मासिक साधना उपयोगी तिथियाँ

व्रत त्योहार और महत्वपूर्ण तिथियाँ

25 फरवरी - माघी पूर्णिमा
03 मार्च - रविवारी सप्तमी (शाम 06:19 से 04 मार्च सूर्योदय तक )
06 मार्च -
व्यतिपात योग (दोपहर 14:58 से 07 मार्च दिन 12:02 मिनट तक)
08 मार्च - विजया एकादशी (यह त्रि स्पृशा एकादशी है )
09 मार्च - शनि प्रदोष व्रत
10 मार्च - महा शिवरात्री (निशीथ काल मध्यरात्री 12:24 से 01:13 तक )
11 मार्च - सोमवती अमावस्या (
सूर्योदय से रात्री 1:23 तक )
11 मार्च - द्वापर युगादी तिथि
14 मार्च - षडशीति संक्रांति (पुण्यकाल शाम 4:58 से
सूर्योदय तक)
19 मार्च - होलाष्टक प्रारम्भ
20 मार्च - बुधवारी अष्टमी (
सूर्योदय से दोपहर 12:12 तक)
23 मार्च - आमलकी एकादशी
24 मार्च - प्रदोष व्रत
26 मार्च - होलिका दहन
27 मार्च - धुलेंडी , चैतन्य महाप्रभु जयंती
29 मार्च - संत तुकाराम द्वितीय
30 मार्च - छत्रपति शिवाजी जयन्ती

रविवार, 27 जून 2010

गुरु हरगोविन्द सिंह जयन्ती (२७ जून २०१०)

सिखों के छ्ठे गुरु गुरु हरगोविन्द सिंह जी की आज जयन्ती है । इसी उपलक्ष्य में उनके समय की एक कथा लिख रहा हूँ।
कहते है कि गुरु के दरबार में जो भी आता हैं वह कभी खाली वापस नही जाता है फिर चाहे वो स्वार्थ भाव से आये या फिर निस्वार्थ भाव सें आयें ।
गुरु हरगोविन्द सिंह जी के समय में एक बहन जिसका नाम सुलक्षणा था बडी परेशान थी क्योंकि उसकी कोई संतान नही थी वह हर जगह जा जा कर थक गई मन्दिर, मस्जिद, मजार, मसान सभी जगह उसने फरियाद लगाई लेकिन उसको कोई संतान नही हुई। तभी किसी ने कहा कि जो तुझे पुत्र चाहिये तो गुरुनानक के दर पर जा, इस समय गुरुनानक जी की छठी ज्योत मीरी पीरी के मालिक गुरु हरगोविन्द जी अकाल तख्त में सुशोभित है तु उनके चरणों मे जा कर विनती कर, सुना है कि गुरुनानक जी के दर पर जा कर अरदास करता है माँग माँगता है वो कभी खाली नही लौटता है। सुलक्षणा बहन जब मीरी पीरी के मालिक गुरु हरगोविन्द जी के चरणों में गयी और विनती की " हे सच्चे बादशाह ! तेरे चरणों में अरदास हैं मैं सारे-सारे द्वारे ड़ोल आयी हुँ कही खैरात नही मिली एक बस अब तेरा दर रह गया है और तेरे दर के लिये मैने सुना है जो तेरे दर पर आता है वो कभी खाली नही जाता हैं । मेरी झोली में भी एक पुत्र ड़ाल दों । " मीरी पीरी के मालिक गुरु हरगोविन्द जी ने एक पल के लिये आँखें बन्द की और जो आँखे खोली तो बोले "सुलक्षणिये ! तेरे भाग्य में तो सात जन्मों तक संतान नही हैं ।" सुलक्षणा बहन बडी उदास होकर वापस चल पडी जब जा रही थी तो रास्ते में भाई गुरुदास जी मिल गये। आँखों में आँसु थे सुलक्षणा बहन के, भाई गुरुदास जी बोले " क्या बात है बहन ! गुरु नानक जी के दरबार से तो जो रोता हुआ आता है वो भी हँसता हुआ जाता है तो फिर तु क्युं रो रही है ।" सुलक्षणा बहन बोली कि एक पुत्र माँगने आयी थी गुरुनानक जी के दर पर, पर आज वहाँ से भी जवाब मिल गया। भाई गुरुदास जी ने पूछा "साहिब जी ने क्या कहा ?" सुलक्षणा बहन बोली "साहिब जी ने बोला है कि तेरे भाग्य में पुत्र है ही नही ।" तो भाई गुरुदास जी ने कहा कि आपने विनती करनी चाहिये थी कि अगर वहा भाग्य में नही लिखा है तो आप यहाँ लिख दो क्योकि वहाँ भी लिखने वाले आप ही हो और यहाँ भी देने वाले आप ही हो। सुलक्षणा बहन को युक्ति बताई भाई गुरुदास जी ने कि जब कल साहिब जी अपने घोड़े पर जायेंगे सैर के लिये तब रास्ते में तुम उनसे विनती करना।
आज सुलक्षणा बहन रास्ते पर आकर खड़ी हो गयी क्योंकि उसे पता था कि आज इस रास्ते से मीरी पीरी के मालिक गुरु हरगोविन्द जी आने वाले हैं, जैसे ही साहिब जी आये और घोड़े पर चढ़ने लगे तो सुलक्षणा बहन ने उनके चरण पकड़ लिये और बोली " गरीब नवाज ! कृपा करो
नाम मेरा सुलक्षणी, मैं वसती हूँ चोबे, अरज करेनीया है हरगोबिन्द आगे, अ फलजान्दीनु कोई फल लगें ।
विनती करती है कि एक पुत्र दे दो । तुझे बोला था कल कि तेरे भाग्य में पुत्र हैं ही नही ।" सुलक्षणा बहन बोली कि उधर भी भाग्य लिखने वाला तू ही है और ईधर भी भाग्य बनाने वाला तू ही हैं। जो उधर नही लिखा तो इधर लिख दों ऐसी प्यार से जो उसने विनती की तो हरगोविन्द जी प्रसन्न हो गये और बोले "सुलक्षणा जा तुझे पुत्र दिया ।" सुलक्षणा बहन हाथ जोड़कर बोली "साहिब जी ! मुझसे तो बहुतों ने कहा कि तुझे पुत्र होगा पर आज तक नही हुआ अब मुझे कह कर नही आप मुझे लिख कर देकर जाओ।" साहिब जी बोले "अच्छा तो जा कागज कलम ले आ मैं लिख देता हूँ ।" सुलक्षणा ने ढूँढा और तो कुछ नही मिला उसको, सामने एक ठीकरी पडी थी उसको ही उठा लाई और बोली "हे गरीब नवाज ! इसी पर लिख दो अपने तीर से ही लिख दों ।" गुरु हरगोविन्द जी ने तीर निकाला और जो ठीकरी पर एक लिखने लगें तो सुलक्षणा बहन हाथ जोड़कर कर साहिब जी के घोड़े से विनती की तु तो गुरु का घोडा हैं साहिब जी हर समय तेरे पर सवारी करते हैं। गुरुनानक जी के समय में तो कुतिया की भी करामात है तू भी कोई करामात कर के दिखा । घोड़े ने सिर हिलाया कि मानो कह रहा हो कि ठहर मैं जो तुझे कर के दिखाउगां उसको दुनिया देखेगी । साहिब जी ने ज्युँ ही एक लिखने के लिये तीर चलाया त्युँ ही घोडे ने सिर हिलाया तो वह एक की बजाय सात हो गया । साहिब जी बोले कि ले सुलक्षणिये एक लिखने जा रहा था सात लिख दिया। सुलक्षणा कहती थी कि गरीब नवाज! "लोहडी सत्ता दी सी", एक से कुछ होना ही नही था, जमीन जायदाद तो बहुत है पर "लोहडी सत्ता दी सी ।"
जो सुलक्षणा बहन के घर पर पहला पुत्र हुआ तो वह मीरी पीरी के मालिक गुरु हरगोविन्द जी के चरणों मे ले कर पहुँची और जो माथा झुकाया और माथा झुकाते-झुकाते कहती हैं ................
सोई सोई दे...वे, जो माँगे ठाकुर अपने ते
सोई सोई दे...वे .............

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