वाणी के १० दोष
वाणी के १० दोष माने गये है शास्त्रों में, यदि ये १० दोष न हो तो हमारी वाणी के द्वारा हमेशा शुभ होगा, अच्छा होगा, बढिया होगा। उससे लोगों को भी आनन्द आयेगा और अपने को भी आनन्द आयेगा । वाणी के १० दोष घरों में कृपया आप बच के चले, घर पे खास, घर में शान्ति रहेगी, घर में झगडे नही होंगे न तो लक्ष्मी आयेगी, पैसा बढेगा। पति दुकान पे आफ़िस पे काम-धन्धा करता है मेहनत करता है बेचारा पर, घर पे आकर लडाई-झगडा भी करता है। तो फिर बोलते है कि घर पर बरकत नही होती, बचत नही होती, क्या करे ? तो जहाँ झगडे होते है क्लेश होते है वहाँ लक्ष्मी रहती नही हैं। तो वाणी के १० दोष सतसंग से दूर होते है। सतसंग में ये शक्ति हैं कि ये दोष दूर हों। सतसंग सब सुखों का मूल है। सतसंग से वांछित सिद्धि होती है और सतसंग में केवल बैठ कर सुनना ही नही, सतसंग माने फिर जो सुना फिर घर गये तो जो समय है हमारे पास उसका सदुपयोग करते रहना ऐसा नही कि सिरियल देखने बैठ गये, फिल्म देखने बैठ गये क्या हो जायेगा कोई बात नही फिल्म देख लो, कोई बडा भारी अपराध भी नही है पर जिसको आध्यात्मिक उन्नति करनी हो तो उसको इससे तो बचना ही पडेगा। समय अपना नष्ट ना हो।
हम कही से जा रहे हो पैदल या कार में या ट्रेन में तो कई बार आपका अनुभव होगा कि कोई गन्दा नाला पास से बह रहा है तो बदबू आती है, तो हम क्या करते है कि बदबू से बचने के लिये तुरन्त अपनी नाक पर रुमाल रख लेते है कि बदबू आई, तो जैसे हम दुर्गन्ध को हम अपने अन्दर आने देना पसन्द नही करते वैसे ही हम कोई कुविचार को, कोई कुसंग को, कोई संग के दोष को, गलत आदमी मिल गया और वो हमको गलत राह पर ले जाना चाहता है तो हम उसको अपने भीतर प्रवेश न करने दे उसके संस्कारों को उसकी आदतों को अपने भीतर न धुसने दे तो हमको लाभ बहुत होगा। शूगर की दवाई भी खाये और फिर मीठा भी खाये तो शूगर नियंत्रण में कैसे होगी। करेले का रस पीना पडेगा। कडुवा होगा पर हितकर हैं।
तो जहाँ शुद्ध हवा नही आती न कमरे में, आपका कमरा कितना बढियाँ क्यो न हो पर आपके कमरे में अगर शुद्ध हवा नही आती है सूर्यनारायण की सुबह की ताजी धूप नही आती है तो फिर वहाँ पर बिमारी फैलेगीं, रोग होंगे, शरीर तनदुरुस्त नही रहेगा । उसी प्रकार अगर सतसंग के द्वारा हमारे विचारों की और संस्कारों की शुद्धि नही होगी तो जन्म-मरण का रोग वो तैयारी है समझों। शुद्ध हवा नही आती तो रोग होंगे वहाँ पर। आप अपना कमरा बंद करके बैठ जाओं खिडकी भी बंद रखो, दरवाजा भी बंद रखो १५ मिनट आप बैठो, फिर आप बाहर जाओ, फिर अपने कमरे में आओ आपको अपना कमरा ही दुर्गन्धयुक्त लगेगा तो वहाँ शुद्ध हवा जरूरी है ऐसे ही हमारा जो मानसिक कुपोषण होता रहता हैं, रुग्ण मानसिकता वाले लोगों के संग के कारण तो रोज अपने घर पर शाम को जब फ्री हो जाये तो थोडा सतसंग चलाकर बैठे नही तो आजतक चैनल पर सुबह बहुत जल्दी आता है ५ बजकर ४० मिनट (भारतीयसमयानुसार) पर आता है सुबह-सुबह थोडा अपना समझ का खुराक ले लो फिर आई बी एन-७ चैनल पर आता है ६ बजकर १० मिनट पर आता है थोडा अपना समझ का खुराक ले लें बापू की वाणी सुन ले उस समय तो पूरा दिन बढिया जायेगा।
तो वाणी के १० दोष निम्न है
०१ कुबोल दोष - माने चुभने वाली वाणी बोलना, चुभने वाले शब्द बोलते रहना। ये वाणी का कुबोल दोष है, बेटे को, बेटी को, पति को, पत्नी को ऐसे बोल ना बोले जिससे उअनको तकलीफ हो, उनका दिल दुःखे। ऐसा कोई भी न बोले, तो बोले कि इसने गलती कर दी तो बोलना पडेगा न तो उसने गलती कर दी तो अब क्या करे हम यमदूत तो है नही, क्या अपने से कोई गलती नही होती, इसका मतलब ये नही कि गलत आदमी का पोषण करते रहना पर घर पर सभी का ख्याल करके और बेटा-बेटी भक्ति के मार्ग में चलते है अगर उनकी श्रद्धा है तो माता-पिता को चाहिये कि उनको सहयोग करें कि चलो हमारी उम्र हुई हम नही कर पाये इतनी साधना, बेटे-बेटी तुम करते हो तुमको धन्यवाद हैं शाबास तुम और अच्छी तरह से करों और अपनी उपासना बढाओं और अपने साधना बढाओ हमें खुशी होगी। ऐसा करके उसका पोषण कर दिया जाये तो कुबोल दोष वाणी का नही रहेगा।
०२ सहसात्कार दोष - माने अविचार पूर्वक बोलना, विचार कर न बोलना। अविचार पूर्वक ना बोले, विचारपूर्वक कर बोलें और जब हम नही बोल रहे है तो देखे कि मन क्या सोच रहा हैं। बडी साधना है ये, विचारपूर्वक नही बोलेगा आदमी तो उपहास का पात्र बनेगा। इसलिये "बिना विचारे जो करे सो पाछे पछतायें" खूब विचारपूर्वक।
०३ असद आरोपण दोष - असद आरोपण दोष माने क्या कि दूसरों को गलत मार्गदर्शन देते रहना। अरे नही-नही सतसंग की क्या जरुरत है। दीक्षा की क्या जरुरत हैं। दूसरों को गलत मार्गदर्शन देना दूसरों को गलत सूचनाये देना ऐसा हुआ, वैसा हुआ अरे तू सही बात बता न, तू सच्चाई से दूर क्यों रहता हैं। सत्य स्वरूप ईश्वर का तुझे डर नही है क्यो किसी को गलत मार्गदर्शन देना। असद वाणी का ये जो असद आरोपण दोष है इसमें ये भी आ जायेगा कि दूसरे का दोष नही है फिर भी उसपर वो दोष मड देना कि इसने ये किया इसने वो किया इसलिये ऐसा हो गया। असद आरोपण दोष हैं यें। लोग बहुत बेचारे सतसंग के अभाव में गुमराह बहुत होते है। बाहर की दुर्गन्ध से अपने को बचाते है लेकिन भीतर इन दोषों की दुर्गन्ध इसको सहते रहते हैं इसमें मजा आता हैं।
०४ निरपेक्ष दोष - निरपेक्ष दोष माना शास्त्र से विपरीत वाणी ही बोलते रहना। शास्त्रों की परवाह न करना। शास्त्रों में जो लोक-परलोक की बातें आती हैं उसकों अनदेखा करना या उसको झूठी मानना। हम नही मानते इन सब बातों को, हम नही मानते शास्त्र कों, हम तो ये बोलेंगे, ये निरपेक्ष दोष है।
०५ संक्षेप दोष - माने अपनी बात को ठीक से न कह पाना। यथार्थ रूप से न प्रस्तुत कर पाना। बाल संस्कार की जो सेवा करते है या ऋषि प्रसाद की जो सेवा करते है बाहर, बाल संस्कार जो चलाते है वो लोग थोडा मौन रखे। मौन रखने से आपके शब्दों में जान आयेगी। मौन रखने से वाणी जो बोली जायेगी वो कंठ से नही, हृदय से आयेगी। शब्द नही होंगे कोरे शब्दों के पीछे आपका हृदय काम करेगा। आपके प्राण लगेंगे। और आपके बालसंस्कार केन्द्र में बच्चों की संख्या और अधिक बढेगी। बच्चों को आनन्द आयेगा और आपके बालसंस्कार में आने वाले बच्चे और अधिक सफलता की ऊँचाई को छुवेंगे। मेरिट में आयेंगे। रोग मुक्त होंगे। बच्चे प्रभावशाली होंगे। बच्चों के माता-पिता भी खुश होंगे। उनका उत्साह बढेगा।
०६ क्लेश दोष - माने झगडे की भाषा बोलना। बात-बात में गरम हो जाना एकदम। लोग ऐसी ही भाषा बोलते है झगडे की, झगडा बडे ऐसी ही भाषा बोलते है। झगडा मिट जाये ऐसी भाषा बोलनी चाहिये। समाज में है तो कभी कुछ कभी कुछ होता रहता है झगडा बडे ऐसा वाक्य न बोला जाये। ऐसा वाक्य बोला जये कि झगडा मिट जाये। शान्ति के साम्राज्य की स्थापना हो जाये। कितना अच्छा होगा, आज जरुरत हैं हमारे देश में, पूरे विश्व मानव को जरुरत है। कि झगडे की भाषा न बोलें अपितु शान्ति बडे ऐसी भाषा बोले। मधुर व्यवहार नाम की पुस्तक हम लोग उसका जितना हो सके उसका प्रचार-प्रसार करे लोगों तक पहुचायें अधिक से अधिक घरों में ताकि घर-घर में शान्ति हों। घर-घर में लक्ष्मी का आगमन हो समृद्धि बढें। कौन साधु नही चाहेगा कि हमारा देश सम्पन्न हों।
०७ विकथा दोष - माने व्यर्थ बोल रहे हैं। मानों कि पानी में मथनी चला रहे है कि मक्खन निकलेगा। कई लोगों की आदत होती है व्यर्थ बहुत बोलते रहते हैं तो ये विकथा दोष हैं।
०८ हास्यास्पद दोष - माने किसी का उपहास करते हुए बोलना, किसी की मजाक उडाते हुए बोलना। अपने जीवन में किसी का उपहास क्यों करना, किसी की मजाक क्यों उडाना, किसी पर कटाक्ष क्यों करना, सावधानी।
०९ अशुद्ध दोष - माना बोलते हुऐ ठीक से न बोल पाना और व्याकरण की कई भूलें रह जाना।
१० द्वेष दोष - माने द्वेष और ईर्ष्या से प्रेरित होकर बोलते रहना ऐसा न हो। सबका भला हो। मधुर व्यवहार पुस्तक और बापूजी की वाणी का बारंबार श्रवण तो वाणी के ये १० दोष दूर होते जाते है सतसंगी साधकों के जीवन में से और साधकों के जीवन में तेजस्विता और ओजस्विता आती जाती है बढती जाती है। भले उनसे कोई दुर्व्यवहार करे पर साधक समता में रहते है भले कही भी रहते हो, दिल्ली में हो चाहे लुधियाना में, भारत में हो य विदेश में रहते हो आनन्द में रहते हैं
हरिः ॐ
स्रोत - उत्तरायण ध्यान योग शिविर २००९ (वीसीडी स्वामी सुरेशानन्द जी भाग ०८)यदि सुनना चहते है तो इस लिंक पे जाये
http://www.ashram.org/AshramPortalNew/Webcast/satsangwebcast.aspx?titleid=634
यदि लिखने में कुछ गलती हो गयी हो तो कृपया क्षमा चाहता हूँ।
बहुत उपयोगी जानकारी| आप को गणतंत्र दिवस की बहुत बहुत शुभकामनाएं !!
जवाब देंहटाएंsadho..Sadho...
जवाब देंहटाएंThis is very good Information.
Hari Om.
these are great vachan thanks to give me this info
जवाब देंहटाएंhariom