देव-असुरों, शैव-शाक्तों, सौर्य और वैष्णवों द्वारा पूजित,
विद्या के आरंभ में, विवाह में, शुभ कार्यों में, जप-तप-ध्यानादि में
सर्वप्रथम जिनकी पूजा होती है, जो गणों के अधिपति है,
इन्द्रियों के स्वामी है, सवके कारण है
उन गणपतिजी का पर्व है ‘गणेश
चतुर्थी’|
जाग्रतावस्था आयी और गयी, स्वप्नावस्था आई और गयी, प्रगाढ़ निद्रा (सुषुप्ति) आयी और गयी – इन तीनों अवस्थाओं को स्वप्न जानकर हे साधक ! तू चतुर्थी अर्थात तुरीयावस्था (ब्राम्ही स्थिति) में जाग | तुरीयावस्था तक पहुँचने के लिए तेरे रास्ते में अनेक विघ्न-बाधाएँ आयेगी | तू तब चतुर्थी के देव, विघ्नहर्ता गणपतिजी को सहायता हेतु पुकारना और उनके दण्ड का स्मरण करते हुए अपने आत्मबल से विघ्न-बाधाओं को दूर भगा देना |
जाग्रतावस्था आयी और गयी, स्वप्नावस्था आई और गयी, प्रगाढ़ निद्रा (सुषुप्ति) आयी और गयी – इन तीनों अवस्थाओं को स्वप्न जानकर हे साधक ! तू चतुर्थी अर्थात तुरीयावस्था (ब्राम्ही स्थिति) में जाग | तुरीयावस्था तक पहुँचने के लिए तेरे रास्ते में अनेक विघ्न-बाधाएँ आयेगी | तू तब चतुर्थी के देव, विघ्नहर्ता गणपतिजी को सहायता हेतु पुकारना और उनके दण्ड का स्मरण करते हुए अपने आत्मबल से विघ्न-बाधाओं को दूर भगा देना |
बाधाएँ कब बाँध सकी हे पथ पे चलनेवालों को |
विपदाएँ कब रोक सकी है आगे बढनेवालों को ||
हे साधक ! तू
लम्बोदर का चिंतन करना और उनकी तरह बड़ा उदर रखना अर्थात छोटी-छोटी बाते को तू अपने
पेट में समां लेना,
भूल जाना | बारंबार उनका चिंतन कर अपना
समय नहीं बिघड़ना |
बीत गयी सो बीत गयी, तक़दीर का शिकवा कौन करे |
जो तीर कमान से निकल गया, उस तीर का पीछा कौन करे ||
तुझसे जो भूल हो
गयी हो उसका निरिक्षण करना,
उसे सुधार लेना | दूसरों की गलती याद
करके उसका दिल मत खराब करना | तू अब ऐसा दिव्य चिंतन करना
की भूल का चिंतन तुच्छ हो जाय | तू गणपतिजी का स्मरण से
अपना जीवन संयमी बनाना | भगवान श्रीराम, भगवान श्रीकृष्ण, भगवान गणपति, मीराबाई, शबरी आदि ने तीनों अवस्थाओं को पार
कर अपनी चौथी अवस्था-निज स्वरुप में प्रवेश किया और आज के दिन वे तुम्हे ‘चतुर्थी ’की याद दिला रहे है कि ‘हे साधक ! तू अपनी चौथी अवस्था में जागने के लिए आया है | चौथ का चाँद की तरह कलंक लगाये ऐसे संसार के व्यवहार में तू नहीं भटकना
| आज की संध्या के चन्द्र को तू निहारना नहीं | आज की चतुर्थी तुन्हें यह संदेश देती है
कि संसार में थोडा प्रकाश तो दिखता है परंतु इसमें चन्द्रमा कि नाई कलंक है |यदि तुम इस प्रकाश में बह गये, बाहर के
व्यव्हार में बह गये तो तुम्हे कलंक लग जायेगा | धन-पद-प्रतिष्ठा
के बल से तुम अपने को बड़ा बनाने जाओंगे तो तुम्हे कलंक लगेगा, परंतु यदि तुम चौथी अवस्था में पहुँच गये तो बेडा पार हो जायेगा |
जैसे भगवान श्रीकृष्ण ने गोपी-गोपियों को दृष्टि से निहारकर अपनी संप्रेषण-शक्ति से अधरामृत का पान कराया ऐसे ही मोरया बाप्पा (गणपतिजी ) भी तुम्हे अधरामृत पान करा दे ऐसे समर्थ है ! वे आपको अभय देनेवाले, उनके दुःख और दरिद्रता को दूर करनेवाले तथा संतों एवं गुरुओ के द्वारा तत्वज्ञान करानेवाले है |
जैसे भगवान श्रीकृष्ण ने गोपी-गोपियों को दृष्टि से निहारकर अपनी संप्रेषण-शक्ति से अधरामृत का पान कराया ऐसे ही मोरया बाप्पा (गणपतिजी ) भी तुम्हे अधरामृत पान करा दे ऐसे समर्थ है ! वे आपको अभय देनेवाले, उनके दुःख और दरिद्रता को दूर करनेवाले तथा संतों एवं गुरुओ के द्वारा तत्वज्ञान करानेवाले है |
वे चतुर्थी के
देव संतों का हर कार्य करने में तत्पर रहते है । वेदव्यासजी महाराज लोकमांगल्य
हेतु ध्यानस्थ ‘महाभारत’ कि रचना कर रहे थे और गणपतिजी लगातार
उनके बोले श्लोक लिख रहे थे | गणपतिजी की कलम कभी रुकी नहीं और सहयोग करने का
कर्तुत्व-अकर्तुत्व में जरा भी नहीं आया क्योंकि कर्तुत्व-अकर्तुत्व जीव में
होता है | जाग्रत, स्वप्न, सुषुप्ति ये अवस्थाएँ जीव की है और
तुरीयावस्था गणपति-तत्व की है | भगवान गणपति अपने प्यारों
को तुरीय में पहुँचाना चाहते इसलिए उन्होंने चतुर्थी तिथि पसंद की है |
गिरिजा संत समागम सम न लाभ कछु आन | बिनु हरि कृपा न होई सो गावहिं बेड पुरान || (श्रीरामचरित.उ.कां.:१२५ ख)
भगवान
सदाशिव ने तुलसीदासजी से कहलवाया है कि संत-सान्निध्य के सामान जगत में और कोई लाभ
नहीं |
साहब या सेठ की
कृपा हो तो धन बढाता है,
सुविधा बढती है; मित्रों की कृपा हो तो
वाहवाही बढती है परंतु भगवान की कृपा तो संत-समागम होता है | जब सच्चे संतों का समागम प्राप्त हो जाय तो तुम पक्का समझना कि भगवान
पूर्णरूप से तुम पर प्रसन्न है, गणपति बाप्पा तुम पर प्रसन्न
है तभी तुम सत्संग में आ सके हो |
सत्संग जीवन की
अनिवार्य माँग है |
जो सत्संग नहीं करता वह कुसंग जरूर करता है | जो आत्मरस नहीं लेता, रामरस की तरफ नहीं बढता
बह काम के गड्डे में जरुर गिरता है | तुम रामरस की तरफ
कदम बढ़ाते रहना, सत्संग की तरफ अहोंभाव से बढते रहना,
सत्कार्यों में उत्साह से लगे रहना फिर तुम्हारी वह चतुर्थी दूर
नही| जाग्रत, स्वप्न, सुषुप्ति जिसकी सत्ता से आती और जाती है, पसार
होती है फिर भी जो द्रष्टा ज्यों-का-त्यों है, वह
तुम्हारा परमात्मास्वरुप प्रकट हो जायेगा | फिर एक ही साथ
भगवान सदाशिव, भगवान गणपति, माँ
उमा, भगवान ब्रम्हा, भगवान
विष्णु और ब्रम्हांड के सारे पूजनीय-वंदनीय देवों के आत्मा तुम हो जाओंगे और सब
देव तुम्हारा आत्मा जो जायेंगे | उनमें और तुममें भेद
मिटकर एक अखंड तत्व, अखंड सत्य का साक्षात्कार हो जायेगा
और यही तो चतुर्थी का लक्ष्य है | ...........
(परम् पूज्य संत श्री आसारामजी
बापू के सत्संग प्रवचन से)
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