ईश्वर भी उन्हीं की मदद करता है जो पुरुषार्थ करके स्वयं अपनी कमियों को दूर करने का प्रयत्न करते हैं, अपने दोष आप मिटाने के लिए जो कृत-संकल्प होते हैं। हमारे अन्दर कौन-से दोष हैं यह हम अच्छी तरह जानते हैं। उन्हें निकालने के लिए जब तक हम स्वयं प्रयास नहीं करेंगे तब तक वे दूर नहीं होंगे।
क्रोधः जरा-जरा सी बात पर झुँझला जाना, क्रोधित हो जाना बड़ा भारी दोष है। क्रोधी व्यक्ति की स्मृति का लोप हो जाता है, उसकी बुद्धि भ्रमित और प्रतिभा कुण्ठित हो जाती है।
जब लगे कि क्रोध आने वाला है तो मौन होकर वहाँ से दूसरी जगह चले जाइये। प्रतिदिन एक-दो घंटा मौन रखिये और भोजन चबा-चबाकर कीजिए, इससे क्रोध पर नियंत्रण आयेगा। (अन्य प्रयोग देखें- आरोग्यनिधि भाग-2, पृष्ठ संख्या 191 पर)
घृणा तथा ईर्ष्याः जब आप किसी के प्रति घृणा या ईर्ष्या रखते हैं तो वह आपको ही हानि करती हैं क्योंकि इससे सबसे पहले आपका ही चित्त मलिन होता है। सबमें ईश्वर का भाव रखकर सबके प्रति प्रेम का व्यवहार कीजिए – इस प्रकार घृणा, ईर्ष्या तथा असहिष्णुता पर विजय प्राप्त कीजिए।
भयः भय, चिंता और क्रोध मनुष्य की सम्पूर्ण शक्तियों का ह्रास करते हैं। भय के कारण कभी-कभी व्यक्ति सफल होते होते भी चूक जाता है। भ्रूमध्य में ध्यान करते हुए ॐकार का जप व्यक्ति को निर्भय बनाता है। महाभारत जैसे सदग्रन्थ, जिनमें भीम, अर्जुन तथा अन्य योद्धाओं के शौर्य का वर्णन है, पढ़ने चाहिए। असंयमित व्यक्ति ज्यादा भयभीत होते हैं, ब्रह्मचर्य प्रचुर शक्ति और साहस प्रदान करता है।
निराशा व आत्महीनताः निराश व्यक्ति किसी भी वस्तु के सकारात्मक पक्ष को न देखकर उसके अवगुणों को ही देखता है। आशावादी व्यक्ति प्रत्येक वस्तु के सदगुण को ही देखेगा। निराशावादी मनुष्य अपने को हमेशा हीन व असहाय महसूस करता है। जिनके जीवन में सदगुरु की दीक्षा, गुरुमंत्र का बल नहीं है वे ज्यादा निराश-हताश होते देखे गये हैं। परम सुहृद परमात्मा आपके साथ हैं तो अपने को निराश-हताश और दुर्बल क्यों मानना ? ॐकार की टंकार से निराशा व आत्महीनता के विचारों को दूर भगायें। पूज्य बापूजी द्वारा बताया गया 'देव-मानव हास्य-प्रयोग' सुबह उठने के बाद व रात्रि को सोने से पहले करें, इससे आत्महीनता व निराशा को दूर करने में बहुत मिलेगी।
आलस्य, असावधानी और विस्मृतिः आलसी विद्यार्थी अपना काम समय पर नहीं कर पाता और हँसी का पात्र बनता है। आलस्य दूर करने में सूर्यनमस्कार व त्रिबन्ध प्राणायाम बहुत मदद करते हैं। इसी प्रकार असावधानी और लापरवाही भी एक बड़ा दोष है। असावधान विद्यार्थी कोई भी कार्य ठीक से नहीं कर पाता। वह सदा पेन, कापी, चाबियाँ इत्यादि खोता रहता है। समय पर जब उसे कोई चीज नहीं मिलती तो वह परेशान होता है।
अतः अपने दैनिक कार्यों व उपयोगी वस्तुओं की सूची बनायें और समय-समय पर उसका अवलोकन करते रहें। सूर्यदेव को रोज जल चढ़ायें। नियमित भ्रामरी प्राणायाम करने व प्रातः खाली पेट तुलसी के पाँच-सात पत्ते चबा-चबाके खाकर ऊपर से आधा गिलास पानी पीने से विस्मृति रोग दूर होता है। (अन्य यौगिक प्रयोगों के लिए देखें पुस्तक 'दिव्य प्रेरणा प्रकाश', पृ. 35)
कुसाहित्य एवं सिनेमाः इन दोनों से आज हमारी युवा पीढ़ी का जितना पतन हो रहा है उतना और किसी चीज से नहीं। जिस विद्यार्थी को महान बनना हो उसे इन दोनों से दूर ही रहना चाहिए। गंदे साहित्य व फिल्मों से मन में कुसंस्कार भर जाते हैं, फिर जैसे ऊसर भूमि में अनाज नहीं उगता वैसे ही उसमें दिव्य सदगुणों का विकास नहीं होता।
इन्द्रिय लोलुपताः इन्द्रिय लोलुपता विकास के मार्ग में एक बड़ा भारी अवरोध है, अतः अपनी इन्द्रियों पर कड़ी निगरानी रखें। जिसने अपनी इन्द्रियों को अनुशासित कर लिया है, उसका संकल्प बलवान तथा मन शांत होगा। वह अच्छी तरह ध्यान कर सकता है व एकाग्र हो सकता है। उसमें अपार आंतरिक बल प्रकट होता है। उसे हर किसी क्षेत्र में सफलता मिलती है। इन्द्रिय-दमन से आपको सदगुणों के विकास तथा दुर्गुणों के उन्मूलन में बहुत सहायता प्राप्त होगी और बुरी आदतों का निवारण आपके लिए बड़ा सरल हो जायेगा।
बुरी आदत को एक ही झटके से छोड़ देना चाहिए, धीरे धीरे कम करके छोड़ने का विचार प्रायः सफल नहीं हुआ करता। जो बुरी आदतों के शौकीन हों उनके संग से हमेशा बचें। जब पुरानी आदत जोर करे तो सावधान हो जायें। जब कभी तनिक सा भी प्रलोभन उपस्थित हो तो दृढ़ता से अपना मुख फेर ले। भगवन्नाम का जप करें। मन को किसी कार्य में पूर्णतया व्यस्त कर दें। दृढ़ संकल्प करें कि 'मैं अवश्य महान बनूँगा।' इस संसार में तुम्हारे लिए कुछ भी असंभव नहीं है। जहाँ चाह है, वहाँ राह है।
---:- स्रोतः लोक कल्याण सेतु, मार्च अप्रैल 2009
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