उ. – बार-बार
भगवान से
ईमानदारी से
प्रार्थना
करनी चाहिए
किः "हे
प्रभु !
इन्द्रियाँ
मुझे घसीटकर
भोगों में ले
जाती हैं। हे
नाथ ! तू दया
कर। मैं
जन्मों से
भटका हूँ। अभी
भी आदत ऐसी ही
गन्दी है। देखने
के पीछे,
चबाने के
पीछे, वाह-वाह
सुनने के पीछे
मेरा समय
बरबाद हो रहा
है। हे प्रभु ! तू
मुझे
कृपा-प्रसाद
दे।'' ऐसा
करके भगवान के
शरण चले जाओ।
विकार उठे उसी
समय भगवान से
प्रार्थना
करने लगो। ऐसा
करने से बच
जाओगे और कभी
फिसल भी जाओ
तो निराश मत
हो। फिर से उठो।
फिर से
प्रार्थना
करो। हजार बार
गिर जाओ तो भी
निराश मत हो।
आखिर
तुम्हारी ही
विजय होगी।
भीतर का रस
मिलने लग
जायगा। वह रस
ठीक से मिल
गया फिर
विकारों में
ताकत नहीं
तुम्हें बाँध
सकें।
जिन्दा
चूहा बिल्ली
को नहीं मार
सका तो मरा हुआ
चूहा बिल्ली
को क्या
मारेगा ?
ज्ञानी की
बुद्धि को
संसाररूपी
चूहा नहीं फँसा
सकता। साधक था
तभी भी नहीं
फँसा, तभी तो
साधक हुआ।
साधक अवस्था
में नहीं फँसा
तभी तो यहाँ
आया। फँसता तो
संसार के
चक्कर में
जाता। संसार
में जन्म
लिया, संसार
में रहा,
माँ-बाप,
भाई-बहन,
कुटुम्बी-पड़ोसियों
के बीच रहा
फिर भी मोह
ममता को चीरता
हुआ सत्संग
में पहुँचा,
गुरू के पास
पहुँचा। अभी
आप यहाँ
पहुँचे हैं न ?
जिन्दा
संसाररूपी
चूहा आपकी
बुद्धिरूपी
बिल्ली को
फँसा नहीं
सका। तभी तो
आप
ब्रह्मज्ञान
के सत्संग में
पहुँचे।
ज्ञान हो जाय,
बोध हो जाय
फिर संसार
क्या बाँधेगा
आपकी बुद्धि
को ? जगत का
मिथ्यात्व
पक्का हो गया
तो फिर वह बुद्धि
को दबा नहीं
सकता। अभी भी
जगत सच्चा लग
रहा है फिर भी
वह बुद्धि को
दबा नहीं सकता
इससे ईश्वर के
मार्ग पर पहुँचे
हो। इसीलिए
सत्संग और
वेदान्त में
रूचि हो रही
है। जगतरूपी
चूहे का
प्रभाव
ज्यादा होता
तो बुद्धिरूपी
बिल्ली दबी
रहती है।
जिसकी
इन्द्रियाँ
वश में हो
जाती हैं उसकी
बुद्धि
परमात्मा में
प्रतिष्ठित
हो जाती है।
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