मासिक साधना उपयोगी तिथियाँ

व्रत त्योहार और महत्वपूर्ण तिथियाँ

25 फरवरी - माघी पूर्णिमा
03 मार्च - रविवारी सप्तमी (शाम 06:19 से 04 मार्च सूर्योदय तक )
06 मार्च -
व्यतिपात योग (दोपहर 14:58 से 07 मार्च दिन 12:02 मिनट तक)
08 मार्च - विजया एकादशी (यह त्रि स्पृशा एकादशी है )
09 मार्च - शनि प्रदोष व्रत
10 मार्च - महा शिवरात्री (निशीथ काल मध्यरात्री 12:24 से 01:13 तक )
11 मार्च - सोमवती अमावस्या (
सूर्योदय से रात्री 1:23 तक )
11 मार्च - द्वापर युगादी तिथि
14 मार्च - षडशीति संक्रांति (पुण्यकाल शाम 4:58 से
सूर्योदय तक)
19 मार्च - होलाष्टक प्रारम्भ
20 मार्च - बुधवारी अष्टमी (
सूर्योदय से दोपहर 12:12 तक)
23 मार्च - आमलकी एकादशी
24 मार्च - प्रदोष व्रत
26 मार्च - होलिका दहन
27 मार्च - धुलेंडी , चैतन्य महाप्रभु जयंती
29 मार्च - संत तुकाराम द्वितीय
30 मार्च - छत्रपति शिवाजी जयन्ती

सोमवार, 26 सितंबर 2011

तमाचे की करामात.....


पूज्य बापू जी के सत्संग-प्रवचन से
मुंबई के नजदीक गणेशपुरी है। गणेशपुरी, वज्रेश्वरी में नाना औलिया नाम के एक महापुरुष रहा करते थे। वे मुक्तानंदजी के आश्रम के नजदीक की सड़क पर मैले कुचैले कपड़े पहने पड़े रहते थे अपनी निजानंद की मस्ती में। वे दिखने में तो सादे-सूदे थे पर बड़ी ऊँची पहुँच के धनी थे।
उस समय घोड़ागाड़ी चलती थी, ऑटोरिक्शा गिने गिनाये होते थे। एक बार एक डिप्टी कलेक्टर (उपजिलाधीश) घोड़ागाड़ी पर कहीं जा रहा था। रास्ते में बीच सड़क पर नाना औलिया टाँग पर टाँग चढ़ाये बैठे थे।
कलेक्टर ने गाड़ीवान को कहाः "हॉर्न बजा, इस भिखारी को हटा दे।"
गाड़ीवान बोलाः "नहीं, ये तो नाना बाबा हैं ! मैं इनको नहीं हटाऊँगा।"
कलेक्टरः "अरे ! क्यों नहीं हटायेगा, सड़क क्या इसके बाप की है ?" वह गाड़ी से उतरा और नाना बाबा की डाँटने लगाः "तुम सड़क के बीच बैठे हो, तुमको अच्छा लगता है ? शर्म नहीं आती ?" बाबा दिखने में दुबले पतले थे लेकिन उनमें ऐसा जोश आया कि उठकर खड़े हुए और उस कलेक्टर का कान पकड़कर धड़ाक से एक ने तमाचा जड़ दिया। आस पास के सभी लोग देख रहे थे कि नाना बाबा ने कलेक्टर को तमाचा मार दिया। अब तो पुलिस नाना बाबा का बहुत बुरा हाल करेगी।
लेकिन ऐसा सुहावना हाल हुआ कि 'साधूनां दर्शनं लोके सर्वसिद्धकरं परम्।' की तरह 'साधूनां थप्पड़ं सर्वसिद्धिकरं परं... महापातकनाशनं... परं विवेकं जागृतम्।' पंजा मार दिया तो उसके पाँचों विकारों का प्रभाव कम हो गया। कलेक्टर ने सिर नीचे करके दबी आवाज में गाड़ीवान को कहाः "गाड़ी वापस लो।" जहाँ ऑडिट करने जा रहा था वहाँ न जाकर वापस गया अपने दफ्तर में और त्यागपत्र लिखा। सोचा, "अब यह बंदों की गुलामी नहीं करनी है। संसार की चीजों को इकट्ठा कर-करके छोड़कर नहीं मरना है, अपनि अमर आत्मा की जागृति करनी है। मैं आज से सरकारी नौकरी को सदा के लिए ठुकराता हूँ और अब असली खजाना पाने के लिए जीवन जीऊँगा।' बन गये फकीर एक थप्पड़ से।
कहाँ तो एक भोगी डिप्टी कलेक्टर और नाना साहब औलिया का तमाचा लगा तो ईश्वर के रास्ते चलकर बन गया सिद्धपुरुष !
तुम में से भी कोई चल पड़े ईश्वर के रास्ते, हो जाय सिद्धपुरुष ! नानासाहब ने एक ही थप्पड़ मारा और कलेक्टर ने अपना काम बना लिया। अब मैं क्या करूँ ? थप्पड़ से तुम्हारा काम होता हो तो मैं उसके लिए भी तैयार हूँ और कहानी-कथा, सत्संग सुनाने से तुम्हारा काम होता हो तो भी मैं तैयार हूँ लेकिन तुम अपना काम बनाने का इरादा कर लो। लग जाय तो एक वचन भी लग जाता है।

आश्रम से प्रकाशित पुस्तक " सत्संग अमृत " से लिया गया प्रसंग
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हिंसक बन गया परम भक्त


परब्रह्म परमात्मा के साथ एकत्व के अनुभव को उपलब्ध स्वामी रामतीर्थ देश-विदेश में घूम-घूमकर ब्रह्मविद्या का उपदेश देते थे। बात फरवरी सन् 1902 की है, 'साधारण धर्मसभा, फैजाबाद' के दूसरे वार्षिकोत्सव में स्वामी रामतीर्थ भी पधारे। स्वामी जी तो वेदान्ती थे। 'सबमें ब्रह्म है, सब ब्रह्म में है, सब ब्रह्म है। मैं ब्रह्म हूँ, आप भी ब्रह्म हैं, ब्रह्म के सिवाय कुछ नहीं है।' – इसी सनातन सत्य ज्ञान की पहले दिन उन्होंने व्याख्या की। श्रोताओं में एक सज्जन श्री नौरंगमल भी मौजूद थे। उनके पास एक मौलवी मोहम्मद मुर्तजा अली खाँ भी बैठे थे। नौरंगमल जी ने मौलवी साहब से कहाः "सुनते हो मौलाना ! यह युवक क्या कह रहा है ! कहता है कि मैं खुदा हूँ।" यह सुनकर मौलवी आपे से बाहर हो गये और कहने लगेः "अगर इस वक्त मुसलमानी राज्य होता तो मैं फौरन इस काफिर की गर्दन उड़ा देता। लेकिन अफसोस ! मैं यहाँ मजबूर हूँ।"
दूसरे दिन मौलवी साहब फिर धर्मसभा में गये। वहाँ सुबह का सत्संग चल रहा था। मंडप श्रद्धालुओं से भरा हुआ था। स्वामी रामतीर्थ फारसी में एक भजन गा रहे थे जिसका मतलब थाः "हे नमाजी ! तेरी यह नमाज है कि केवल उठक-बैठक ? अरे, नमाज तो तब है जब ईश्वर के विरह में ऐसा बेचैन और अधीर हो जाय कि न तुझे बैठते चैन मिले और न खड़े होते। असली नमाज तो तभी कहलायेगी, नहीं तो यह केवल कवायद मात्र है।"
स्वामी रामतीर्थ यह भजन बिल्कुल तल्लीन हो कर गा रहे थे और उनकी आँखों से आँसू झर रहे थे। उस समय उनके चेहरे से अलौकिक तेज बरस रहा था। मौलवी साहब स्वामी रामतीर्थ की उस तल्लीनता, भगवत्प्रेम और भगवत्समर्पण से बहुत प्रभावित हुए। भजन समाप्त होते ही मौलवी अपनी जगह से उठे और स्वामी रामतीर्थ के पास पहुँचकर अपने वस्त्रों में छुपाया हुआ एक खंजर (कटार) निकालकर उनके कदमों में रख दिया और बोलेः "हे राम ! आप सचमुच राम है, मैं आज इस वक्त बहुत बुरी नीयत से आपके पास आया था। मैं आपका गुनहगार हूँ। मुझे माफ कर दीजिये। मैं बहुत शर्मिन्दा हूँ।"
स्वामी रामतीर्थ मुस्कराये और बोलेः "क्यों गंदा बंदा बनता है ? जो तू है वही तो मैं हूँ। मैं तुझसे अलग कब हूँ ? जब, आइंदा किसी से भी नफरत मत करना क्योंकि सबके भीतर वही सर्वव्यापी खुदा मौजूद है। हालांकि तू उससे बेखबर है, पर वह तेरी हर बात को जानता है। अपने खयालात पवित्र रख। खुदी को भूल जा और खुदा को याद रख, जो तेरे नजदीक से भी नजदीक है, यानी जो तू खुद है।" – ऐसा कहकर स्वामी जी ने बहुत प्यार से मौलवी के सिर पर हाथ फेरा और मौलवी अपना सिर स्वामी जी के चरणों पर रख बच्चों की तरह रोने लगे। रोते-रोते मौलवी की आँखें लाल हो गयीं। वे किसी प्रकार से भी स्वामी जी के चरण छोड़ नहीं रहे थे। बस, एक ही रट लगा रखी थीः "मुझे माफ कर दीजिये, मुझे माफ कर दीजिये।" बड़ी मुश्किल से उन्हें शांत किया गया। तब से वह मौलवी मुहम्मद मुर्तजा अली खाँ उनका अनन्य भक्त हो गया। उसने अपने आपको स्वामी जी के श्रीचरणों में समर्पित कर दिया और उसका जीवन भक्तिमय हो गया।
ब्रह्मनिष्ठ महापुरुष सभी के आत्मीय स्वजन है। वे किसी को भी अपने से अलग नही देखते और प्राणिमात्र पर अपनी करूणा-कृपा रखते हैं। वे सभी का आत्मोत्थान चाहते हैं। वे हमारे अंतःकरण में भरे कूड़े-कचरे को अपने उपदेशों द्वारा बाहर निकाल फेंकते हैं और हमारे हृदय को निर्मल व पवित्र बना देते हैं। वे हमें जीवन जीने की सही राह दिखाते हैं और जीवन को जीवनदाता भगवान की ओर ले जाते हैं।
स्वामी रामतीर्थ का रसमय जीवन आज भी दिख रहा है – कहीं कोई बापू जी कहता है, कोई साँईं कहता है परंतु अठखेलियाँ वही सच्चिदानंद की.... सभी को हरिनाम के द्वारा अपने ब्रह्मसुख का रस प्रदान करने वाले ऐसे कौन हैं इस समय ? जान गये, मान गये, पहचान गये – स्वामी रामतीर्थ का प्यार, भले नाम बदलकर, वही तो डाँट रहा है !

आश्रम से प्रकाशित पुस्तक " सत्संग अमृत " से लिया गया प्रसंग
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