(पूज्य बापू जी के सत्संग से)
दस वर्ष की उम्र से लेकर चालीस वर्ष की उम्र तक विवेकशक्ति बढ़ती रहती है। अगर इस उम्र में कोई विवेकशक्ति नहीं बढ़ाता है तो फिर चालीस वर्ष के बाद उसकी विवेकशक्ति क्षीण होती जाती है। जो दस से चालीस वर्ष की उम्र में विवेकशक्ति बढ़ाने की कोशिश करता है उसकी तो यह शक्ति बाद में भी बढ़ती रहती है। 40 वर्ष के बाद भी विवेकशक्ति बढ़ती रहे उसकी एक साधना है। इस साधना को सात विभागों में बाँट सकते हैं। एक तो सत्संग सुनता रहे।
बिन सतसंग बिबेक न होई।
खाने पीने का, इधर-उधर का, अतिथि मेहमान का विवेक नहीं, आत्मा क्या है, जगत क्या है और परमात्मा क्या है ? – इस बात का विवेक।
अविनासी आतम अचल, जग तातैं प्रतिकूल।
आत्मा अविनाशी है, हम अविनाशी हैं और जगत विनाशी है। हम शाश्वत हैं, शरीर और जगत नश्वर है – इस प्रकार का प्रखर विवेक। यह सारी साधनाओं का मूल है।
उसने सब अध्ययन कर लिया, उसने सब पढ़ाई कर ली और सारे अनुष्ठान कर लिये जिसने सांसारिक इच्छाओं का त्याग करके इच्छारहित आत्मा-परमात्मा में आने का ठान लिया – ऐसा तीव्र विवेक ! ईश्वरप्राप्ति के उस तीव्र विवेक को जगाने के लिये ये सात साधन हैं।
दूसरा है सत्शास्त्रों का अध्ययन। तीसरा साधन है प्रातः और संध्या के समय त्रिबन्ध प्राणायाम करके जप। भगवद् ध्यान, भगवत्प्राप्ति का जो साधन या मार्गदर्शन गुरु ने दिया है उसका अभ्यास, इससे विवेक जगेगा। चौथा साधन है कम बोलना, कम खाना और कम सोना, आलस्य छोड़ना। नींद के लिए तो 4-5 घंटे काफी हैं, आलसी की नाईं न पड़े रहें। अति नींद नहीं, आलस्य नहीं, अति आहार नहीं, अति शब्द विलास नहीं। पाँचवाँ है शुद्ध, सात्त्विक भोजन और छठा सारगर्भित साधन हैब्रह्मचर्य पालना, 'दिव्य प्रेरणा प्रकाश' पुस्तक पढ़ना। इसने तो न जाने कितनी उजड़ी बगियाँ गुले-गुलेजार कर दी हैं। कई युवक-युवतियों की जिंदगी मृत्यु के कगार से उठाकर बाहर कर दी। आप लोग भी 'दिव्य प्रेरणा-प्रकाश' पुस्तक पढ़ना और दूसरों तक पहुँचाने की सेवा खोज लेना। सातवाँ साधन है सादगी।
ये सात साधन संसार की चोटों से, मुसीबतों से तो क्या बचायेंगे और आपके जीवन में भगवत्प्राप्ति का दिव्य विवेक भी जगमगा देंगे।
स्रोतः ऋषि प्रसाद, जुलाई 2011, पृष्ठ संख्या 5, अंक 223
ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें