पूनमव्रत दर्शन
भारतीय संस्कृति में ऐसी सुन्दर व्यवस्था है कि अधिकतर भगवत सम्बंधी कार्य पूनम के दिन ही किये जाते है। जैसे तीर्थ स्नान, उसकी महिमा है। गुरुदेव के दर्शन, पूनम के दिन विशेष उसकी महिमा हैं। पूर्णिमा तिथी का विशेष महात्म्य क्या है। यजुर्वेद में आता हैं
"चन्द्रमा मनसो जातस चक्षों सूर्यो अजायतः" ।
अर्थात हमारे मन की उत्पत्ति चन्द्रमा से हुई है और पूनम के दिन चन्द्र पूर्ण कला विकसित होता है। पूर्ण कला सम्पन्न होता है। उस दिन हमारा मन भी पूर्ण उल्लासित होता हैं जैसे पूनम के दिन समुद्र आदि के जल में भी विस्तार आ जाता हैं ज्वार आता है बढ्ती आती है विशेष, रोज की अपेक्षा तो पूनम के दिन हमारा मन भी चरम विस्तार पाता हैं तो उस फैले हुए विस्तारता युक्त मन में जगत की कोई कामना या वासना न भरे बल्कि गुरुदेव की भक्ति व्यापे इसलिये सनातन धर्म में ये व्यवस्था है कि पूनम के दिन ऐसे पवित्र कार्य करे और पूनम के दिन गुरु दर्शन का नियम रखें तो उस दिन हमारा मन और अधिकाधिक भक्ति संपन्न होता हैं। वासनायें दूर होती है। इसलिये जो श्रद्धा से पूनम व्रत करते है हर पूनम को गुरु दर्शन करके फिर अन्न-जल ग्रहण करते है तो उनको विशेष-विशेष भक्ति लाभ होता है ये मैनें कई पूनम व्रतधारी भाई-बहनों के जीवन में देखा है। उनकी एक अलग ही आभा हैं। पूनम व्रतधारी जो वास्तव में पूनम व्रतधारी हैं उनका एक अलग ही प्रभाव है। जो गुरुदेव से कुछ चाहते नही है केवल एक प्रेम है कि ज्ञानदाता, भक्तिदाता, दिक्षादाता हमारा कल्याण चाहने वाले और करने वाले गुरुदेव के महिने में एक बार हमको दर्शन का लाभ मिल जायें।
"दर्शनम तव लोकस्य सर्वथा अघहरं परम"।
ऐसे भक्तों की आभा कुछ अलग ही होती है। उनकी मानसिकता बहुत ही अच्छी और ऊँची होती हैं। उनकी आन्तरिक स्थिति बहुत बढिया होती हैं बाहर कैसी भी परिस्थिति आ जाये वो परिस्थितियाँ उनको विचलित नही कर सकती है। आनन्द में रहते है। बर्फ पानी का ही एक दूसरा रूप है जमा हुआ, बर्फ पर स्याही की एक बूँद डालों तो वो फैलेगी नही वो उतने में ही रहेगी पर बर्फ पानी बन गई, गल गई, उसमे स्याही की एक बूँद डालो फैल जायेगी। पूनम के दिन हम जब गुरुदर्शन करते है गुरु की कृपा की एक किरण वो हमारे दिल-दिमाग में भर जाती हैं इसीलिये पूनम के दिन गुरुदेव के दर्शन का महात्म्य है और जो इस महात्म्य से अनजान है। वो बिचारे अपने मन में कामनाये और वासनाये भरते हुए और बढाते हुए अपना अमूल्य निर्मूल्य गवाँ देते है। मुठ्ठी बाँधे आते है, हाथ पसारे चले जाते है। कुछ ले कर आये थे श्वासों का खजाना वो भी गँवा कर चले जाते है और साधक जो आस्थावान होते है वो श्वासों का खजाना ले कर धरती पर जन्मे थे श्वासों का खजाना तो कम होता जाता है पर भीतर भक्ति का खजाना वो बढाते जाते है और बडे सम्पदावान हो जाते है। पूनम के दिन गुरुदर्शन की महिमा है। पूनम के दिन चन्द्रमा को अर्घ्य देने की भी महिमा है, पूनम की रात को, दूध ना मिले तो पानी से ही चन्द्रमा को अर्घ्य दे और अर्घ्य देते समय बोलियेगा, जिनको कोई आर्थिक परेशानी हो उनको तो चन्द्र्मा को अर्घ्य हर पूनम के दिन जरूर देना चाहिये। दूध कही भी अर्घ्यदान देना हो तो ताँबे के लोटे से नही दिया जाता है फिर स्टील का लोटा चाहिये। पूनम की रात को चन्द्रमा को अर्घ्य देते समय पौराणिक श्लोक हैं वो पढना चाहिये।
दधि शंख तुषाराभम, क्षीरो दारनव शनीभम ।
भारतीय संस्कृति में ऐसी सुन्दर व्यवस्था है कि अधिकतर भगवत सम्बंधी कार्य पूनम के दिन ही किये जाते है। जैसे तीर्थ स्नान, उसकी महिमा है। गुरुदेव के दर्शन, पूनम के दिन विशेष उसकी महिमा हैं। पूर्णिमा तिथी का विशेष महात्म्य क्या है। यजुर्वेद में आता हैं
"चन्द्रमा मनसो जातस चक्षों सूर्यो अजायतः" ।
अर्थात हमारे मन की उत्पत्ति चन्द्रमा से हुई है और पूनम के दिन चन्द्र पूर्ण कला विकसित होता है। पूर्ण कला सम्पन्न होता है। उस दिन हमारा मन भी पूर्ण उल्लासित होता हैं जैसे पूनम के दिन समुद्र आदि के जल में भी विस्तार आ जाता हैं ज्वार आता है बढ्ती आती है विशेष, रोज की अपेक्षा तो पूनम के दिन हमारा मन भी चरम विस्तार पाता हैं तो उस फैले हुए विस्तारता युक्त मन में जगत की कोई कामना या वासना न भरे बल्कि गुरुदेव की भक्ति व्यापे इसलिये सनातन धर्म में ये व्यवस्था है कि पूनम के दिन ऐसे पवित्र कार्य करे और पूनम के दिन गुरु दर्शन का नियम रखें तो उस दिन हमारा मन और अधिकाधिक भक्ति संपन्न होता हैं। वासनायें दूर होती है। इसलिये जो श्रद्धा से पूनम व्रत करते है हर पूनम को गुरु दर्शन करके फिर अन्न-जल ग्रहण करते है तो उनको विशेष-विशेष भक्ति लाभ होता है ये मैनें कई पूनम व्रतधारी भाई-बहनों के जीवन में देखा है। उनकी एक अलग ही आभा हैं। पूनम व्रतधारी जो वास्तव में पूनम व्रतधारी हैं उनका एक अलग ही प्रभाव है। जो गुरुदेव से कुछ चाहते नही है केवल एक प्रेम है कि ज्ञानदाता, भक्तिदाता, दिक्षादाता हमारा कल्याण चाहने वाले और करने वाले गुरुदेव के महिने में एक बार हमको दर्शन का लाभ मिल जायें।
"दर्शनम तव लोकस्य सर्वथा अघहरं परम"।
ऐसे भक्तों की आभा कुछ अलग ही होती है। उनकी मानसिकता बहुत ही अच्छी और ऊँची होती हैं। उनकी आन्तरिक स्थिति बहुत बढिया होती हैं बाहर कैसी भी परिस्थिति आ जाये वो परिस्थितियाँ उनको विचलित नही कर सकती है। आनन्द में रहते है। बर्फ पानी का ही एक दूसरा रूप है जमा हुआ, बर्फ पर स्याही की एक बूँद डालों तो वो फैलेगी नही वो उतने में ही रहेगी पर बर्फ पानी बन गई, गल गई, उसमे स्याही की एक बूँद डालो फैल जायेगी। पूनम के दिन हम जब गुरुदर्शन करते है गुरु की कृपा की एक किरण वो हमारे दिल-दिमाग में भर जाती हैं इसीलिये पूनम के दिन गुरुदेव के दर्शन का महात्म्य है और जो इस महात्म्य से अनजान है। वो बिचारे अपने मन में कामनाये और वासनाये भरते हुए और बढाते हुए अपना अमूल्य निर्मूल्य गवाँ देते है। मुठ्ठी बाँधे आते है, हाथ पसारे चले जाते है। कुछ ले कर आये थे श्वासों का खजाना वो भी गँवा कर चले जाते है और साधक जो आस्थावान होते है वो श्वासों का खजाना ले कर धरती पर जन्मे थे श्वासों का खजाना तो कम होता जाता है पर भीतर भक्ति का खजाना वो बढाते जाते है और बडे सम्पदावान हो जाते है। पूनम के दिन गुरुदर्शन की महिमा है। पूनम के दिन चन्द्रमा को अर्घ्य देने की भी महिमा है, पूनम की रात को, दूध ना मिले तो पानी से ही चन्द्रमा को अर्घ्य दे और अर्घ्य देते समय बोलियेगा, जिनको कोई आर्थिक परेशानी हो उनको तो चन्द्र्मा को अर्घ्य हर पूनम के दिन जरूर देना चाहिये। दूध कही भी अर्घ्यदान देना हो तो ताँबे के लोटे से नही दिया जाता है फिर स्टील का लोटा चाहिये। पूनम की रात को चन्द्रमा को अर्घ्य देते समय पौराणिक श्लोक हैं वो पढना चाहिये।
दधि शंख तुषाराभम, क्षीरो दारनव शनीभम ।
नमामि शशिनम सोमम, सम्भोर मुकुट भूषणं ॥
शिवजी ने हे चन्द्र देव! आपको अपना मुकुट बनाया हैं अपने भाल (मस्तक) में धारण किया हैं। आपको मेरा प्रणाम हैं। आपको शिवजी के भाल में स्थान मिला, हे चन्द्रदेव! मन के मालिक देव! हमको हमारे गुरुदेव के हृदय में स्थान मिले। जो हमारे तारणहार है, उनके दिल में, चरणों में सदा के लिये स्थान मिल जायें। हम उनसे कभी दूर न हों हम सदैव उनके सम्मुख रहें। हमारी गुरुदेव के दिल में जगह बन जाय और वो बनी रहे। इस प्रकार चन्द्रमा के अर्घ्य दें दे।
स्रोतः- उत्तरायण ध्यानयोग शिविर २००९ (११ जनवरी २००९ सुबह के सत्र में)।
शिवजी ने हे चन्द्र देव! आपको अपना मुकुट बनाया हैं अपने भाल (मस्तक) में धारण किया हैं। आपको मेरा प्रणाम हैं। आपको शिवजी के भाल में स्थान मिला, हे चन्द्रदेव! मन के मालिक देव! हमको हमारे गुरुदेव के हृदय में स्थान मिले। जो हमारे तारणहार है, उनके दिल में, चरणों में सदा के लिये स्थान मिल जायें। हम उनसे कभी दूर न हों हम सदैव उनके सम्मुख रहें। हमारी गुरुदेव के दिल में जगह बन जाय और वो बनी रहे। इस प्रकार चन्द्रमा के अर्घ्य दें दे।
स्रोतः- उत्तरायण ध्यानयोग शिविर २००९ (११ जनवरी २००९ सुबह के सत्र में)।
पूनम दर्शन व्रत दो तरह से किया जाता है :-
१ - जहाँ गुरुदेव हो वही जाकर दर्शन किये जाये।
१ - जहाँ गुरुदेव हो वही जाकर दर्शन किये जाये।
२ - जो साधक भाई-बहन देश से दूर है या जो जहाँ गुरुजी है वहाँ नही जा सकते है तो वे साधक भाई-बहन निकट के आश्रम में जाकर गुरुदेव के दर्शन करे और पूनम व्रत का पालन करे।
लिखने में यदि कुछ गलती हो गई हो तो गुरुदेव के चरणों में क्षमा प्रार्थी हूँ ...
हरिः ॐ .........
हरिः ॐ .........
hari om ,
जवाब देंहटाएंsado sado ,
mere gurudev ke kirpa hu jaye tu sab kuch mil jaata hai mein paya hai guru dev ke kirpa se sab kuch guru dev ka diya hu hai.
mein guru dev ke jite bhi pooja karu woh kame hai.
jai satgurudev bhagwan ke
hari om
sanjeev kumar
delhi
9953326650