(पूज्य बापू जी के सत्संग प्रवचन से) प्रायः भक्तों के जीवन में यह फरियाद बनी रहती है कि 'हम तो भगवानकी इतनी भक्ति करते हैं, रोज सत्संग करते हैं, निःस्वार्थ भाव से गरीबोंकी सेवा करते हैं, धर्म का यथोचित अनुष्ठान करते हैं फिर भी हम भक्तोंकी इतनी कसौटियाँ क्यों होती हैं ?'
बचपन में जब तुम विद्यालय में दाखिल हुए थे तो 'क, ख, ग' आदि काअक्षरज्ञान तुरंत ही हो गया था कि विघ्न बाधाएँ आयी थीं ? लकीरें सीधीखींचते थे कि कलम टेढ़ी-मेढ़ी हो जाती थी ? जब साईकिल चलाना सीखाथा तब भी तुम एकदम सीखे थे क्या ? नहीं। कई बार गिरे, कई बार उठे।चालनगाड़ी को पकड़ा, किसी की उँगली पकड़ी तब चलने के काबिल बनेऔर अब तो मेरे भैया ! तुम दौड़ में भाग ले सकते हो।
अब मेरा सवाल है कि जब तुम चलना सीखे तो विघ्न क्यों आये ? क्यों विद्यालय में परीक्षा के बहाने कसौटियाँहोती थीं ? तुम्हारा जवाब होगा कि 'बापू जी ! हम कमजोर थे, अभ्यास ज्ञान नहीं था।'
ऐसे ही तुमने परमात्मा को पाने की दिशा में कदम रख दिया है। तुम अभी 30 वर्ष के, 50 वर्ष के छोटे बच्चे हो, तुम्हें इस जगत के मिथ्यात्व का पता नहीं है। ईश्वर के लिए अभी तुम्हारा प्रेम कमजोर है, नियम में सातत्य औरदृढ़ता की जरूरत है। अहंकार-काम-क्रोध के तुम जन्मों के रोगी हो, इसीलिए तो तुम्हारी कसौटियाँ होती हैं औरविघ्न आते हैं ताकि तुम मजबूत बन सको। साधक तो विघ्न-बाधाओं से खेलकर मजबूत होता है। कसौटियाँइसलिए कि तुम प्रभु को प्यार करते हो और वे तुम्हें प्यार करते हैं। वे तुम्हारा परम कल्याण चाहते हैं। वे तुम्हेंकसौटियों पर कसकर, तुम्हारा विवेक-वैराग्य जगाकर तुमसे नश्वर संसार की आसक्ति छुड़ाना चाहते हैं।
माता कुंती भगवान श्रीकृष्ण से प्रार्थना करती थीं-
विपदः सन्तु न यश्वत्तत्र जगदगुरो......
'हे जगदगुरो ! हमारे जीवन में सर्वदा पद-पद पर विपत्तियाँ आती रहें क्योंकि विपत्तियों में ही निश्चित रूप से आपकाचिंतन-स्मरण हुआ करता है और आपका चिन्तन-स्मरण होते रहने पर फिर जन्म-मृत्यु के चक्कर में नहीं आनापड़ता।'
एक बीज को वृक्ष बनने में कितने विघ्न आते हैं। कभी पानी मिला कभी नहीं, कभी आँधी आयी, कभी तूफानआया, कभी पशु-पक्षियों ने मुँह-चौंचें मारीं.... ये सब सहते हुए वृक्ष खड़े हैं। तुम भी कसौटियों को सहते हुए वृक्षखड़े हैं। तुम भी कसौटियों को सहन करते हुए उन पर खरे उतरते हुए ईश्वर के लिए खड़े हो जाओ तो तुम ब्रह्म होजाओगे। परमात्मा की प्राप्ति की दिशा में कसौटियाँ तो सचमुच कल्याण के परम सोपान हैं। जिसे तुम प्रतिकूलताकहते हो सचमुच वह वरदान है क्योंकि अनुकूलता में लापरवाही एवं विलास सबल होता है तथा संयम एवं विवेकदबता है और प्रतिकूलता में विवेक एवं संयम जगता है तथा लापरवाही एवं विलास दबता है। कसौटियों के समयघबराने से तुम दुर्बल हो जाते हो, तुम्हारा मनोबल क्षीण हो जाता है। हम लोग पुराणों की कथाएँ सुनते हैं। ध्रुव तपकर रहा था। असुर लोग डराने के लिए आये लेकिन ध्रुव डरा नहीं। सुर लोग विमान लेकर प्रलोभन देने के लिएआये लेकिन ध्रुव फिसला नहीं। वह विजेता हो गया। वे कहानियाँ हम सुनते हैं, सुना भी देते हैं लेकिन समझते नहींकि ध्रुव जैसा बालक दुःख से घबराया नहीं और सुख में फिसला नहीं। उसने दोनों का सदुपयोग कर लिया तो ईश्वरउसके पास प्रकट हो गये।
हम क्या करते हैं ? जरा-सा दुःख पड़ता है तो दुःख देने वाले पर लांछन लगाते हैं, परिस्थितियों को दोष देते हैंअथवा अपने को पापी समझकर कोसते हैं। कुछ दुर्बुद्धि, महाकायर आत्महत्या भी कर लेते हैं। कुछ पवित्र होंगे तोकिसी संत-महात्मा के पास जाकर दुःख से मुक्ति पाते हैं। यदि आप प्रतिकूल परिस्थितियों में संतो के द्वार जाते हैंतो समझ लीजिये कि आपको पुण्यमिश्रित पापकर्म का फल भोगना पड़ रहा है क्योंकि कसौटि के समय जबपरमात्मा याद आता है तो डूबते को सहारा मिल जाता है। नहीं तो कोई शराब का सहारा लेता है तो कोई और किसीका.....मगर इससे न तो समस्या हल होती है और न ही शांति मिल पाती है क्योंकि जहाँ आग है वहाँ जाने सेशीतलता कैसे महसूस हो सकती है ! तुम कसौटी के समय धैर्य खोकर पतन की खाई में गिर जाते हो और फिरफँसकर रह जाते हो।
जो गुरुओं के द्वार पर जाते हैं उनको कसौटियों से पार होने की कुंजियाँ सहज ही मिल जाती हैं। इससे उनके दोनोंहाथों से लड्डू होते हैं। एक तो संत-सान्निध्य से हृदय की तपन शांत होती है, समस्या का हल मिलता है, साथ-ही-साथ जीवन की नयी दिशा भी मिलती है। तभी तो स्वामी रामतीर्थ कहते थेः "हे परमात्मा ! रोज नयीसमस्या भेजना।"
आज आप इस गूढ़ रहस्य को यदि भलीभाँति समझ लेंगे तो आप हमेशा के लिए मुसीबतों से, कसौटियों से पार होजायेंगे। बात है साधारण पर अगर शिरोधार्य कर लेंगे तो आपका काम बन जायेगा।
आपने देखा होगा कि जिस खूँटे के सहारे पशु को बाँधना होता है, उसे घर का मालिक हिलाकर देखता है कि उसेउखाड़कर कहीं पशु भाग तो नहीं जायेगा। फिर घर की मालकिन देखती है कि उचित जगह पर तो ठोका गया है यानहीं। फिर ग्वाला देखता है कि मजबूत है या नहीं। एक खूँटे को, जिसके सहारे पशु बाँधना है, इतने लोग देखते हैं, उसकी कसौटियाँ करते हैं तो जिस भक्त के सहारे समाज को बाँधना है, समाज से अज्ञान भगाना है उस भक्त कीभगवान-सदगुरु यदि कसौटियाँ नहीं करेंगे तो भैया कैसे काम चलेगा ?
जिसे वो देना चाहता है उसी को आजमाता है।
खजाने रहमतों के इसी बहाने लुटाता है।।
जब एक बार सदगुरु की, भगवान की शरण आ गये तो फिर क्या घबराना ! जो शिष्य़ भी है और दुःखी भी है तो मानना चाहिए कि वह अर्धशिष्य है अथवा निगुरा है। जो शिष्य भी है और चिंतित भी है तो मानना चाहिए कि उसमें समर्पण का अभाव है। मैं भगवान का, मैं गुरु का तो चिंता मेरी कैसे ! चिंता भी भगवान की होगयी, गुरु की हो गयी। हम भगवान के हो गये तो कसौटी, बेईज्जती हमारी कैसे ! अब तो भगवान को ही सबसँभालना है। जैसे आदमी कारखाने का कर्मचारी हो जाता है तो कारखाने को लाभ हानि जो भी हो, उसे तो वेतनमिलता ही है, ऐसे ही जब हम ईश्वर के हो गये तो हमारा शरीर ईश्वर का साधन हो गया। खेलने दो उस परमात्मा कोतुम्हारे जीवनरूपी उद्यान में। बस, तुम तो अपनी ओर से पुरुषार्थ करते जाओ। जो तुम्हारे जिम्मे आये उसे तुम करलो और जो ईश्वर के जिम्मे है वह उसे करने दो, फिर देखो तुम्हारा काम कैसे बन जाता है। वे लोग मूर्ख हैं जोभगवान को कोसते हैं और वे लोग धन्य हैं जो हर हाल में खुश रहकर अपने-आप में तृप्त रहते हैं। गरीबी है तो क्याखाने को, पहनने को नहीं है तो क्या ! यदि तुम्हारे दिल में गुरुओं के प्रति श्रद्धा है, उनके वचनों को आत्मसात्करने की लगन है तो तुम सचमुच बड़े ही भाग्यशाली हो। सच्चा भक्त भगवान से उनकी भक्ति के अलावा किसी औरफल की कभी याचना नहीं करता। !
जिसे वह इश्क देता है, उसे और कुछ नहीं देता है।
जिसे वह इसके काबिल नहीं समझता, उसे और सब कुछ देता है।।
'श्री योगवासिष्ठ' में आता है कि चिंतामणि के आगे जो चिंतन करो, वह चीज मिलती है परंतु सत्पुरुष के आगे जोचीज माँगोगे वह चीज वे नहीं देंगे, जिससे तुम्हारा हित होगा वही देंगे।
यदि तुम्हारी निष्ठा है, संयम है, सत्य का आचरण है, सेवा का सदगुण है तो वे सबसे पहले तुम्हारी कसौटी हो, ऐसीपरिस्थितियाँ देंगे ताकि इन सदगुणों के सहारे तुम सत्यस्वरूप परमात्मा को पा लो, परमात्मा को पाने की तड़पबढ़ा दो क्योंकि वे तुम्हारे परम हितैषी हैं। सदगुरूओं का ज्ञान तुम्हें ऊपर उठाता है। परिस्थितियाँ हैं सरिता काप्रवाह, जो तुम्हें नीचे की ओर घसीटती हैं और सदगुरु 'पम्पिंग स्टेशन' है जो तुम्हें हरदम ऊपर उठाते हैं।
अज्ञानी के रूप में जन्म लेना कोई पाप नहीं। मूर्ख के रूप में पैदा होना कोई पाप नहीं पर मूर्ख रहकर सुख-दुःख केथप्पड़ खाना और जीर्ण-शीर्ण होकर प्रभु से विमुख होकर मर जाना महापाप है।
मनुष्य जन्म मिला है, सदगुरु का सान्निध्य और परम तत्त्व का ज्ञान पाने का दुर्लभ मौका भी हाथ लगा है औरसबसे बड़ी हर्ष की बात यह है कि तुममें श्रद्धा और समझ है, अब केवल उसके लिए तड़प, जिज्ञासा बढ़ा दो। दुःख, चिंता और परेशानियों से क्यों घबराते हो ! ये तो कसौटियाँ हैं जो आपको निखार कर चमकाना चाहती हैं। हिम्मत, साहस, संयम की तलवार से जीवनरूपी कुरूक्षेत्र में आगे बढ़ते जाओ.... तुम्हारी निश्चय ही विजय होगी, तुमदिग्विजयी होओगे, तत्त्व के अनुभवी होओगे, तुममें और भगवान में कोई फासला नहीं रहेगा। सदगुरू का अनुभवतुम्हारा अनुभव हो जाय, यही तुम्हारे सदगुरूओं का पवित्र प्रयास है।
तेरे दीदार के आशिक, समझाये नहीं जाते हैं।
कदम रखते हैं तेरे द्वार पर, तो लौटाये नहीं जाते हैं।।
स्रोतः ऋषि प्रसाद, मार्च 2010, पृष्ठ संख्या 4,5,6. अंक 207.