मासिक साधना उपयोगी तिथियाँ

व्रत त्योहार और महत्वपूर्ण तिथियाँ

25 फरवरी - माघी पूर्णिमा
03 मार्च - रविवारी सप्तमी (शाम 06:19 से 04 मार्च सूर्योदय तक )
06 मार्च -
व्यतिपात योग (दोपहर 14:58 से 07 मार्च दिन 12:02 मिनट तक)
08 मार्च - विजया एकादशी (यह त्रि स्पृशा एकादशी है )
09 मार्च - शनि प्रदोष व्रत
10 मार्च - महा शिवरात्री (निशीथ काल मध्यरात्री 12:24 से 01:13 तक )
11 मार्च - सोमवती अमावस्या (
सूर्योदय से रात्री 1:23 तक )
11 मार्च - द्वापर युगादी तिथि
14 मार्च - षडशीति संक्रांति (पुण्यकाल शाम 4:58 से
सूर्योदय तक)
19 मार्च - होलाष्टक प्रारम्भ
20 मार्च - बुधवारी अष्टमी (
सूर्योदय से दोपहर 12:12 तक)
23 मार्च - आमलकी एकादशी
24 मार्च - प्रदोष व्रत
26 मार्च - होलिका दहन
27 मार्च - धुलेंडी , चैतन्य महाप्रभु जयंती
29 मार्च - संत तुकाराम द्वितीय
30 मार्च - छत्रपति शिवाजी जयन्ती

रविवार, 7 अगस्त 2011

पपीहे जैसा नियम हो तो प्रभुप्राप्ति इसी जन्म में हो जाय.....


कोई भी मनुष्य यदि दृढ़ निश्चय कर ले कि आज भगवान अवश्य मिलेंगे तो इसमें कोई संदेह नहीं कि उसे भगवान आज मिलेंगे। ऐसा निश्चय करना तो अपना काम है। इसमें भगवान की दया को भी निमित्त बना लें। जैसे कोई परम मित्र के पहुँचने का तार आ जाय तो हम उसके स्वागत के लिए कितनी व्यवस्था करते हैं और प्रतीक्षा करते हैं, ऐसे ही प्रभुप्राप्ति की प्रतीक्षा करनी चाहिए। प्रभु इस बात को जानते हैं कि कौन उनकी प्रतीक्षा कर रहा है। आज उन्हें सच्चे मन से पुकारेंगे तो आज ही आपसे मिलनि की उन्हें फुर्सत मिल जायेगी।

उसमें दो प्रकार की दशाएँ होती हैं – एक तो आर्तभाव, परम व्याकुलता जैसे मछली को जल से अलग होने पर होती है जड़ तो जड़ है, प्रभु चैतन्य हैं, वे बड़े दयालु हैं। दूसरा भाव प्रेम का है। जैसे मित्र के आने का दृढ़ निश्चय होता है, उसमें प्रसन्नता एवं प्रतीक्षा होती है इसी प्रकार प्रभु में प्रेम होने पर वे अवश्य पहुँच जाते हैं। नियम और प्रेम दोनों रखें। नियम पपीहे का होता है, वह स्वाति की बूँद से ही अपनी प्यास बुझाना चाहता है। बादल बरसें तब भी उसका नियम नहीं टूटता, प्रेम में कमी नहीं आती। यहाँ तक कि उसके प्राण भी चले जायें, तब भी वह नियम नहीं तोड़ता। इसमें बादल तो जड़ हैं, वैसे ही बरस जाते हैं। प्रभु तो चैतन्य हैं और बड़े दयालु हैं, वे अपने प्रेमी को मरने नहीं देते।

इसी प्रकार हम भी नियम ले लें कि सिवाय प्रभु के और कुछ भी नहीं चाहिए। किसी का चिंतन न करें तो हमें प्रभु अवश्य ही मिलेंगे।'हमें कैसे मिलेंगे ?' पहले से ही ऐसा विपरीत निश्चय नहीं करना चाहिए। दृढ़ विश्वास होना चाहिए।

कई लोग सोचते हैं कि अमुक महाराज दया कर दें, कह दें तो हमको ईश्वरप्राप्ति हो जायेगी, भगवान मिल जायेंगे। ऐसी अवस्था में भगवान से मिलने की आवश्यकता ही क्या है, जब किसी के कहने से मिलें।

करोड़ों में कोई एक भगवत्प्राप्त मनुष्य होता है और उनमें भी कोई विरला ही होता है जो भगवान को मिला सके। कोई कहे कि भगवत्प्राप्त पुरुष मार्ग तो बतला सकते हैं। यह ठीक है तो फिर लोग इतने अच्छे मार्ग पर क्यों नहीं चलते ? इसका उत्तर यही है कि इस विषय में उन्हें विश्वास नहीं है। इसी कारण समस्त संसार की यह दशा हो रही है।

बात रही महापुरुष की दया की, भगवान की दया की वह तो सतत रहती ही है। फिर भी काम नहीं होता तो यह मानना पड़ेगा कि हमें उनकी दया में विश्वास नहीं है। हमने उनकी दया को माना नहीं है, बात वास्तव में यही है।

गजेन्द्र, द्रौपदी आदि ने विश्वास से भगवान को बुलाया तो भगवान इनके पास अतिशीघ्र पहुँच गये। यद्यपि इनको दुःख-निवारण की ही आवश्यकता थी।

केवल भगवान से मिलने के लिए भगवान को चाहे तो वह तो बात ही कुछ और होती है। ऐसे भक्त से शीघ्र मिलने की भगवान की भी इच्छा हो जाती है, इसलिए ऐसा समझना चाहिए कि प्रभु की इच्छा तो पूरी होगी ही। हमारी इच्छा पूरी हो इसमें हम लाचार हैं, पर प्रभु की इच्छा पूरी न हो ऐसा नहीं हो सकता।

जब हमारी इच्छा केवल और केवल उनसे मिलने की हो जायेगी तो सारा भार भगवान पर आ जायेगा और ऐसे प्रेमी भक्त के वश होकर भगवान उससे मिल जाते हैं।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, सितम्बर 2010, पृष्ठ संख्या 17,19 अंक 213

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