मासिक साधना उपयोगी तिथियाँ

व्रत त्योहार और महत्वपूर्ण तिथियाँ

25 फरवरी - माघी पूर्णिमा
03 मार्च - रविवारी सप्तमी (शाम 06:19 से 04 मार्च सूर्योदय तक )
06 मार्च -
व्यतिपात योग (दोपहर 14:58 से 07 मार्च दिन 12:02 मिनट तक)
08 मार्च - विजया एकादशी (यह त्रि स्पृशा एकादशी है )
09 मार्च - शनि प्रदोष व्रत
10 मार्च - महा शिवरात्री (निशीथ काल मध्यरात्री 12:24 से 01:13 तक )
11 मार्च - सोमवती अमावस्या (
सूर्योदय से रात्री 1:23 तक )
11 मार्च - द्वापर युगादी तिथि
14 मार्च - षडशीति संक्रांति (पुण्यकाल शाम 4:58 से
सूर्योदय तक)
19 मार्च - होलाष्टक प्रारम्भ
20 मार्च - बुधवारी अष्टमी (
सूर्योदय से दोपहर 12:12 तक)
23 मार्च - आमलकी एकादशी
24 मार्च - प्रदोष व्रत
26 मार्च - होलिका दहन
27 मार्च - धुलेंडी , चैतन्य महाप्रभु जयंती
29 मार्च - संत तुकाराम द्वितीय
30 मार्च - छत्रपति शिवाजी जयन्ती

मंगलवार, 23 अगस्त 2011

विद्या क्या है ?... (पूज्य बापू जी)



विद्या ददाति विनयम्। विद्या से विनय प्राप्त होता है। यदि विद्या पाकर भी अहंकार बना रहा तो ऐसी विद्या किस काम की ! ऐसी विद्या न तो स्वयं का कल्याण करती है न औरों के ही काम आती है।

एक समय जयपुर में राजा माधवसिंह का राज्य था। राज्य-सिंहासन पर बैठने से पूर्व माधवसिंह एक सामान्य जागीरदार का पुत्र था। बाल्यकाल से ही वह बड़ा ऊद्यमी और शैतान था। पढ़ने लिखने में उसकी रूचि न थी।

उसके बाल्यकाल के गुरू थे संसारचन्द्र। यदि माधवसिंह को कोई पाठ नहीं आता तो वे उसे कठोर सजा देते। सच्चे गुरू शिष्य का अज्ञान कैसे सहन कर लेते ! बड़ा होने पर बचपन का वही ऊधमी माधवसिंह जयपुर का राजा बना।

एक दिन माधवसिंह बड़ा दरबार लगाकर बैठा था, तब किसी ने राजदरबार में आकर संसारचन्द्र की शिकायत की, जबकि वे बिल्कुल निर्दोष थे।

माधवसिंह ने संसारचन्द्र को राजदरबार को उपस्थित करने का आदेश दिया। संसारचन्द्र निर्भयतापूर्वक राजदरबार में आये।

माधवसिंह बोलाः "गुरूजी ! आपको याद होगा कि किसी जमाने में आप मेरे गुरु थे और मैं आपका शिष्य।"

संसारचन्द्र याद करने लगे तो माधवसिंह ने पुनः कहाः "जब मुझे कोई पाठ नहीं आता था तब आप मुझे डंडे से मारते थे।"

संसारचन्द्र के प्राण कंठ तक आ गये। उन्होंने सोचा कि 'अब माधवसिंह जरूर मुझे फाँसी पर लटकायेगा। इसकी क्रूरता तो प्रख्यात है।'किन्तु तभी स्वस्थ होकर संसारचन्द्र ने कहाः "महाराज ! सत्ता का नशा मनुष्य को खत्म कर देता है। यदि मुझे पहले से ही इस बात का पता होता कि आप जयपुर नरेश बनने वाले हैं तो मैंने आपको उससे भी ज्यादा कठोर सजाएँ दी होतीं। आपको राजा की योग्यता दिलाने के लिए मैंने ज्यादा दंड दिया होता। यदि मैं ऐसा कर पाता तो जो आज आप विद्या को लज्जित कर रहे है, उसकी जगह उसे प्रकाशित करते।"

सारी सभा मन-ही-मन संसारचन्द्र की निर्भयता की प्रशंसा करने लगी। माधवसिंह को भी अपनी क्रूरता के लिए पश्चाताप होने लगा। उसने गुरु संसारचन्द्र से क्षमा माँगी और उन्हें सम्मानपूर्वक विदा किया।

जो विद्या अहं को जगाकर विकृति पैदा करे, वह विद्या ही नहीं है। विद्या तो मनुष्य के व्यक्तित्व को निखारने का काम करती है और ऐसी विद्या प्राप्त होती है ब्रह्मज्ञानी महापुरुषों के चरणों में।

धन्य हैं स्पष्टवक्ता संसारचन्द्र और धन्य हैं गुरु को हितैषी मानकार राजमद छोड़ने व अपनी चतुराई चूल्हे में डालने वाला माधवसिंह !राजसत्ता का मद छोड़कर सदगुरू का आदर करने वाले छत्रपति शिवाजी की नाईं इस विवेकी ने भी अपनी उत्तम सूझबूझ का परिचय दिया।

क्या आप लोग भी अपने हितैषियों की कठोरता का सदुपयोग करेंगे ? या बचाव की बकवास करके अवहेलना करेंगे ?

स्रोतः ऋषि प्रसाद, मई 2010, पृष्ठ संख्या 9, अंक 209

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ