मासिक साधना उपयोगी तिथियाँ

व्रत त्योहार और महत्वपूर्ण तिथियाँ

25 फरवरी - माघी पूर्णिमा
03 मार्च - रविवारी सप्तमी (शाम 06:19 से 04 मार्च सूर्योदय तक )
06 मार्च -
व्यतिपात योग (दोपहर 14:58 से 07 मार्च दिन 12:02 मिनट तक)
08 मार्च - विजया एकादशी (यह त्रि स्पृशा एकादशी है )
09 मार्च - शनि प्रदोष व्रत
10 मार्च - महा शिवरात्री (निशीथ काल मध्यरात्री 12:24 से 01:13 तक )
11 मार्च - सोमवती अमावस्या (
सूर्योदय से रात्री 1:23 तक )
11 मार्च - द्वापर युगादी तिथि
14 मार्च - षडशीति संक्रांति (पुण्यकाल शाम 4:58 से
सूर्योदय तक)
19 मार्च - होलाष्टक प्रारम्भ
20 मार्च - बुधवारी अष्टमी (
सूर्योदय से दोपहर 12:12 तक)
23 मार्च - आमलकी एकादशी
24 मार्च - प्रदोष व्रत
26 मार्च - होलिका दहन
27 मार्च - धुलेंडी , चैतन्य महाप्रभु जयंती
29 मार्च - संत तुकाराम द्वितीय
30 मार्च - छत्रपति शिवाजी जयन्ती

रविवार, 11 जुलाई 2010

आपके पास कल्पवृक्ष है

एक ऐसा भगतड़ा था, धार्मिक था। शरीर से हट्टा-कट्टा था। कभी शिवजी की पूजा करता तो कभी राम जी की, कभी कन्हैया को रिझाता तो कभी जगदम्बा को, कभी गायत्री की उपासना करता है तो कभी दुर्गा की। कभी-कभी हनुमानजी को भी रिझाने का लगता था ताकि और कोई देवी-देवता संकट के समय में न आवें भी पवनसुत हनुमानजी जम्प मारकर आ सकते हैं। अपने पूजा के कमरे में वह भगत कई देवी-देवता के चित्र रखता था, मानो कोई छोटी-मोटी प्रदर्शनी हो।
शरीर से पहलवान जैसा वह भगतड़ा बैलगाड़ी चलाने का धंधा करता था। एक बार उसकी बैलगाड़ी फँस गई। वह नर्वस हो गया। आकाश की ओर निहार कर गिड़गिड़ाने लगाः "हे मेरे रामजी, आप दया करो। हे ठाकुरजी, आप आओ। हे कन्हैया, तू सहायता कर। हे भोलेनाथ, आप पधारो। मेरी बैलगाड़ी फँस गई है, आप निकाल दो।"
भगतड़ा एक के बाद एक करके तमाम देवी-देवताओं को बुला चुका। कोई आया नहीं। शाम ढलने लगी। सूर्य डूबने की तैयारी में था। गाँव काफी दूर था। गाड़ी में माल भरा था। लुटेरों का भय था। वह रोया। आखिर हनुमानजी को याद किया, गिड़गिड़ाया। पवनसुत जी भी नहीं आये तो वह रोते-रोते सुन्न हो गया, अनजाने में शांत हो गया। चित्त शांत हुआ तो जिससे हनुमान जी हनुमान जी हैं, जिससे गुरु गुरु हैं, शिष्य शिष्य है, जिससे सृष्टि सृष्टि है उस चैतन्य तत्त्व के साथ एकता हो गई क्षणभर। हनुमान जी के दिल में स्फुरित हुआ कि मेरा भक्त विह्वल है, मुझे याद कर रहा है।
कहानी कहती है कि वहाँ हनुमानजी प्रकट हो गये। भगत से बोलेः
"अरे ! रो क्यो रहा है ? क्या बात है ?"
"मेरी गाड़ी फँस गई है कीचड़ में। अब आपके सिवाय मेरा कोई सहारा नहीं। कृपा करके आप मेरी बैलगाड़ी निकलवा दो।"
हनुमानजी ने कहाः "अरे पराश्रित प्राणी ! यही अर्थ करता है तू भगवान को रिझाने का ? ऐसे छोटे-छोटे कार्य करवाने के लिए भगवान की पूजा करता था ? ऐसा ताजा तगड़ा है.... तेरे हृदय में भगवान का अथाह बल छुपा है उस पर तूने भरोसा छोड़ दिया ? उतर नीचे। साँस फुला। जोर लगा। पहिये को धक्का मार और बैल को चला। गाड़ी निकल जायेगी। गाड़ी पर बैठा बैठा रो रहा है कायर ! बोल, नीचे उतरता है कि नहीं ? जोर लगाता है कि गदा मारूँ ?"
आदमी अपने शौक से दौड़ता है लेकिन कोई डण्डा लेकर मारने के लिए पीछे पड़ता है तो भागने की अजीब शक्ति अपने आप आ जाती है। छुपी हुई, दबी हुई शांति प्रकट हो जाती है।
भगतड़े में आ गया जोर। नीचे उतरा, पहिये को धक्का लगाया, बैल को प्रोत्साहित किया। गाड़ी निकल गई।
"हे प्रभु ! आपकी दया गई।"
"हमारी दया नहीं, तुमने अभी अपनी शक्ति का उपयोग किया।"
हम लोग दर्शन शास्त्र का अनादर करते हैं, उससे अनभिज्ञ रहते हैं और तथाकथित भगतड़े हो जाते हैं तो हिन्दू धर्म की मजाक उड़ती है। हमारा हिन्दू धर्म, सनातन धर्म अपने पूर्व गौरव को खो बैठा है, हम लोगों के कारण। धर्म के नाम पर हम लोग पलायनवादी बन जाते हैं। व्यवहार में अकुशल और राग-द्वेष के गुलाम बनने से हमारी शक्तियाँ क्षीण हो जाती हैं। परब्रह्म परमात्मा का एक नाम 'उदासीन' भी है। उसमें तुम्हारी वृत्ति को आसीन करो।

आपके पास कल्पवृक्ष है। आप जो चाहें उससे पा सकते हैं। उसके सहारे आपका जीवन जहाँ जाना चाहता है, जा सकता है, जहाँ पहुँचना चाहता है, जो बनना चाहता है बन सकता है। ऐसा कल्पवृक्ष हर किसी के पास है।
सुंञा सखणा कोई नहीं सबके भीतर लाल। मूरख ग्रंथि खोले नहीं करमी भयो कंगाल।।

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