मासिक साधना उपयोगी तिथियाँ

व्रत त्योहार और महत्वपूर्ण तिथियाँ

25 फरवरी - माघी पूर्णिमा
03 मार्च - रविवारी सप्तमी (शाम 06:19 से 04 मार्च सूर्योदय तक )
06 मार्च -
व्यतिपात योग (दोपहर 14:58 से 07 मार्च दिन 12:02 मिनट तक)
08 मार्च - विजया एकादशी (यह त्रि स्पृशा एकादशी है )
09 मार्च - शनि प्रदोष व्रत
10 मार्च - महा शिवरात्री (निशीथ काल मध्यरात्री 12:24 से 01:13 तक )
11 मार्च - सोमवती अमावस्या (
सूर्योदय से रात्री 1:23 तक )
11 मार्च - द्वापर युगादी तिथि
14 मार्च - षडशीति संक्रांति (पुण्यकाल शाम 4:58 से
सूर्योदय तक)
19 मार्च - होलाष्टक प्रारम्भ
20 मार्च - बुधवारी अष्टमी (
सूर्योदय से दोपहर 12:12 तक)
23 मार्च - आमलकी एकादशी
24 मार्च - प्रदोष व्रत
26 मार्च - होलिका दहन
27 मार्च - धुलेंडी , चैतन्य महाप्रभु जयंती
29 मार्च - संत तुकाराम द्वितीय
30 मार्च - छत्रपति शिवाजी जयन्ती

सोमवार, 28 फ़रवरी 2011

कौन है तुम्हारा जीवन सारथी ? - पूज्य बापू जी

तीन मित्र थे। उन्होंने शर्त रखी कि देखें, अधिक समय बदबू कौन सहन कर सकता है ? वे एक बूढ़ा बकरा, जिसके शरीर पर गंदगी, मैल लगी थी, ले आये और कमरे में रख दिया। एक मित्र कमरे के अंदर गया और पाँच मिनट में वापस गया कि 'अपने से यह बदबू सहन नहीं होती।' फिर दूसरा गया... गया और वापस आया। फिर तीसरा गया। तीसरा गया तो उसकी बदबू से बकरा ही बाहर गया।

अब यह है दृष्टांत। ऐसे ही हमारा अहंकार, हमारी मैली वासना जब भीतर चली जाती है आँख के द्वारा, कान के द्वारा, किसी के द्वारा तो हमारा आनंद बाहर चला जाता है, सुख भाग जाता है। वासना में इतनी बदबू होती है कि हमारी जान निकाल देती है वह। जीवरूपी बकरे को इतना सताती है वासना कि वह भी बेचारा कह उठता है कि 'मेरी तो जान निकल गयी है !'

आपे देखा होगा व्यवहार में, ऐसे-ऐसे काम करते हैं कि आपकी जान निकल जाती है। आप ऐसा महसूस करते हैं कि 'मकान तो बना लेकिन हमारी तो जान निकल गयी। फलाना-फलाना काम करते हुए हमारी जान निकल गयी !' अनुभव होता है ! तो वासना दिखती तो साफ सुथरी, हट्टी-कट्टी है लेकिन वह अपनी जान को, अपनी मस्ती को, सुख को बाहर निकाल देती है। चुपचाप बैठे हैं और ऐसे कोई घड़ियाँ हैं जिनमें कोई वासना नहीं तो वह एकाध घड़ी इतनी महत्त्वपूर्ण है, वह एकाथ क्षण इतना सुखद है कि उस सुखद क्षण का इन्द्र के वैभव के साथ मुकाबला करो तो इन्द्र का वैभव भी तुच्छ दिखता है, इतनी उस निर्वासनिक अवस्था में शांति, आनंद, माधुर्य की झलकियाँ होती है।

देवताओं के पास सुख-सुविधाएँ ज्यादा होती हैं, वे भोगी होते हैं इसलिए परमात्मा को नहीं पा सकते हैं। दैत्यों में तमोगुण होता है इसलिए वे विवेक की गद्दी पर नहीं बैठ सकते। एक मनुष्य-शरीर ऐसा है कि अति तमो है अति सत्त्व, अति भोग हैं। मनुष्य है मध्य का। अब जिधर का वह संग करे, चाहे गुणातीत तत्त्व का संग करे...

एक बात और समझ लेना। जो आदमी जैसा संग करता है, वह वैसा हो जाता है। तुच्छ काम करने वाले व्यक्तियों का संग करो तो तुम्हारी प्रतिष्ठा भी तुच्छ होने लगती है। पवित्र आत्मा, परोपकारी आत्मा, संत, साधक जिनका हृदय ऊँचा है, चरित्र ऊँचा है, ऐसे व्यक्तियों का संग करते हैं तो आप ऊँचे होने लगते हैं। वासना अति तुच्छ है और इन्द्रियों रूपी नाली के द्वारा वह मजा चाहती है। अगर आदमी वासना का संग करता है तो तुच्छ हो जाता है और विवेक का संग करता है तो परब्रह्म परमात्मा का साक्षात्कारी ज्ञानीस्वरूप, ईश्वरस्वरूप हो जाता है। अगर हम विवेक का संग करते हैं तो हम ईश्वर के साथ हो जाते हैं और वासना का संग करते हैं तो नरक के साथ हो जाते हैं। हम मध्य में हैं। मनुष्य जन्म एक जंक्शन है, अब जिधर को जायें।

वासना और कमजोरी के विचार आदमी का जितना सत्यानाश करते हैं, उतना तो मौत भी नहीं करती। मौत तो एक बार मारती है लेकिन कमजोर विचार और वासनाएँ करोड़ों जन्मों तक मारती रहेंगी। वासना जीव को अंधा कर देती है। अपने तुच्छ स्वभाव, मलिन स्वभाव से जीव इतने आक्रान्त हो जाते हैं कि हृदय में बैठे हुए विश्वेश्वर का कोई पता ही नहीं ! तुम्हारे जीवनरथ का सारथी कौन है ? अपने-आपसे पूछना चाहिए।
शरीर रथ है, इन्द्रियाँ घोड़े हैं। अब सारथी कामना है, काम है कि राम है ? बुद्धि निर्णय करे, मन उसके विषय में विचार करे और इन्द्रियाँ तदनुकूल चलें तो समझो आप राम तक पहुँच जायेंगे। इन्द्रियों ने देखा, मन ने उसकी प्राप्ति के लिये सोचा और बुद्धि उसमें लग गयी तो समझो बरबादी हो गयी। कभी-कभी आपका विवेक इन्कार करता है लेकिन इन्द्रियाँ, मन और बुद्धि उधर को खींचते हैं। बुद्धि कुछ कह रही है और हृदय कुछ और कह रहा है तो उस वक्त बुद्धि की बात को ठुकरा दो, क्योंकि वह भीतरवाला अंतर्यामी जो है , तुम्हारा हृदय जो है , वह ईश्वर के करीब होता है, विवेक के करीब होता है।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, फरवरी 2011, पृष्ठ संख्या 6,7 अंक 218