लक्ष्मी चार प्रकार की होती है। एक होता है वित्त, दूसरा होता है धन, तीसरी होती है लक्ष्मी और चौथी होती है महालक्ष्मी जिस धन से भोग-विलास, आलस्य, दुराचार हो वह पापलक्ष्मी, अलक्ष्मी है।
जिस धन से सुख-वैभव भोगा जाय वह वित्त है।
जिस धन से सुख-वैभव भोगा जाय वह वित्त है।
जिस धन से कुटुम्ब-परिवार को भी सुखी रखा जाय वह लक्ष्मी है और
जिस धन से परमात्मा की सेवा हो, परमात्म तत्त्व का प्रचार हो, परमात्म-शांति के गीत दूसरों के दिल में गुँजाये जायें वह महालक्ष्मी है।
हम लोग इसीलिए महालक्ष्मी की पूजा करते हैं कि हमारे घर में जो धन आये, वह महालक्ष्मी ही आये। महालक्ष्मी नारायण से मिलाने का काम करेगी। जो नारायण के सहित लक्ष्मी है, वह कुमार्ग में नहीं जाने देती। वह धन कुमार्ग में नहीं ले जायेगा, सन्मार्ग में ले जायेगा। धन में 64 दोष हैं और 16 गुण हैं, ऐसा वसिष्ठजी महाराज बोलते हैं।
सनातन धर्म ऐसा नहीं मानता है कि धनवानों को ईश्वर का द्वार प्राप्त नहीं होता, धनवान ईश्वर को नहीं पा सकते। अपने शास्त्रों के ये दृष्टान्त हैं कि जनक राजा राज्य करते थे, मिथिला नरेश थे और आत्मसाक्षात्कारी थे। भगवान राम जिनके घर में प्रकट हुए, वे दशरथ राजा राज्य करते थे, धनवान थे ही। जो सत्कर्मों में लक्ष्मी को लुटाता है, खुले हाथ पवित्र कार्यों में लगाता है उसकी लक्ष्मी कई पीढ़ियों तक बनी रहती है, जैसे राजा दशरथ, जनक आदि के जीवन में देखा गया। 22 पीढ़ियाँ चली जनक की, 22 जनक हो गये।
दीपावली में लक्ष्मी पूजन की प्रथा देहातों में भी है, शहरों में भी है। इस पर्व में जो व्यक्ति लक्ष्मी और तुलसी का आदर पूजन करेगा, वह धन-धान्य तथा आरोग्य पाकर सुखी रहेगा।
स्रोतः ऋषि प्रसाद, नवम्बर 2010, पृष्ठ संख्या 8, अंक 215
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