मासिक साधना उपयोगी तिथियाँ

व्रत त्योहार और महत्वपूर्ण तिथियाँ

25 फरवरी - माघी पूर्णिमा
03 मार्च - रविवारी सप्तमी (शाम 06:19 से 04 मार्च सूर्योदय तक )
06 मार्च -
व्यतिपात योग (दोपहर 14:58 से 07 मार्च दिन 12:02 मिनट तक)
08 मार्च - विजया एकादशी (यह त्रि स्पृशा एकादशी है )
09 मार्च - शनि प्रदोष व्रत
10 मार्च - महा शिवरात्री (निशीथ काल मध्यरात्री 12:24 से 01:13 तक )
11 मार्च - सोमवती अमावस्या (
सूर्योदय से रात्री 1:23 तक )
11 मार्च - द्वापर युगादी तिथि
14 मार्च - षडशीति संक्रांति (पुण्यकाल शाम 4:58 से
सूर्योदय तक)
19 मार्च - होलाष्टक प्रारम्भ
20 मार्च - बुधवारी अष्टमी (
सूर्योदय से दोपहर 12:12 तक)
23 मार्च - आमलकी एकादशी
24 मार्च - प्रदोष व्रत
26 मार्च - होलिका दहन
27 मार्च - धुलेंडी , चैतन्य महाप्रभु जयंती
29 मार्च - संत तुकाराम द्वितीय
30 मार्च - छत्रपति शिवाजी जयन्ती

गुरुवार, 16 अक्तूबर 2008

पुराण कथामृत (कार्तिक मास - २)

भगवान श्री गणेशजी का अनोखा संयम

ब्रह्मकल्प की बात है। नवयौवनसंपन्ना परम लावण्यती तुलसीदेवी भगवान नारायण का स्मरण करती हुई तीर्थों में भ्रमण कर रही थीं। वे पतितपावनी श्रीगंगाजी के पावन तट पर पहुँचीं, तब उन्होंने देखा कि वहाँ पीताम्बर धारण किये नवयौवनसंपन्न, परम सुन्दर निधिपति भगवान श्रीगणेश ध्यानस्थ अवस्था में बैठे हैं। उन्हें देखकर तुलसीदेवी सहसा कह उठीं - “अत्यंत अदभुत और अलौकिक रूप है आपका !”

संयमशिरोमणि, जितेन्द्रियों में अग्रगंण्य पार्वतीनन्दन श्री गणेश का चन्दन-विलेपित तेजस्वी विग्रह देखकर तुलसीदेवी का मन उनकी ओर बरबस आकृष्ट हो गया। विनोद के स्वर में उन्होंने गणेशजी से कहाः “गजवक्त्र ! शूर्पकर्ण ! एकदन्त ! घटोदर! सारे आश्चर्य आपके ही शुभ विग्रह में एकत्र हो गये हैं। किस तपस्या का फल है यह ?”

उमानन्दन एकदन्त ने शांत स्वर में कहाः “ वत्से! तुम कौन हो और किसकी पुत्री हो ? यहाँ किस हेतु से आयी हो ? माता ! तपश्चरण में विघ्न डालना उचित नही। यह सर्वथा अकल्याण का हेतु होता है। मंगलमय प्रभु तुम्हारा मंगल करें।”

तुलसीदेवी ने मधुर वाणी में उत्तर दिया : “ मैं धर्मात्मज की पुत्री हूँ। मैं मनोनुकूल पति की प्राप्ति के लिये तपस्या में संलग्न हूँ। आप मुझे पत्नी के रूप में स्वीकार कर लीजिये।”

घबराते हुए गणेशजी ने उत्तर दिया “माता! विवाह बडा दुःखदायी होता है। तुम मेरी ओर से अपना मन हटाकर किसी अन्य पुरुष को पति के रूप में वरण कर लो। मुझे क्षमा करों ।”

कुपित होकर तुलसी देवी ने गणेशजी को शाप दिया “ तुम्हारा विवाह अवश्य होगा।”एकदन्त गणेश ने भी तुरंत तुलसी देवी को शाप देते हुए कहा “देवि ! तुम्हें भी असुर पति प्राप्त होगा। उसके अनन्तर महापुरुषों के शाप से तुम वृक्ष हो जाओगी।”पार्वतीनन्दन के अमोघ शाप के भय से तुलसीदेवी गणेशजी का स्तवन करने लगीं।

परम दयालु, सबके मंगल में रत गणेशजी ने तुलसीदेवी की स्तुति से प्रसन्न होकर कहा “देवि ! तुम पुष्पों की सारभूता एवं कलांश से नारायण-प्रिया बनोगी। वैसे तो सभी देवता तुमसे संतुष्ट होंगे किंतु भगवान श्री हरि के लिये तुम विशेष प्रिय होगी। तुम्हारे द्वारा श्रीहरि की अर्चना कर मनुष्य मुक्ति प्राप्त करेंगे किंतु मेरे लिये तुम सर्वदा त्याज्य रहोगी।”

इतना कहकर गणेशजी तपश्चर्या हेतु बद्रीनाथ की ओर चल दिये। कालान्तर में तुलसीदेवी वृन्दा नाम से दानवराज शंखचूड की पत्नी हुई। शंखचूड भगवान संकर द्वारा मारा गया और उसके बाद नारायण - प्रिया तुलसी कलांश से वृक्षभाव को प्राप्त हो गयीं।

(ब्रह्मवैवर्त पुराण, प्रकृति खण्ड)
{लोक कल्याण सेतु (वर्ष ११ अंक १२२ १६ अगस्त से १५ सितम्बर २००७) के आधार पर}

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