ॐ श्री गणेशाय नमःॐ श्री सरस्वत्यें नमःॐ श्री गुरुभ्यों नमः
स्कंदपुराण के वैष्णवखण्ड में कार्तिक मास की महत्ता बताते हुए ब्रह्माजी नारद जी से कहते हैं - बेटा ! यह मनुष्य-योनि दुर्लभ हैं। इसे पाकर मनुष्य अपने को इस प्रकार रखे कि उसे पुनः नीचे न गिरना पडे। कार्तिक में सभी देवता मनुष्य से सन्निकट होते हैं और इसमें किये हुए स्नान, दान, व्रत को विधिपूर्वक ग्रहण करते है, जो भी तप किया जाता है, उसे सर्वशक्तिमान भगवान विष्णु ने अक्षय फल देने वाला बतलाया है।
कार्तिक मास के समान कोई मास नहीं, सतयुग के समान कोई युग नही, वेदों के समान कोई शास्त्र नहीं और गंगाजी के समान दूसरा कोई तीर्थ नहीं हैं।दान आदि करने में असमर्थ मनुष्य प्रतिदिन प्रसन्नता पूर्वक नियम से भगवन्नामों का स्मरण करे।
गुरु के आदेश देने पर उनके वचन का कभी उल्लंघन न करे। गुरु की प्रसन्नता से मनुष्य सब कुछ प्राप्त कर लेता है। कार्तिक में सब प्रकार से प्रयत्न करके गुरु की सेवा करे। ऐसा करने से उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।
कार्तिक में अन्नदान अवश्य करना चाहिये। जो मनुष्य कार्तिक मास में प्रतिदिन गीता का पाठ करता है, उसके पुण्यफल का वर्णन करने की शक्ति मुझ में नही है। गीता के समान कोई ग्रन्थ न तो हुआ है और न होगा।
भूमि पर शयन, स्नान, दीपदान, तुलसी के पौधों को लगाना और सींचना, ब्रह्मचर्य का पालन, भगन्नाम संकीर्तन तथा पुराणों का श्रवण - कार्तिक मास में इन सब नियमों का पालन करना चाहिए ।
[ लोक कल्याण सेतु (अंक ६४, १६ अक्टूबर से १५ नवम्बर २००२) के आधार पर ]
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