महाभारत का युद्ध पूरा हुआ। पाण्डव विजयी हुए। कौरवों का संहार हुआ। भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर से कहाः
"धर्मराज ! युद्ध पूरा हुआ है। धर्म कि विजय हुई है। अधर्मियों का नाश हुआ है। अब तुम राज्याभिषेक की तैयारी करो। राज्य की बागडोर सँभालो।"
युधिष्ठिर ने कहाः "प्रभु ! हजारों-लाखों क्षत्रिय युवकों का रक्त बहा है। अपने कितने ही स्वजन इस युद्ध में स्वाहा हो गये हैं। अब मुझे वैराग्य आ गया है। राजगद्दी पर बैठना मुझे रूचता नहीं। सोचता हूँ: कुछ दिन के लिए गंगा किनारे चला जाऊँ। एकान्त में रहकर तपस्या करूँ, ध्यान-भजन करूँ, प्रायश्चित करके अपने कल्मष धोऊँ। निर्मल होकर आऊँ फिर शांति से राज्य करूँ।"
श्रीकृष्ण मुस्कुराये। बोलेः "पाण्डुपुत्र ! फिर तुम शांति से राज्य नहीं कर सकते क्योंकि अब कलियुग का प्रवेश हो रहा है। उसके लक्षणों की झाँकी करनी हो तो तुम पाँचों भाई भिन्न-भिन्न दिशाओं में घूमने चले जाओ। वहाँ पाँचों को कुछ-न-कुछ अलग-अलग आश्चर्य दिखेंगे। जाकर आओ। शाम को इसके बारे में बात करेंगे।"
पाँचों पाण्डव घूमने चले गये।
युधिष्ठिर ने देखा कि एक हाथी खड़ा है। उसकी दो सूँड है। आश्चर्य ! दो सूँडवाला हाथी ! देखकर धर्मराज दंग रह गये।
अर्जुन ने दूसरा आश्चर्य देखा। उत्तर दिशा में एक पक्षी है। उसके पंख पर वेद के मंत्र और धर्म की गाथाएँ लिखी हैं, लेकिन वह पक्षी मुर्दे का मांस खा रहा है।
भीम ने तीसरा आश्चर्य देखा। एक गाय अपनी नवजात बछड़ी को इस प्रकार चाट रही है कि बछड़ी लहूलुहान हो रही है। फिर भी गाय चाटना छोड़ती नहीं।
सहदेव ने चौथा आश्चर्य देखा। पाँच-छः कुएँ हैं। इर्दगिर्द के सभी कुओं में छलोछल पानी भरा है और बीचवाला कुआँ बिल्कुल खाली है।
नकुल ने पाँचवाँ आश्चर्य देखा। एक पहाड़ से चट्टान गिर रही है। पेड़ों से टकराई लेकिन रूकी नहीं। दूसरी चट्टानों से आ लगी, लेकिन वे उसे रोक नहीं पाईँ।आखिर वह चट्टान लुढ़कती-लुढ़कती नीचे आते-आते एक तिनके के सहारे रूक गई। जिसे पेड़ न थाम सके, चट्टानें न थाम सकीं उसे एक छोटे-से तिनके ने थाम लिया। बड़ा आश्चर्य !
पाँचों भाई इस प्रकार पाँच आश्चर्य देखकर शाम को श्रीकृष्ण के पास आये और अपनी-अपनी बात बताई। युधिष्ठिर के द्वारा देखे गये दो सूँडवाले हाथी के बारे में बताते हुए श्रीकृष्ण बोलेः
"दो सूँडवाला हाथी माने कलियुग में दोनों तरफ से शोषण करने वाले शासक होंगे। दूसरा आश्चर्य कि पक्षी के पंख पर शास्त्र लिखे हों और वह पक्षी मुर्दे का मांस खा रहा हो। इसका मतलब है कि कलियुग में मत, पंथ, सम्प्रदाय आदि शास्त्र की बातें करनेवाले बहुत लोग होंगे, लेकिन वे मुर्दे विषयों की कामनावाले ज्यादा होंगे।
तीसरा आश्चर्य कि गाय अपनी बछड़ी को चाट-चाटकर लहूलुहान कर रही थी अर्थात् कलियुग में आदमी पुत्र-परिवार को इतना मोह करेगा, इतनी ममता करेगा कि बच्चे अपने पैरों पर खड़े हो जायें, अपने आत्मविश्वास में टिक जायें, ऐसी योग्यता ही नष्ट कर देगा। बच्चों को जरा छोड़ देना चाहिए, उन्हें अपने पैरों पर खड़े होने देना चाहिए। मोह-ममता करके उनका जितना अधिक लालन-पालन करोगे, ऐश-आराम में रखोगे, उतनी ही उनकी जीवन-शक्ति कुण्ठित रह जाएगी।
चौथा आश्चर्य कि चारों ओर के कुओं में पानी और बीच का कुआँ खाली। इसका मतलब यह है कि कलियुग के धनवान, वैभववान, सत्तावान, साधन-सम्पन्न श्रीमान् लोग शादी-ब्याह, पार्टियों में लाखों रूपये खर्च कर डालेंगे लेकिन पड़ोस में ही कोई दीन-दुखिया रहता हो, अस्त-व्यस्त जीवन बिता रहा हो, भूखा-प्यासा दिन काट रहा हो तो उसके घर में सहयोग करने की बात नहीं सोचेंगे, सहायरूप नहीं बनेंगे। दिखावे में तो लाखों रूपये फूँक मारेंगे लेकिन बुझते हुए जीवनदीप में तेल नहीं डालेंगे। अपनी घर की दीवाली तो सब मनाते हैं, लेकिन कभी-कभी साधनों से रहित पड़ोसियों के घर में भी दीवाली मनाना चाहिए। उनके बच्चों से स्नेहकरना चाहिए, उनको मिठाई खिलाना चाहिए, आर्थिक सहाय करना चाहिए।
पाँचवाँ आश्चर्य यह था कि पहाड़ों से चट्टान गिरी जिसको बड़े-बड़े पेड़ न थाम सके, दूसरी चट्टाने न थाम सकीं और घास के छोटे से तिनके ने थाम लिया। इसका मतलब यह है कि कलियुग में आदमी के पास धन और सत्ता की व्यवस्था होगी फिर भी उसका पतन धन या सत्ता से रूकेगा नहीं। उसका मन नीचे के केन्द्रों में गिरता रहेगा। धन के ढेर उसे थाम नहीं सकेंगे, सत्ता का प्रभाव उसे थाम नहीं सकेगा, लेकिन रामनाम का छोटा-सा तिनका भी गिरते हुए मन को थाम लेगा।"
ईश्वर-नाम संकीर्तन की बड़ी महिमा है ! कीर्तन करते-करते फिर थोड़ी देर शान्त हो जाना चाहिए। जप करते-करते उसके अर्थ में लीन हो जाना चाहिए। सत्संग की पुस्तक पढ़ते-पढ़ते आनन्द आ जाये तो पढ़ना रोक दो, जप करना रोक दो और आनन्दस्वरूप ईश्वर में खो जाओ, अपने आत्मस्वरूप में गोता मारो।
रात्रि को सोते समय भी कोई अच्छी पुस्तक पढ़कर सोओ। तुम्हारे अचेतन मन में आत्मरस आयेगा। सत्संग-ध्यान की कैसेट सुनते-सुनते सो जाओ, तुम्हारी निद्रा योगनिद्रा में बदलने लगेगी। जीवन मधुर और सुख शांति से समृद्ध होने लगेगा।
सुबह उठते ही सदा उम्दा विचार करो। हम लोग तो दूसरों की चीजों को देखकर ईर्ष्या करते हैं और ऐसी चीजें हमारे पास आ जायें..... ऐसी कामना करते हैं। अरे भोले महेश ! प्रारब्ध में होगा और पुरूषार्थ जुड़ेगा तो वे नश्वर चीजें आकर ही रहेंगी। तू उनकी चिन्ता और कामना मत कर। तू तो अपने आपमें ही डट जा।
मानव ! तुझे नहीं याद क्या ? तू ब्रह्म का ही अंश है।
कुल गोत्र तेरा ब्रह्म है, सदब्रह्म तेरा वंश है।।
चैतन्य है तू अज अमल है, सहज ही सुखराशि है।
जन्मे नहीं मरता नहीं, कूटस्थ है अविनाशी है।।
जो आध्यात्मिक उन्नति करता है, उसकी भौतिक उन्नति सहज में होने लगती है। सुख भीतर की चीज है और भौतिक चीज बाहर की है। सुख और भौतिक चीजों में कोई विशेष सम्बन्ध नहीं है।
दरिद्र कौन है ? जो दूसरों से सुख चाहता है, वह दरिद्र है। मूर्ख कौन है ? जो इस संसार को सत्य मानकर उस पर विश्वास करता है, वह मूर्ख है। संसार के स्वामी जगदीश्वर को नहीं खोजता है, वह महामूर्ख है।
अपनी मनोवांछित इच्छाओं के मुताबिक काम्य पदार्थ पाकर जो सुखी होना चाहता है वह सुख और विघ्न-बाधाओं के बीच दुःखी होते-होते जीवन पूरा कर देता है।
समय बीत जायेगा और काम अधूरा रह जायेगा। आखिर पश्चाताप हाथ लगेगा। उससे पहले ईश्वर के राह की यात्रा शुरू कर दो। रात्रि में चलते-चलते ठोकरें खानी पड़े, इससे अच्छा है कि दिन-दहाड़े चल लो । बुढ़ापा आ जाय, बुद्धि क्षीण हो जाय, इन्द्रियाँ कमजोर हो जायें, देह काँपने लगे, कुटुम्बीजन मुँह मोड़ लें, लोग अर्थी में बाँधकर 'राम बोलो भाई राम...' करते हुए श्मशान में ले जायें उससे पहले अपने आपको शाश्वत में पहुँचा दो तो बेड़ा पार हो जाय।
स्रोत:- आश्रम से प्रकाशित पुस्तक "सामर्थ्य स्रोत" से लिया गया प्रसंग..
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