हिन्दू धर्मग्रंथो में जीवन में चार पुरुषार्थ का महत्व बताया गया है। ये हैं धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष। इनमें काम या भोग्य विषय-वस्तु के पीछे सकारात्मक पक्ष सृजन और गति है। इसलिए काम को योग के समान संयम और अनुशासन से अपनाने पर यशस्वी और सफल बनाने वाला माना गया है। किंतु भोग के रूप में असंयमित काम अपयश व असफलता देने वाला बताया गया है।
वहीं पौराणिक मान्यताओं में काम के स्वामी कामदेव को माना गया है। जिसे जगत के सृजन चक्र और गति को नियत करने की कामना से भगवान शंकर के तप भंग के लिये देवताओं द्वारा तैयार किया गया। जिसके परिणामस्वरूप भगवान शंकर द्वारा कामदेव भस्म हुआ। तब कामदेव की पत्नी रति की विनती पर भगवान शंकर द्वारा कामदेव को भाव रूप में प्रकृति और जीवो में वास करने की गति नियत की गई।
मुद्गल पुराण में इसी से जुड़े प्रसंग के मुताबिक जब शंकर के कोप से कामदेव जलकर शापित हुआ तो शापमुक्त होने के लिए कामदेव द्वारा श्री गणेश के ज्ञान-ब्रह्म स्वरूप महोदर का तप किया गया। तब भगवान महोदर द्वारा शिव के शाप की काट को असंभव बताया गया। लेकिन प्रकृति और जीव जगत में रहने के लिये कामदेव के लिए स्थान नियत किया गया।
भगवान महादेव द्वारा कामना या वासनाओं के प्रतीक कामदेव के रहने के लिये जिन विशेष स्थानों को बताया गया, वे इस प्रकार हैं -
लिखा गया है कि -
यौवनं स्त्री च पुष्पाणि सुवासानि महामते:।
गानं मधुरश्चैव मृदुलाण्डजशब्दक:।।
उद्यानानि वसन्तश्च सुवासाश्चन्दनादय:।
सङ्गो विषयसक्तानां नराणां गुह्यदर्शनम्।
वायुर्मद: सुवासश्र्च वस्त्राण्यपि नवानि वै।
भूषणादिकमेवं ते देहा नाना कृता मया।।
इस श्लोक के मुताबिक इन स्थानों पर कामदेव वास करते हैं यानी इनके संपर्क में कामनाएं जागती हैं। ये हैं -
यौवन या सौंदर्य, स्त्री, फूल, गाना, परागकण या फूलों का रस, पक्षियों की मीठी आवाज, सुंदर बाग-बगीचा, बसन्त ऋतु, चन्दन, वासनाओं में लिप्त मनुष्य की संगति, छुपे अंगों के दर्शन, सुहानी और मन्द हवा, रहने का सुन्दर स्थान, नए कपड़े और आभूषण।
इस पौराणिक बात के पीछे व्यावहारिक जीवन के लिये संकेत भी है कि चूंकि कामनाओं की अति मन को भटकाती है, इसलिए इन स्थान विशेष के संपर्क में आने पर संयम और अनुशासन बनाए रख मन को कमजोर होने से बचाएं। अन्यथा जीवन पतन की ओर जा सकता है।