते है न, समझो कि वो धूल जमा कर रहे हैं। मिट्टी जम रही है, मैल जम रहा हैं। दिन भर हम लोग बाजार जाते है आफ़िस जाते है तो हमारे कपडों में धूल जम जाती है हम कपडे बदल देते है धो देते है साबुन लगाकर हम स्नान करते है शरीर के स्नान की अवश्यकता तो है पर अन्तःकरण की शुद्धता की आवश्यकता महसूस क्यों नही होती ? सत्संग के अभाव के कारण।
२. दूसरे प्रकार के सपने वो होते है बहुत सी आवश्यकताओं के बारे में। दिन भर में मनुष्य को बहुत सी चीजो की आवश्यकता पडती हैं जैसे मुझे ठंडा पानी मिल जाता या ठंडी लस्सी मिल जाती तो कितना मजा आता, तो ये आवश्यकतायें दिन भर में होती है और उनमें से कई आवश्यकतायें पूरी नही होती है तो भूखी आवश्यकताएं परिपूर्ती की मांग करती हैं। फिर स्वप्न में वो प्रकट हो जाती है। जैसे दिन भर किसी ने उपवास किया हो तो रात में स्वप्न देख रहा है कि में आलू की सब्जी खा रहा हूँ, परवल की सब्जी खा रहा हूँ, और रोटी खा रहा हूँ। आलू और गोभी के पराठे खा रहा हूँ दही के साथ और मजा आ रहा है वाह-वाह....। स्वप्न वही देखेगा।
३. तीसरे प्रकार के सपने होते है कुछ ईश्वरीय संकेत के, कुछ गुरु के संकेत के होते हैं कि ऐसा करों, वैसा करों। जैसे त्रिजटा को सपना आया था। जैसे अप्ने एक साधक रहते है अमदावाद में उसको बापू ने कहा कि क्या तु सो रहा है घर में, उठ जल्दी जा अपने होटल में और जो दूध आया है उसको फिकवा दे गटर में। वो जल्दी से गया और उसने दूध को छाना तो उसने देखा कि एक बडी सी मरी हुई छिपकली पडी हुई हैं। तो उसने सोचा कि बापूजी ने मुझे प्रेरणा दी अगर मैं ये दूध ग्राहकों कों दे देता और उनको कुछ हो जाता तो क्या होता ? तो कुछ सपने ईश्वरीय संकेत के होते है और वो बडे गहरे मार्गदर्शक होते हैं। हो सकता है कि आप लोगों को भी ये संकेत मिले हों लेकिन सबको नही मिल पाते हैं क्योंकि लोगों ने उसके साथ अपना संपर्क खो दिया हैं। इसलिये उसके संकेत मिल नही पाते हैं और फिर जीवन में कई प्रश्न बने रहते हैं। संसारी लोगों को भी और कई भक्ति करने वालों को भी कि क्या करुँ मेरा मन नही लगता जप में, मेरा अनुष्ठान पूरा नही हो पाता इसका क्या करुँ तो ये कई प्रश्न बने रहते हैं। तो अगर व्यक्ति शांत रहना सीखे, राग-द्वेष से रहित होना सीखें, आकर्षण-विकर्षण से रहित होना सीखे तो हम उस संकेत को पा सक्ते हैं।
४ चौथे प्रकार के सपने होते है कुछ पिछ्ले जन्मों से भी संबन्ध रखते है जैसे कभी-कभी दिखा कि हम आकाश में उड रहे हैं। अब क्या आदमी कभी आकाश में उड सकता हैं क्या ? संभव ही नही है। लेकिन किसी जन्म में पक्षी बना था उसके संसकार थे चित्त में और स्वप्न में उभरा कि मैं आकाश में उड रहा हूँ। पानी की गहराई में तैर रहा हूँ। तो पिछ्ले जन्मों से ये संबन्ध रखते हैं।
५ पाँचवें प्रकार के सपने होते है जो कि भविष्य से संबन्ध रखते हैं। कभी-कभी स्वप्न में होने वाली घटना आपको स्वप्न में पता चल जाये कि ऐसा होने वाला है। जैसे त्रिजटा को पता चल गया कि हनुमान जी लंका में आग लगाने वाले हैं। कोई पवित्र आत्मा हो या जिनका हृदय शुद्ध हो उसको कई बार बाद में होने वाली घटनायें पहले ही पता चल जाती हैं। हृदय शुद्ध होता हैं तो संकेत मिल जाते हैं। हृदय शुद्ध हो तो अकस्मात ही द्वार खुल जाता है। भविष्य के बारे में संप्रेक्षण हो जाता हैं।
परन्तु ज्युँ-ज्युँ सदगुरु की उपासना होगी भक्ति होगी त्युँ-त्य़ुँ पता चलता है विवेक जगता है कि वास्तव में ये सब स्वप्न हैं। जैसे ५ प्रकार के स्वप्न है न वैसे ही येह जो हम देख रहे है दिन में वो भी एक स्वप्न ही हैं। ये अलग प्रकार का स्वप्न है पर है, यह भी स्वप्न। पर सत्संग और भक्ति के अभाव में यह सत्य प्रतीत होता हैं। तो हमको यह सोचना चाहिये कि रात को स्वप्न में सुख भी होता है और दुख भी होता है परन्तु जब आँख खुली तो न सुख हैं, न दुख हैं और न उसकी असर हैं। तो ज्युँ-ज्युँ हम लोगों की उपासना, भक्ति बढेगी सत्संग सुनेंगे आदरपूर्वक, प्रीतीपूर्वक गुरुदेव का त्युँ-त्य़ुँ आन्तरिक स्थिति भी ऊँची होती जायेगी।
स्रोत :- हरिद्वार कुम्भ - १२ अप्रैल २०१० शाम के सत्र में स्वामी सुरेशानन्द जी (12 APR 0556PM.mp3)