कार्तिक मास के अन्य महत्वपूर्ण नियम - २
कार्तिक में तिल का दान, नदी का स्नान, सदा साधु-पुरुषों का सेवन और पलाश के पत्तों में भोजन सदा मोक्ष देने वाला है। कार्तिक के महीनें में मौन-व्रत का पालन, पलाश के पत्ते में भोजन, तिल मिश्रित जल से स्नान, निरन्तर क्षमा का आश्रय और पृथ्वी पर शयन करने वाला पुरुष युग-युग के उपार्जित पापों का नाश कर डालता है। जो कार्तिक मास में भगवान विष्णु के सामने उषाकाल तक जागरण करता है, उसे सहस्त्र गोदानों का फल मिलता है। पितृ-पक्ष में अन्नदान करने से तथा ज्येष्ठ और आषाढ मास मे जल देने से मनुष्यों को जो फल मिलता है, वह कार्तिक में दूसरों का दीपक जलाने मात्र से प्राप्त हो जाता है। जो बुद्धिमान कार्तिक में मन, वाणी और क्रिया द्वारा पुष्कर तीर्थ का स्मरण करता है, उसे लाखों-करोडों गुना पुण्य होता है। माघ मास में प्रयाग, कार्तिक में पुष्कर और वैशाख मास में अवन्तीपुरी (उज्जैन) - ये एक युगतक उपार्जित किये हुए पापों का नाश कर डालते हैं। कार्तिकेय ! संसार में विशेषतः कलियुग में वे ही मनुष्य धन्य हैं, जो सदा पितरों के उद्धार के लिये श्रीहरि का सेवन करते हैं । बेटा ! बहुत से पिण्ड देने और गया में श्राद्ध आदि करने की क्या आवश्यकता है। वे मनुष्य तो हरिभजन के ही प्रभाव से पितरों का नरक से उद्धार कर देते हैं। यदि पितरों के उद्देश्य से दूध आदि के द्वारा भगवान विष्णु को स्नान कराया जाय तो वे पितर स्वर्ग में पहुँचकर कोटि कल्पों तक देवताओं के साथ निवास करते हैं। जो कमल के एक फूल से भी देवेश्वर भगवान लक्ष्मीपति का पूजन करता है, वह एक करोड वर्ष तक के पापों का नाश कर देता है। देवताओं के स्वामी भगवान विष्णु कमल के एक पुष्प से भी पूजित और अभिवन्दित होने पर एक हजार सात सौ अपराध क्षमा कर देते है। षडानन ! जो मुख में, मस्तक पर तथा शरीर में भगवान की प्रसादभूता तुलसी को प्रसन्नतापूर्वक धारण करता हैं, उसे कलियुग नहीं छूता। भगवान विष्णु को निवेदन किये हुए प्रसाद से जिसके शरीर का स्पर्श होता है, उसके पाप और व्याधियाँ नष्ट हो जाती है। शंख का जल, श्री हरि को भक्तिपूर्वक अर्पण किया हुआ नैवेद्य, चरणोदक, चन्दन तथा प्रसाद स्वरूप धूप - ये ब्रह्महत्या का भी पाप दूर करने वाले हैं।
स्रोत - पद्मपुराण, उत्तरखण्ड, अध्याय - ११९-१२०
कार्तिक में तिल का दान, नदी का स्नान, सदा साधु-पुरुषों का सेवन और पलाश के पत्तों में भोजन सदा मोक्ष देने वाला है। कार्तिक के महीनें में मौन-व्रत का पालन, पलाश के पत्ते में भोजन, तिल मिश्रित जल से स्नान, निरन्तर क्षमा का आश्रय और पृथ्वी पर शयन करने वाला पुरुष युग-युग के उपार्जित पापों का नाश कर डालता है। जो कार्तिक मास में भगवान विष्णु के सामने उषाकाल तक जागरण करता है, उसे सहस्त्र गोदानों का फल मिलता है। पितृ-पक्ष में अन्नदान करने से तथा ज्येष्ठ और आषाढ मास मे जल देने से मनुष्यों को जो फल मिलता है, वह कार्तिक में दूसरों का दीपक जलाने मात्र से प्राप्त हो जाता है। जो बुद्धिमान कार्तिक में मन, वाणी और क्रिया द्वारा पुष्कर तीर्थ का स्मरण करता है, उसे लाखों-करोडों गुना पुण्य होता है। माघ मास में प्रयाग, कार्तिक में पुष्कर और वैशाख मास में अवन्तीपुरी (उज्जैन) - ये एक युगतक उपार्जित किये हुए पापों का नाश कर डालते हैं। कार्तिकेय ! संसार में विशेषतः कलियुग में वे ही मनुष्य धन्य हैं, जो सदा पितरों के उद्धार के लिये श्रीहरि का सेवन करते हैं । बेटा ! बहुत से पिण्ड देने और गया में श्राद्ध आदि करने की क्या आवश्यकता है। वे मनुष्य तो हरिभजन के ही प्रभाव से पितरों का नरक से उद्धार कर देते हैं। यदि पितरों के उद्देश्य से दूध आदि के द्वारा भगवान विष्णु को स्नान कराया जाय तो वे पितर स्वर्ग में पहुँचकर कोटि कल्पों तक देवताओं के साथ निवास करते हैं। जो कमल के एक फूल से भी देवेश्वर भगवान लक्ष्मीपति का पूजन करता है, वह एक करोड वर्ष तक के पापों का नाश कर देता है। देवताओं के स्वामी भगवान विष्णु कमल के एक पुष्प से भी पूजित और अभिवन्दित होने पर एक हजार सात सौ अपराध क्षमा कर देते है। षडानन ! जो मुख में, मस्तक पर तथा शरीर में भगवान की प्रसादभूता तुलसी को प्रसन्नतापूर्वक धारण करता हैं, उसे कलियुग नहीं छूता। भगवान विष्णु को निवेदन किये हुए प्रसाद से जिसके शरीर का स्पर्श होता है, उसके पाप और व्याधियाँ नष्ट हो जाती है। शंख का जल, श्री हरि को भक्तिपूर्वक अर्पण किया हुआ नैवेद्य, चरणोदक, चन्दन तथा प्रसाद स्वरूप धूप - ये ब्रह्महत्या का भी पाप दूर करने वाले हैं।
स्रोत - पद्मपुराण, उत्तरखण्ड, अध्याय - ११९-१२०