तीन प्रकार के अहंकार हैं-
पहलाः 'मैं शरीर हूँ... शरीर के मुताबिक जाति वाला, धर्मवाला, काला, गोरा, धनवान, गरीब इत्यादि हूँ....' ऐसा अहंकार नर्क में ले जाने वाला है। देह को मैं मानकर, देह के सम्बन्धियों को मेरे मानकर, देह से सम्बन्धित वस्तुओं को मेरी मानकर जो अहंकार होता है वह क्षुद्र अहंकार है। क्षुद्र चीजों में अहंकार अटक गया है। यह अहंकार नर्क में ले जाता है।
दूसराः "मैं भगवान का हूँ.... भगवान मेरे हैं.....' यह अहंकार उद्धार करने वाला है। भगवान का हो जाय तो जीव का बेड़ा पार है।
तीसराः 'मैं शुद्ध बुद्ध चिदाकाश, मायामल से रहित आकाशरूप, व्यापक, निर्लेप, असंग आत्मा, ब्रह्म हूँ।' यह अहंकार भी बेड़ा पार करने वाला है।'
प्रह्लाद ने किसी कुम्हार को देखा कि वह भट्ठे को आग लगाने के बाद रो रहा है। वह आकाश की ओर हाथ उठा-उठाकर प्रार्थनाएँ किये जा रहा है.... आँसू बहा रहा है।
प्रह्लाद ने पूछाः "क्यों रोते हो भाई ? क्यों प्रार्थनाएँ करते हो ?"
कुम्हार ने कहाः "मेरे भट्ठे (पजावे) के बीच के एक मटके में बिल्ली ने अपने बच्चे रखे थे। मैं उन्हें निकालना भूल गया और अब चारों और आग लग चुकी है। अब बच्चों को उबारना मेरे बस की बात नहीं है। आग बुझाना भी संभव नहीं है। मेरे बस में नहीं है कि उन मासूम कोमल बच्चों को जिला दूँ लेकिन वह परमात्मा चाहे तो उन्हें जिन्दा रख सकता है। इसलिए अपनी गलती का पश्चाताप भी किये जा रहा हूँ और बच्चों को बचा लेने के लिए प्रार्थना भी किये जा रहा हूँ किः
"हे प्रभु ! मेरी बेवकूफी को, मेरी नादानी को नहीं देखना... तू अपनी उदारता को देखना। मेरे अपराध को न निहारना..... अपनी करूणा को निहारना नाथ ! उन बच्चों को बचा लेना। तू चाहे तो उन्हें बचा सकता है। तेरे लिए कुछ असम्भव नहीं। हे करूणासिंधो ! इतनी हम पर करूणा बरसा देना।'
कुम्हार का हृदय प्रार्थना से भर गया। अनजाने में उसका देहाध्यास खो गया। अस्तित्व ने अपनी लीला खेल ली। भट्ठे में मटके पक गये। जिस मटके में बच्चे बैठे थे वह मटका भी पक गया लेकिन बच्चे कच्चे के कच्चे..... जिन्दे के जिन्दे रहे।
*मूकं करोति वाचालं पंगुं लंघयते गिरिम्।*
वह ईश्वर चाहे तो क्या नहीं कर सकता ? वह तो सतत करता ही है।
परमात्मा तो चाहता है, अस्तित्व तो चाहता है कि आप सदा के लिए सुखी हो जाओ। इसीलिए तो सत्संग में आने की आपको प्रेरणा देता है। अपनी अक्ल और होशियारी से तो कर-कर के सब लोग थक गये हैं। परमात्मा की बार-बार करूणा हुई है और हम लोग बार-बार उसे ठुकराते हैं फिर भी वह थकता नहीं है। हमारे पीछे लगा रहता है हमें जगाने के लिए। कई योजनाएँ बनाता है, कई तकलीफें देता है, कई सुख देता है, कई प्रलोभन देता है, संतों के द्वारा दिलाता है।
वह करूणासागर परमात्मा इतना इतना करता है, तुम्हारा इतना ख्याल रखता है। बिल्ली के बच्चों को भट्ठे में बचाया ! बिल्ली के बच्चों को जलते भट्ठे में बचा सकता है तो अपने बच्चों को संसार की भट्ठी से बचा ले और अपने आपमें मिला ले तो उसके लिए कोई कठिन बात नहीं है।
अस्तित्व चाहता है कि तुम अपने घर लौट आओ.... संसार की भट्ठी में मत जलो। मेरे आनन्द-सागर में आओ.... हिलोरें ले रहा हूँ। तुम भी मुझमें मिल जाओ।
पहलाः 'मैं शरीर हूँ... शरीर के मुताबिक जाति वाला, धर्मवाला, काला, गोरा, धनवान, गरीब इत्यादि हूँ....' ऐसा अहंकार नर्क में ले जाने वाला है। देह को मैं मानकर, देह के सम्बन्धियों को मेरे मानकर, देह से सम्बन्धित वस्तुओं को मेरी मानकर जो अहंकार होता है वह क्षुद्र अहंकार है। क्षुद्र चीजों में अहंकार अटक गया है। यह अहंकार नर्क में ले जाता है।
दूसराः "मैं भगवान का हूँ.... भगवान मेरे हैं.....' यह अहंकार उद्धार करने वाला है। भगवान का हो जाय तो जीव का बेड़ा पार है।
तीसराः 'मैं शुद्ध बुद्ध चिदाकाश, मायामल से रहित आकाशरूप, व्यापक, निर्लेप, असंग आत्मा, ब्रह्म हूँ।' यह अहंकार भी बेड़ा पार करने वाला है।'
प्रह्लाद ने किसी कुम्हार को देखा कि वह भट्ठे को आग लगाने के बाद रो रहा है। वह आकाश की ओर हाथ उठा-उठाकर प्रार्थनाएँ किये जा रहा है.... आँसू बहा रहा है।
प्रह्लाद ने पूछाः "क्यों रोते हो भाई ? क्यों प्रार्थनाएँ करते हो ?"
कुम्हार ने कहाः "मेरे भट्ठे (पजावे) के बीच के एक मटके में बिल्ली ने अपने बच्चे रखे थे। मैं उन्हें निकालना भूल गया और अब चारों और आग लग चुकी है। अब बच्चों को उबारना मेरे बस की बात नहीं है। आग बुझाना भी संभव नहीं है। मेरे बस में नहीं है कि उन मासूम कोमल बच्चों को जिला दूँ लेकिन वह परमात्मा चाहे तो उन्हें जिन्दा रख सकता है। इसलिए अपनी गलती का पश्चाताप भी किये जा रहा हूँ और बच्चों को बचा लेने के लिए प्रार्थना भी किये जा रहा हूँ किः
"हे प्रभु ! मेरी बेवकूफी को, मेरी नादानी को नहीं देखना... तू अपनी उदारता को देखना। मेरे अपराध को न निहारना..... अपनी करूणा को निहारना नाथ ! उन बच्चों को बचा लेना। तू चाहे तो उन्हें बचा सकता है। तेरे लिए कुछ असम्भव नहीं। हे करूणासिंधो ! इतनी हम पर करूणा बरसा देना।'
कुम्हार का हृदय प्रार्थना से भर गया। अनजाने में उसका देहाध्यास खो गया। अस्तित्व ने अपनी लीला खेल ली। भट्ठे में मटके पक गये। जिस मटके में बच्चे बैठे थे वह मटका भी पक गया लेकिन बच्चे कच्चे के कच्चे..... जिन्दे के जिन्दे रहे।
*मूकं करोति वाचालं पंगुं लंघयते गिरिम्।*
वह ईश्वर चाहे तो क्या नहीं कर सकता ? वह तो सतत करता ही है।
परमात्मा तो चाहता है, अस्तित्व तो चाहता है कि आप सदा के लिए सुखी हो जाओ। इसीलिए तो सत्संग में आने की आपको प्रेरणा देता है। अपनी अक्ल और होशियारी से तो कर-कर के सब लोग थक गये हैं। परमात्मा की बार-बार करूणा हुई है और हम लोग बार-बार उसे ठुकराते हैं फिर भी वह थकता नहीं है। हमारे पीछे लगा रहता है हमें जगाने के लिए। कई योजनाएँ बनाता है, कई तकलीफें देता है, कई सुख देता है, कई प्रलोभन देता है, संतों के द्वारा दिलाता है।
वह करूणासागर परमात्मा इतना इतना करता है, तुम्हारा इतना ख्याल रखता है। बिल्ली के बच्चों को भट्ठे में बचाया ! बिल्ली के बच्चों को जलते भट्ठे में बचा सकता है तो अपने बच्चों को संसार की भट्ठी से बचा ले और अपने आपमें मिला ले तो उसके लिए कोई कठिन बात नहीं है।
अस्तित्व चाहता है कि तुम अपने घर लौट आओ.... संसार की भट्ठी में मत जलो। मेरे आनन्द-सागर में आओ.... हिलोरें ले रहा हूँ। तुम भी मुझमें मिल जाओ।
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