मासिक साधना उपयोगी तिथियाँ

व्रत त्योहार और महत्वपूर्ण तिथियाँ

25 फरवरी - माघी पूर्णिमा
03 मार्च - रविवारी सप्तमी (शाम 06:19 से 04 मार्च सूर्योदय तक )
06 मार्च -
व्यतिपात योग (दोपहर 14:58 से 07 मार्च दिन 12:02 मिनट तक)
08 मार्च - विजया एकादशी (यह त्रि स्पृशा एकादशी है )
09 मार्च - शनि प्रदोष व्रत
10 मार्च - महा शिवरात्री (निशीथ काल मध्यरात्री 12:24 से 01:13 तक )
11 मार्च - सोमवती अमावस्या (
सूर्योदय से रात्री 1:23 तक )
11 मार्च - द्वापर युगादी तिथि
14 मार्च - षडशीति संक्रांति (पुण्यकाल शाम 4:58 से
सूर्योदय तक)
19 मार्च - होलाष्टक प्रारम्भ
20 मार्च - बुधवारी अष्टमी (
सूर्योदय से दोपहर 12:12 तक)
23 मार्च - आमलकी एकादशी
24 मार्च - प्रदोष व्रत
26 मार्च - होलिका दहन
27 मार्च - धुलेंडी , चैतन्य महाप्रभु जयंती
29 मार्च - संत तुकाराम द्वितीय
30 मार्च - छत्रपति शिवाजी जयन्ती

शुक्रवार, 20 फ़रवरी 2009

गुरु-दक्षिणा

दुबईवासियों से पूज्य गुरुदेव ने मांगी गुरु-दक्षिणा

हम लोग अपनी संस्कृति गँवा रहे है। नही नही, यूरोप में चर्चा चली थी विद्वानों की कि हमारे देश की उन्नति और इज्जत, शान-बान कैसे बरकार रहे तो जब तक हम अपनी भाषा को पकडे रहेंगे, अपनी रीति, रस्मों-रिवाजों को पकडे रहेंगे तब तक हमें कोई नीचा दिखा सकता है और जिस दिन हम दूसरों की भाषा और दूसरों के रीति-रस्मों के गुलाम होंगे वह जाति धीरे-धीरे नष्ट हो गयी। वह जाति धीरे-धीरे गुलाम हो गई। कई ऐसे टापू है जो अभी भी अपनी भारतीय संस्कृति को संजोये हुये है। वहाँ विदेशों में पति को पति बोलती है नारी और पत्नी को धर्म-पत्नी बोलता है पति, पुत्र को पुत्र बोलता है पिता और पिता को पिताश्री बोलता है पुत्र और यहाँ पाप्पा, मम्मी, डैडी-डैडा़....... अब बदलो कुछ, जय राम जी की....... आप तो बदलोगें आपके संपर्क में आने वाले भी बदलेंगे।

मैं दुबई गया था। एक हिन्दु और एक मुसलमान दोस्त आपस में टेलीफोन में बात कर रहे हैं। मुसलमान फोन उठाता हैं तो बोलता है "वालेकम-अस-सलाम" और हिन्दु हरि ॐ नही बोलता है, राम राम नही बोलता है, जय भारत नही बोलता, जय हिन्दी नही बोलता है बोलता है "हाय.... हाय.... बाय..... बाय....." मैने दुबई के सत्संग में पूर्णाहुति के समय बोला कि दक्षिणा तो तुम से मैं लूँगा और दक्षिणा में तुमसे ये वचन लेता हूँ कि जब भी टेलीफोन करोगें बेटे या तुम तो "हरि ॐ" या "राम राम" से शुरुवात करना। हाय... बाय... छोडो, वो जब सलामालेकम नही छोडते तो तुम "हरि ॐ" या "राम-राम" क्यों छोड़तें हो भाई।

हिन्दु दोस्त के पास मुसलमान दोस्त पहुँचा है तो उसकी माँ ने कहा अरे ! मोहन ..... वो आयो थे हाफिज आया है। तो मोहन मिला हाफिज से, लेकिन मोहन जब हाफिज के घर गया तो उसकी अम्मा बोलती है कि बैठ जा इधर, मेरा बेटा कुरान पढ़ रहा है। जब जब मोहन गया अपने मित्र से पास उसकी माँ ने बैठा दिया कोने में कि मेरा बेटा मौलवी से कुरान सीख रहा है। लेकिन मुसलमान लडके को कभी किसी हिन्दु माँ ने नही बताया कि मेरा बेटा आज गीता पढ़ रहा हैं। ताली बजाने की बात नही है रोने की बात हैं। शर्म की बात हैं। जय राम जी की......

इन्सान का इतिहास उठाकर देख लो जो अपनी भाषा भूले है जो अपना रीत-रिवाज-रस्म भूले है और जो अपना धर्म-कर्म भूले है वे धीरे-धीरे-धीरे गुलाम हो गये है नष्ट से हो गये है और गुलामी के बीच भी जिन्होने अपनी संस्कृति बचाये रखी संजोये रखी भाषा और अपना उसूल तो उनमें हरियाणा में इसीलिये खुशी था कि जहाँ देखूँ गुरुओं की वाणी के माईक की आवाज आती है जय राम जी की ........ और गुरु की वाणी सुनने में, संत की वाणी सुनने में पंजाब अभी भी जिन्दादिल है जय राम जी की................

अब मै बात कर रहा था उन तीन देवियों की - दूसरी माई कहती है कि कभी-कभी वो आफिस को जाते है या दुकान जाते है तो जल्दीबाजी में पैंट पहनना भूल जाते है और मुझे कपडे लेकर जाने पड़ते है ऐसा भुल्लकड है वो तो तीसरी ने कहा ! छ्ड़ो यार ये गल, मेरा पति तो ग्जब के भुल्लकड है मैं कपडे बाजार में गई कपडे लेने बहु के लिये कपडे लेने थे तो मेरे पतिदेव आफिस से कही जल्दी छूट गये होंगे। बाजार से गुजरे तो दूर से देखा कि मै दुकान में बैठी थी देख रही थी तो खड़े हो गये मेरे नजदीक आकर, तो मैने उनको देख कर थोड़ा हँसी तो वो भी हँसे फिर मैं कपड़े देख रही थी फिर मेरे सामने देखे घूर घूर के देखे तो मेरे को हँसी आ गई मै हँसी तो वो भी हँसे फिर थोडा नजदीक आये मेरे तरफ़ देखा सिर से पैर तक मैने सोचा कि गजब का देख रहे है तो मुझे हँसी आयी तो वो भी हँसे फिर धीरे से और नजदीक आये और मेरे को बोलते है कि बहन जी ओ बहन जी मैने आपको देखा है, बहन जी मैने आपको कही देखा है मै तो दंग रह गई कि जीवन भर साथ रही और वो आज मुझको कहते है कि मुझे लगता है कि मैने आपको कही देखा है इस व्यक्ति पर आपको हँसी आयेगी और आप जिसको सुनायेंगे उसको भी हँसी आयेगी लेकिन उस पति ने उतनी गलती नही की जितनी आप लोग कर रहे हों वो तो पत्नी से २ घण्टे जुदा भी हो गया था, ४ घण्टे जुदा भी हो गया था और दूर गया तो मैने कही आपको देखा है लेकिन आप उस परमेश्वर से कभी जुदा नही हुये और अभी तक उसकी तरफ़ नजर नही जाती कि मैने कही पर तुझे देखा है सुबह तू जगाने वाला था मैने देखा है पत्नि चिल्ला रही है अलार्म बज रहा है लेकिन तू नही जगाता तो मैं नही जगता, तू नाश्ता उठाने के लिये सत्ता नही देता तो मैं नाश्ता नही कर सकता था। मैने वो भी देखा और अभी भी देख रहा हूँ कि तेरी सत्ता से धड़्कन चल रही है जो कुछ देख रहा हूँ तुझी से देख रहा हूँ। इस बात को भी हम भूल गया हूँ। जितना पति भुल्लकड़ था उससे ज्यादा तो हम भुल्लकड़ हो गये है उस व्यक्ति पर तो हमें हँसी आती है कि सुबह देखी पत्नी दोपहर को भूल गया कितना उल्लू का पट्ठा है, लेकिन हम उल्लू का पट्ठे को भी पीछे छोड दे ऐसे पट्ठे हो गये हम तो, क्या कभी सोचा कि सुबह जगाने वाले कितना भी जगाये लेकिन जब तक तू नही जगाता तब तक नही जगते हम, खिलाने वाले कितना भी खिलाये जब तक तू खाने की सत्ता नही देता तब तक खाना खराब हो गया है, समझाने वाले कितना भी समझाये लेकिन जब तक समझने की सत्ता तेरी नही तब तक समझा कुछ भी समझा नही जाता हैं। "सो साहिब सद सदा हूजुरे, अंधा जानत ताको दूरे" तो उस भुल्लकड़ पर हँसने की बजाये हमको अपने ऊपर हँसना चाहिये कि हम उससे भी ज्यादा भुल्लकड है और ऐसी भूल अब ना हो। उस भुल्लकड को याद शक्ति बढाने के लिये मैं कहुँगा कि तुलसी के पत्ते खाया करे। जय राम जी की ............. गाय के घी की मालिश किया करे मेमोरी बढाने के लिये। लेकिन तुम्हारे को इतने से ही नही तुमको तो ये कहना पड़ेगा कि तुम्हारे लिये ये ईलाज है कि हर रोज नियम से जप किया करो, और बार बार उसकी याद किया करो कि यह भूल की आदत मिट जाये। गुरुवाणी में आता है कि " भुलिया जबी आपको तभी हुआ खराब " कभी जाये केदार कभी जाये मक्के, अपना ख्याल नही तो खाये घर घर के धक्के।

स्रोत:- पूज्य गुरुदेव के सत्संग " मैने तुझे कही देखा है " में से लिये गये कुछ अमृत बिन्दु

गुरुवार, 12 फ़रवरी 2009

भक्ति में बाधक ६ दोष - स्वामी सुरेशानन्द जी

भक्ति में बाधक ६ दोष और भक्ति में वर्धक ६ गुण

भक्ति में ६ दोष बाधक है, इनसे भक्ति में बाधा हो जाती हैं। इन ६ से बचना, आप भी बचों मैं भी बचु, तो हमारी भक्ति में खूब-खूब बरकत आयेगी।

१. अधिक आहार - अधिक खाओ नही भले ही कितना भी स्वादिष्ट हों तू जा दूसरा आओ चलो खा लो, नही-नही, स्वाद का ख्याल करके नही, स्वास्थ्य का ख्याल करके खाये, तो अधिक आहार से बचना। अधिक आहार का एक अर्थ ये भी होगा कि अधिक संग्रह, पैसा-पैसा-पैसा कितना भी इकट्ठा कर ले मरेगा तो, इसलिये मै भी भूखा न रहु साधू भी भूखा न जाय। तो अधिक आहार भक्ति में बाधक हैं।
२. भक्ति के प्रतिकूल चेष्टा - हम एक तरफ़ तो चाहते है कि इसी जन्म में हमें ईश्वर का साक्षात्कार हो जाये और एक तरफ़ हम थोडे समय तक टिकने वाले सुख की इच्छा करते हुये भटकते रहें या उसी की ईच्छा मन में करते रहें क्षणिक सुख की तो ये भक्ति में बाधक तत्व है दूसरा......

३. अपने नियम में आग्रहपूर्वक की दृढ़्ता - ये भक्ति में बाधक तीसरा तत्व हैं। जड़ होकर माला घुमा देते है। जड़ होकर पाठ कर लेते है। जड़्ता पूर्वक खाली एकादशी का व्रत किया, एकादशी का संकेत तो समझे पहले। खाली निराहार जो रहते है उनको मैनें देखा है कि एकादशी से पहले रात को खूब भारी खुराक खा लेंगे। लडडू, सुखडी, मालपुये, खीर, रबडी.... बोले कल एकादशी हैं और फिर कई लोग तो एकादशी की रात को १२:३० बजे और खा लेते है, एकादशी पूरी हो गई बोले १२:०० बज गये ना.... दूसरा दिन शुरु हो गया। तो ध्यान रहे कि अपने नियम में आग्रहपूर्वक की दृढ़्ता नही प्रेमपूर्वक की दृढ़्ता। आग्रहपूर्वक की दृढ़्ता ये भक्ति में बाधक है।

४. विषयी लोगों का संग - जिनकी भक्ति में रुचि नही है, भोगों में रुचि हैं ऐसे लोगों का संग भक्ति में बाधक हैं।

५. मन में रहा हुआ राग - किसी व्यक्ति के लिये या किसी वस्तु के लिये मन में रहा हुआ राग ये भक्ति में बाधक हैं। इससे मन चंचल हो जाता हैं। लोग कहते है कि मेरे मन की चंचलता कैसे मिटे ?.... हकीकत में मन में रहा हुआ राग मिट जाये तो चंचलता मिटाने का सवाल ही नही रहेगा। फिर आप हम बैठेंगें तो गहराई में चले जायेंगें। आपको बोलने की ईच्छा नही होगी। आँख खोलने की ईच्छा नही होगी। न बोलने की, न आँख खोलने की... शान्ति का संपादन सहज में होगा। जो साधना के शिखर हमसे अनछुये रह गये वो हम छूने लगेंगे। जिस गहराई का हमको पता नही चल पाया उसका पता चलने लगेगा और जीवन में से दुःख मिटने लगेंगे और हमारी जब विदा होगी शरीर से इस संसार से तब अस्तित्व राजी होगा, ईश्वर प्रसन्न होंगे कि आया कोई मेरा रूप, ऐसे भक्त की विदाई पर ईश्वर प्रसन्न होंगे। इन्द्रियों के देवता राजी होंगे कि धन्य है इसने अपने जीवन में इन्द्रियों के द्वारा भक्ति की। आँखों से, कानों से, सबसे जीभ से इस आदमी ने भक्ति की है।
६. प्रजल्प - प्रजल्प माने व्यर्थ की बातें बोलना, अतिश्योक्ति करते रहना। एक लडका आया भागता हुआ और बोला पिताजी मैनें आज रास्ते में २ दर्जन शेर देखें बाप ने कहा तेरा दिमाग तो खराब नही हो गया २ दर्जन शेर किसको बोलते है बोला हाँ पिताजी २ दर्जन शेर देखे, उसके पिता बोले हो नही सकते २ दर्जन शेर शहर में, तो बेटा बोला २ नही तो १ दर्जन तो होंगें ही, पिताजी बोले नही बेटे १ दर्जन शेर शहर में नही हो सकते। तो बोले पिताजी ५ तो थे, पिताजी बोले बेटे ५ शेर शहर में नही हो सकते हैं। तो वो बोला पिताजी १ तो था मुझे झूठा साबित मत करों। पिताजी बोले बेटा शहर में शेर नही होता बेटे तूने कुत्ता देखा होगा तूने, तो वो बोला हाँ कुत्ता जरूर था ... अब २ दर्जन शेर गये, १ दर्जन भी गये, ५ भी गये और १ भी गया और कुत्ते पे आ गया.... फिर बाप ने कहा कि मैनें तुझे करोडों बार कहा है कि अतिश्योक्ति मत किया कर तो मेहमान बैठे थे वो बोले आप भी तो अतिश्योक्ति कर रहे है बेटे की उम्र कितनी है वो बोले ५ साल, ५ साल बेटे की उमर है और आपने इसको करोडों बार कह दिया। १.५ साल तक तो वो बोलता ही नही, बाकी बचे ३.५ साल तो क्या ३.५ साल में तुमने इसको करोडों बार कह दिया अतिश्योक्ति तो आप भी कर रहे हो। तो कई बार प्रजल्प भी भक्ति में बाधक देता है। तो इन ६ बाधकों से बचे।

ये तो थे भक्ति के ६ बाधक अब भक्ति के ६ तत्व जो भक्ति में सहायक है भक्ति में अनुकूल ६ गुण है कौन-कौन से हैं।

उत्साहः, निश्चयात धैर्यात, तत तत कर्म प्रवृर्नात ।संग त्यागात सतो व्रते षडवीर भक्ति प्रसिद्धति ॥

१. उत्साह - भक्ति वर्धक नियमों के पालन में उत्साह, आनन्द, खुशी, जल्दी उठ्ने में उत्साह, ऐसा नही जल्दी उठने में आलस्य। उत्साह ये भक्ति वर्धक नियमों में जरूरी है। उत्साह बना रहे।
२. विश्वास - शास्त्र और गुरुदेव के वचनों में अटूट विश्वास होना चाहिये। गुरुदेव ने कहा है बस बात पूरी हो गई। शबरी ने कैसे गुरु की बात में विश्वास किया तो कैसे भगवान राम के दर्शन हो गये।
३. धैर्य - असंख्य विघ्न आने पर भी धैर्य रखें। अभीष्ट सिद्धि में विलम्ब होये तो भी धैर्य रखें कि ५ साल हो गये है मैं साधना कर रहा हूँ मेरे को कोई अभी ऊँचा अनुभव नही हुआ। ये धैर्य रखे। ५ साल हो गये साधना कर रहे है तो कमाई तो हो गई १० माला रोज जपते है वो कमाई किसकी हुई। आपकी ही तो हुई, जप करने वाले की हुई भले मन नही लगा। बिना मन लगे जप किया ये तो सुमिरण नाहि लेकिन ये तो जप नाहि ऐसा तो कही नही लिखा।

माला तो कर में फिरे, जीभ फिरे मुख माही,मनवा तो दसों दिश फिरे ये तो सुमिरण नाहि ॥

ये सुमिरण नही है पर ये तो जप नाहि ये तो किसी ग्रन्थ में नही लिखा है। जप तो हो ही गया कमाई तो हो ही गयी। ये कितना बडा़ लाभ हैं। इसलिये मेरा मन लग जाय या मेरा मन नही लगता ऐसा मत सोचों। धैर्य..... भक्ति में अनुकूल तीसरा गुण धैर्य हैं।

४. तत तत कर्म प्रवृतनात - मानें भक्ति को पोषने वाले कर्म विधि और निषेध दो प्रकार से होते हैं। एक तो सत्संग सुनना ये भक्ति वर्धक हैं। भक्ति में अनुकूल है और निषेध कि भाई संसारिक भोग सुखों का परित्याग ये निषेध, तत तत कर्म प्रवृतनात, अशुद्ध आहार ये निषेध में आया सात्विक आहार ये विधि में आया। तत तत कर्म प्रवृतनात, थियेटर में जाकर बैठे ये निषेध में आयेगा। उसमें कमी आयेगी संस्कार बिगडेगें। आँख बिगडेगी। आँखों की रोशनी खराब होना ठीक है पर दृष्टि खराब होना ये ठीक नही है। दृष्टि कमजोर होना ये तो चल जायेगा पर दृष्टि खराब होना ये नही चलेगा। दृष्टि कमजोर भले हो पर दृष्टि खराब न हो। दृष्टि में ऐसा तो अंजन लगाया जाय आँखों में कि जिस दृष्य को भी हम देखे उसे विकृत करके न देखें। हरिः हरिः हरिः हरिः हरिः ......... ॐ नमों नारायणाय ......... ॐ नमों नारायणाय ......... ॐ नमों नारायणाय ........ ये भक्ति में अनुकूल चौथा गुण है।

५. संग त्यागात - मायावादी, निर-ईश्वरवादी, ईश्वर में नही मानते है, ईश्वर प्राप्त सदगुरु में नही मानते हैं। उन मूर्खों का संग त्याग कर दें। संग त्यागात सतो व्रते, भक्तों जैसा व्यव्हार करें। सतो व्रते, एक भक्त कैसा व्यवहार करता हैं। सोचो कि मेरी जगह पर मीराबाई होती तो क्या करती, मेरी जगह पर विवेकानन्द जी होते तो क्या करते, मेरी जगह पर कबीरदास जी के शिष्य सलूका-मलूका होते तो क्या करते। क्या उनकी श्रद्धा-भक्ति कम होती, भक्तों जैसा व्यवहार करें। सतो व्रते, ये भक्ति वर्धक पाँचवा गुण हैं।

छटाँ गुण में सुन ना पाया इसलिये यहाँ पर नही लिख पाया आपसे क्षमा चाहता हूँ।

स्रोतः- स्वामी सुरेशानन्द जी सत्संग, सायन, मुम्बई वी.सी.डी भाग-१,२

गुरुवार, 5 फ़रवरी 2009

पूनमव्रत महात्मय - सुरेशानन्द जी

पूनमव्रत दर्शन

भारतीय संस्कृति में ऐसी सुन्दर व्यवस्था है कि अधिकतर भगवत सम्बंधी कार्य पूनम के दिन ही किये जाते है। जैसे तीर्थ स्नान, उसकी महिमा है। गुरुदेव के दर्शन, पूनम के दिन विशेष उसकी महिमा हैं। पूर्णिमा तिथी का विशेष महात्म्य क्या है। यजुर्वेद में आता हैं

"चन्द्रमा मनसो जातस चक्षों सूर्यो अजायतः" ।

अर्थात हमारे मन की उत्पत्ति चन्द्रमा से हुई है और पूनम के दिन चन्द्र पूर्ण कला विकसित होता है। पूर्ण कला सम्पन्न होता है। उस दिन हमारा मन भी पूर्ण उल्लासित होता हैं जैसे पूनम के दिन समुद्र आदि के जल में भी विस्तार आ जाता हैं ज्वार आता है बढ्ती आती है विशेष, रोज की अपेक्षा तो पूनम के दिन हमारा मन भी चरम विस्तार पाता हैं तो उस फैले हुए विस्तारता युक्त मन में जगत की कोई कामना या वासना न भरे बल्कि गुरुदेव की भक्ति व्यापे इसलिये सनातन धर्म में ये व्यवस्था है कि पूनम के दिन ऐसे पवित्र कार्य करे और पूनम के दिन गुरु दर्शन का नियम रखें तो उस दिन हमारा मन और अधिकाधिक भक्ति संपन्न होता हैं। वासनायें दूर होती है। इसलिये जो श्रद्धा से पूनम व्रत करते है हर पूनम को गुरु दर्शन करके फिर अन्न-जल ग्रहण करते है तो उनको विशेष-विशेष भक्ति लाभ होता है ये मैनें कई पूनम व्रतधारी भाई-बहनों के जीवन में देखा है। उनकी एक अलग ही आभा हैं। पूनम व्रतधारी जो वास्तव में पूनम व्रतधारी हैं उनका एक अलग ही प्रभाव है। जो गुरुदेव से कुछ चाहते नही है केवल एक प्रेम है कि ज्ञानदाता, भक्तिदाता, दिक्षादाता हमारा कल्याण चाहने वाले और करने वाले गुरुदेव के महिने में एक बार हमको दर्शन का लाभ मिल जायें।

"दर्शनम तव लोकस्य सर्वथा अघहरं परम"।

ऐसे भक्तों की आभा कुछ अलग ही होती है। उनकी मानसिकता बहुत ही अच्छी और ऊँची होती हैं। उनकी आन्तरिक स्थिति बहुत बढिया होती हैं बाहर कैसी भी परिस्थिति आ जाये वो परिस्थितियाँ उनको विचलित नही कर सकती है। आनन्द में रहते है। बर्फ पानी का ही एक दूसरा रूप है जमा हुआ, बर्फ पर स्याही की एक बूँद डालों तो वो फैलेगी नही वो उतने में ही रहेगी पर बर्फ पानी बन गई, गल गई, उसमे स्याही की एक बूँद डालो फैल जायेगी। पूनम के दिन हम जब गुरुदर्शन करते है गुरु की कृपा की एक किरण वो हमारे दिल-दिमाग में भर जाती हैं इसीलिये पूनम के दिन गुरुदेव के दर्शन का महात्म्य है और जो इस महात्म्य से अनजान है। वो बिचारे अपने मन में कामनाये और वासनाये भरते हुए और बढाते हुए अपना अमूल्य निर्मूल्य गवाँ देते है। मुठ्ठी बाँधे आते है, हाथ पसारे चले जाते है। कुछ ले कर आये थे श्वासों का खजाना वो भी गँवा कर चले जाते है और साधक जो आस्थावान होते है वो श्वासों का खजाना ले कर धरती पर जन्मे थे श्वासों का खजाना तो कम होता जाता है पर भीतर भक्ति का खजाना वो बढाते जाते है और बडे सम्पदावान हो जाते है। पूनम के दिन गुरुदर्शन की महिमा है। पूनम के दिन चन्द्रमा को अर्घ्य देने की भी महिमा है, पूनम की रात को, दूध ना मिले तो पानी से ही चन्द्रमा को अर्घ्य दे और अर्घ्य देते समय बोलियेगा, जिनको कोई आर्थिक परेशानी हो उनको तो चन्द्र्मा को अर्घ्य हर पूनम के दिन जरूर देना चाहिये। दूध कही भी अर्घ्यदान देना हो तो ताँबे के लोटे से नही दिया जाता है फिर स्टील का लोटा चाहिये। पूनम की रात को चन्द्रमा को अर्घ्य देते समय पौराणिक श्लोक हैं वो पढना चाहिये।

दधि शंख तुषाराभम, क्षीरो दारनव शनीभम ।
नमामि शशिनम सोमम, सम्भोर मुकुट भूषणं ॥

शिवजी ने हे चन्द्र देव! आपको अपना मुकुट बनाया हैं अपने भाल (मस्तक) में धारण किया हैं। आपको मेरा प्रणाम हैं। आपको शिवजी के भाल में स्थान मिला, हे चन्द्रदेव! मन के मालिक देव! हमको हमारे गुरुदेव के हृदय में स्थान मिले। जो हमारे तारणहार है, उनके दिल में, चरणों में सदा के लिये स्थान मिल जायें। हम उनसे कभी दूर न हों हम सदैव उनके सम्मुख रहें। हमारी गुरुदेव के दिल में जगह बन जाय और वो बनी रहे। इस प्रकार चन्द्रमा के अर्घ्य दें दे।

स्रोतः- उत्तरायण ध्यानयोग शिविर २००९ (११ जनवरी २००९ सुबह के सत्र में)।
पूनम दर्शन व्रत दो तरह से किया जाता है :-

१ - जहाँ गुरुदेव हो वही जाकर दर्शन किये जाये।
२ - जो साधक भाई-बहन देश से दूर है या जो जहाँ गुरुजी है वहाँ नही जा सकते है तो वे साधक भाई-बहन निकट के आश्रम में जाकर गुरुदेव के दर्शन करे और पूनम व्रत का पालन करे।
लिखने में यदि कुछ गलती हो गई हो तो गुरुदेव के चरणों में क्षमा प्रार्थी हूँ ...

हरिः ॐ .........