मासिक साधना उपयोगी तिथियाँ

व्रत त्योहार और महत्वपूर्ण तिथियाँ

25 फरवरी - माघी पूर्णिमा
03 मार्च - रविवारी सप्तमी (शाम 06:19 से 04 मार्च सूर्योदय तक )
06 मार्च -
व्यतिपात योग (दोपहर 14:58 से 07 मार्च दिन 12:02 मिनट तक)
08 मार्च - विजया एकादशी (यह त्रि स्पृशा एकादशी है )
09 मार्च - शनि प्रदोष व्रत
10 मार्च - महा शिवरात्री (निशीथ काल मध्यरात्री 12:24 से 01:13 तक )
11 मार्च - सोमवती अमावस्या (
सूर्योदय से रात्री 1:23 तक )
11 मार्च - द्वापर युगादी तिथि
14 मार्च - षडशीति संक्रांति (पुण्यकाल शाम 4:58 से
सूर्योदय तक)
19 मार्च - होलाष्टक प्रारम्भ
20 मार्च - बुधवारी अष्टमी (
सूर्योदय से दोपहर 12:12 तक)
23 मार्च - आमलकी एकादशी
24 मार्च - प्रदोष व्रत
26 मार्च - होलिका दहन
27 मार्च - धुलेंडी , चैतन्य महाप्रभु जयंती
29 मार्च - संत तुकाराम द्वितीय
30 मार्च - छत्रपति शिवाजी जयन्ती

बुधवार, 24 अगस्त 2011

परिवर्तन नहीं परिमार्जन....(परम पूज्य संत श्री आसाराम जी "बापू")


अर्जुन के सामने भगवान श्रीकृष्ण खड़े हैं, फिर भी उनका भय नहीं गया, शोक नहीं गया। जब उसने श्रीकृष्ण का सत्संग सुना और उस अनुसार अपने आत्मा का ज्ञान जगाया तो अर्जुन का भय भी नहीं रहा, शोक भी नहीं रहा, दुःख भी नहीं रहा और युद्ध जैसा घोर कर्म किया किंतु उसके ऊपर बंधन नहीं रहा, मुक्तात्मा हो गया।

तो गीता का ज्ञान तुम्हे ऐरी-गैरी चीजों में आसक्ति करके भोगी नहीं बनाना चाहता, ऐरी गैरी परिस्थितियों का गुलाम बनाकर तुम्हें जगत का पिट्ठू नहीं देखना चाहता। लोग क्या करते हैं कि परिवर्तन चाहते हैं। दुःख आया है.... अब दुःख मिटे, सुख आयें। रोग आया है... रोग मिटे, तंदुरूस्ती आये। निंदा आयी है, अभी सराहना आ जाय, परिवर्तन... परिवर्तन करते-करते खुद परिवर्तित होकर मौत के मुँह में चले जाते हैं लेकिन'गीता' कहती है कि परिवर्तन के चक्कर में मत आओ। दुःख को सुख से दबाओ मत। दुःख की जड़ उखाड़ के फेंक दो। निंदा को प्रशंसा से दबाओ मत, निंदा और प्रशंसा की गहराई में तुम एकरूप हो – ऐसी ज्ञान की समझ जगाओ। बीमारी में और तंदुरुस्ती में तुम एकरस हो। बचपन, जवानी, बुढ़ापा – यह सब बदलता है, फिर भी जो नहीं बदलता वह है तुम्हारा अपना आप, हर परिस्थिति का बाप ! गुरु की कृपा से ऐसे अनुभव की कुंजी पा लो। शब्दों की डींग मत हाँकना। वास्तविक अनुभव में सदगुरु का प्यारा सत्शिष्य ही पहुँच सकता है।

अपने जीवन में परिवर्तन की इच्छा मत करो। जैसे यूरोप, अमेरिका, और देश परिवर्तन, परिवर्तन में लगे हैं। नया पैक, नया फैशन, गाड़ी नयी, मॉडल नया, कार्पेट नया, रंग-रोगन नया.. नया, नया, नया... परिवर्तन, परिवर्तन..... यहाँ तक कि पत्नी बदलो, पति बदलो, मकान बदलो.... फिर भी अभागे लोग दुःखी हैं। 'गीता' कहती है प्रकृति के परिवर्तन में मत पड़ो। तुम तो अपनी बुद्धि का परिमार्जन करो। सारे परिवर्तन तुम्हें उलझा रहे हैं। तुम परिवर्तन के आधारस्वरूप परमात्मा में सुलझकर अभी सुखी हो जाओ, अभी निश्चिंत हो जाओ, अभी निर्णय हो जाओ।

मर जायेंगे फिर हमें श्मशान में, कब्र में डालकर आयेंगे। कोई पैगम्बर आकर हमारे लिए सिफारिश करेगा, फिर हमें बिहिश्त मिलेगा, अप्सराएँ मिलेंगी, शराब के चश्मे मिलेंगे। यहाँ शराब की बोतल तबाही कर देती है, अपनी पत्नी के सिवाय रावण जैसा भी यदि दूसरे की पत्नी के प्रति बुरी नजर करता है तो उसकी दुर्दशा होती है तो वे अप्सराएँ क्या दे देंगी ! सोचते हैं, 'यहाँ बुढ़िया है, मर जायेंगे तो अप्सराएँ मिलेंगी।' शराब के चश्मे, हूरें और हूरों का विलास तुम्हें नोच लेगा बेटे ! सावधान हो जाओ, ऐसी ख्वाहिश मत करो। इश्क मिजाजी, इश्क इलाही, इश्क नुरानी में अभी लग जाओ। जिसे प्रेमाभक्ति, अनुरागा भक्ति, पराभक्ति भी कहते हैं।

मदभक्तिं लभते पराम्।

श्रीकृष्ण के वचनों को रहीम खानखाना ने और अकबर की बेगम ताज ने अनुभव किया, मौलाना जलालुद्दीन रूमी ने, कबीर जी ने और लीलाशाह प्रभुजी ने, राजा जनक ने जो प्रेमाभक्ति का परम स्वाद पाया और बाँटा उसी में तुम आ जाओ।

सब दुःखों की एक दवाई,

पराभक्ति पा लो भाई।

वह प्रभु तुमसे दूर नहीं, तुम उससे दूर नहीं।

आदि सचु जुगादि सचु।

है भी सचु नानक होसी भी सचु।।

तो गीता परिवर्तन नहीं परिमार्जन करती है, समझ बदल देती है परिवर्तन प्रकृति में होगा।

यं हि न व्यथयन्त्येते पुरुषं पुरुषर्षभ।

समदुःखसुखं धीरं सोऽमृतत्वाय कल्पते।

'हे पुरुषश्रेष्ठ ! दुःख-सुख को समान समझने वाले जिस धीर पुरुष को ये इन्द्रिय और विषयों के संयोग व्याकुल नहीं करते, वह मोक्ष के योग्य होता है।'

(गीताः 2.15)

परमात्मा तो नित्य और एकरस है। जो भी होगा हमारे विकास के लिए होगा। सिनेमा में सुंदर मकान, बगीचे दिखते हैं। हो-हो के चले जाते हैं। जो मूर्ख है, उन्हें रोके रखना चाहता है वह दुःखी होगा। जो अपने ढंग का देखना चाहता है वह भी दुःखी होगा। जो दिख रहा है, दिख रहा है... बदल रहा है, बदल रहा है। जो आता है आने दो, जाता है जाने दो। बनता है बनने दो बिगड़ता है बिगड़ने दो। जो धन मिल गया, मिल गया। जो चला गया, उसके लिए रोते क्यों हो ! जो मान मिल गया मिल गया, चला गया तो चला गया। इसी का नाम तो दुनिया है।

खून पसीना बहाता जा, तान के चादर सोता जा।

यह नाव दो हिलती जायेगी, तू हँसता जा या रोता जा।।

तो काहे को रोयें ! वाह-वाह ! क्यों न करें ! अपनी बुद्धि में भगवान के ज्ञान का प्रकाश ले आओ। जो बीत गया उसको याद करके शोक मत करो। मैं पहले ऐसा सुखी था, यह दुःख मिला, अभी ऐसा है। नहीं, नहीं, जो बीत गया, अभी हमारे पास नहीं है उसके पीछे क्यों मरें !

भविष्य हमारे पास नहीं है, वर्तमान में आनंदित करो, परिमार्जित करो अपने मन को रसमय जीवन... जिह्वा में भगवदरस में, मन में भगवदरस भरो। मधुर बोलेंगे, सारगर्भित बोलेंगे, स्नेहयुक्त बोलेंगे, गीता के ज्ञान से भरकर वाणी बोलेंगे। हो गया परिमार्जन ! मन में किसी का बुरा नहीं सोचेंगे, किसी का बुरा नहीं चाहेंगे और कोई भी हमारा बुरा करे को वह व्यक्ति सदा के लिए ऐसा नहीं है, ऐसी समझ जाग्रत रखेंग। कोई किसी को दुःख देता है तो दुःख सामने वाले को मिले न मिले, दुःख देने वाले का दिल तो दुःख देने के विचार से गंदा होता है और कोई किसी को सुख देता है या भला करता है तो सामने वाले का कब-कितना भला हो भगवान जानें लेकिन भलाई के विचार से उसका खुद का दिल तो भला होता है न !

जो हुआ अच्छा हुआ, जो हो रहा है अच्छा है, जो होगा वह भी अच्छा होगा यह नियम प्रभु का है। हम मन के चाहे पर अड़ जाते हैं इसीलिए दुःख होता है, तनाव होता है। बच्चा मनचाही चाहता है इसीलिए दुःखी होता है। माँ बच्चे को रगड़-रगड़ के शुद्ध करना चाहती है लेकिन बच्चे को अच्छा नहीं लगता, स्कूल भेजना चाहती है लेकिन अच्छा नहीं लगता फिर भी रोते-रोते भी स्नान तो करना पड़ता है, रोते-रोते भी स्कूल जाना तो पड़ता है। तो आप अपना मनचाहा परिवर्तन मत करो, परिमार्जन होने दो।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, सितम्बर 2010, पृष्ठ संख्या 18,19 अंक 213

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

1 टिप्पणी: