मासिक साधना उपयोगी तिथियाँ

व्रत त्योहार और महत्वपूर्ण तिथियाँ

25 फरवरी - माघी पूर्णिमा
03 मार्च - रविवारी सप्तमी (शाम 06:19 से 04 मार्च सूर्योदय तक )
06 मार्च -
व्यतिपात योग (दोपहर 14:58 से 07 मार्च दिन 12:02 मिनट तक)
08 मार्च - विजया एकादशी (यह त्रि स्पृशा एकादशी है )
09 मार्च - शनि प्रदोष व्रत
10 मार्च - महा शिवरात्री (निशीथ काल मध्यरात्री 12:24 से 01:13 तक )
11 मार्च - सोमवती अमावस्या (
सूर्योदय से रात्री 1:23 तक )
11 मार्च - द्वापर युगादी तिथि
14 मार्च - षडशीति संक्रांति (पुण्यकाल शाम 4:58 से
सूर्योदय तक)
19 मार्च - होलाष्टक प्रारम्भ
20 मार्च - बुधवारी अष्टमी (
सूर्योदय से दोपहर 12:12 तक)
23 मार्च - आमलकी एकादशी
24 मार्च - प्रदोष व्रत
26 मार्च - होलिका दहन
27 मार्च - धुलेंडी , चैतन्य महाप्रभु जयंती
29 मार्च - संत तुकाराम द्वितीय
30 मार्च - छत्रपति शिवाजी जयन्ती

सोमवार, 1 अगस्त 2011

सबसे उत्तम मार्गदर्शक...


आप यह भली प्रकार जान लो कि कोई भी मनुष्य किसी के मार्गदर्शन बिना केवल अपने बल पर उन्नत नहीं बन सकता। आपका यह अनुभव है कि बाल्यकाल में बोलना आप अपने बल पर नहीं सीखे। माता-पिता आदि से सीखे। चलना भी किसी की मदद से ही सीखे। पढ़ना-लिखना शिक्षकों की मदद से सीखे। तो आनंदमय एवं सफल जीवन कैसे जीना तथा जीवन का वास्तविक लक्ष्य क्या है उसे कैसे पानायह अपने आप कैसे जान सकोगे ? इसके लिए भी किसी मार्गदर्शक की जरूरत है। एक ऐसे मार्गदर्शक, जो कर्तव्य-अकर्तव्य के सच्चे पारखी हों, वैदिक ज्ञान का सार जानने वाले उसके अनुभवी हों, हमारे सच्चे हितैषी हों, हमारे प्रति करूणावान हों हमें उन्नति के मार्ग पर आगे बढ़ने हेतु सबल सहारा प्रदान करने में समर्थ हों।

वेद भगवान के वचन हैं-

प्र नूनं ब्रह्मणस्पतिर्मन्त्रं वदत्युक्थ्यम्। यस्मिन्निन्द्रो वरूणो मित्रो अर्यमा देवा ओकांसि चक्रिरे।।
'सचमुच परमात्मा और ब्रह्मज्ञानी महापुरुष ही स्पष्ट एवं प्रशंसनीय मार्गदर्शन देते हैं। उनके मार्गदर्शन में इन्द्रक, वरूण, मित्र और अर्यमा देवों का निवास होता है।' (ऋग्वेदः1.40.5)

जीवन की समस्याओं से हतप्रभ हो इधर-उधर मत भटको, भगवान की शरण में जाओ। वे तुम्हें किन्हीं ब्रह्मनिष्ठ महापुरुष की शरण में जाने की प्रेरणा देंगे या पहुँचा देंगे, जिनकी सीख एवं दिव्य ज्योति तुमको प्रकाशमय कर देगी। आपके अबोध मन में जब भी कर्तव्य-अकर्तव्य का द्वन्द्व उठ खड़ा हो, आप अपने उन समर्थ मार्गदर्शक से उत्तर पाने की लिए जहाँ हो वहीं शांत हो जाओ, उनका सुमिरन करो, आर्त भाव से उन्हें मन-ही-मन प्रार्थना करो। आपको अवश्य मार्ग मिलेगा। वे आपके लिए मार्ग दिखाने वाले, हाथ पकड़कर उस पर ले चलने वाले एवं सर्वश्रेष्ठ लक्ष्य से मिलाने वालेसब कुछ बनने के लिए तैयार हैं। बस, आप उनके सान्निध्य में आपकी जो ऊँची स्थिति हो जाती है, उसे याद रखकर अपनी श्रद्धा को अधिकाधिक सुदृढ़ बनाते जाना। उनके आज्ञापालन में तत्पर बनते जाना। आज्ञापालन ही श्रद्धा का मापदंड है।

वेद भगवान के अनुसार ब्रह्मज्ञानी गुरु के मार्गदर्शन में इन्द्र, वरुण, मित्र और अर्यमा देवों का मार्गदर्शन भी निहित होता है। इन्द्र ऐश्वर्य, शक्ति, प्रगति और विजय सूचक देता है। वरुण पाप-विमोचक शक्ति का आदर्श प्रस्तुत करते हैं। मित्र मैत्री और आपसी स्नेह-सौहार्द के सूचक हैं। अर्यमा ऊँच-नीच विभेद व्यवहार और न्यायकारिता के देवता हैं। ब्रह्मज्ञानी महापुरुष के मार्गदर्शन में उपर्युक्त सभी प्रकार की सीख स्वतः समाविष्ट होती है। अतः दैनंदिन जीवन में ब्रह्मज्ञानी महापुरूषों की सीख के अनुसार चलकर आप आत्मोन्नति कर लो। इससे आप हर क्षेत्र में विजय प्राप्त कर सकोगे, पाप से बच जाओगे, जन-जन के प्रति मैत्रीभाव से परिपूर्ण बनोगे और न्याय का आदर्श प्रस्तुत कर सकोगे। इतना ही नहीं, यदि आप उनकी कृपा को पूर्णरूप से झेल लोगे तो मनुष्य-जीवन का सुफल (परमात्म-साक्षात्कार) प्राप्त कर लोगे। आत्मोन्नति के लिए उनके उपदेशों को अपने जीवन का कानून बना लेना चाहिए।

स्रोतः लोक कल्याण सेतु, अप्रैल 2011, पृष्ठ संख्या 2, अंक 166

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