मासिक साधना उपयोगी तिथियाँ

व्रत त्योहार और महत्वपूर्ण तिथियाँ

25 फरवरी - माघी पूर्णिमा
03 मार्च - रविवारी सप्तमी (शाम 06:19 से 04 मार्च सूर्योदय तक )
06 मार्च -
व्यतिपात योग (दोपहर 14:58 से 07 मार्च दिन 12:02 मिनट तक)
08 मार्च - विजया एकादशी (यह त्रि स्पृशा एकादशी है )
09 मार्च - शनि प्रदोष व्रत
10 मार्च - महा शिवरात्री (निशीथ काल मध्यरात्री 12:24 से 01:13 तक )
11 मार्च - सोमवती अमावस्या (
सूर्योदय से रात्री 1:23 तक )
11 मार्च - द्वापर युगादी तिथि
14 मार्च - षडशीति संक्रांति (पुण्यकाल शाम 4:58 से
सूर्योदय तक)
19 मार्च - होलाष्टक प्रारम्भ
20 मार्च - बुधवारी अष्टमी (
सूर्योदय से दोपहर 12:12 तक)
23 मार्च - आमलकी एकादशी
24 मार्च - प्रदोष व्रत
26 मार्च - होलिका दहन
27 मार्च - धुलेंडी , चैतन्य महाप्रभु जयंती
29 मार्च - संत तुकाराम द्वितीय
30 मार्च - छत्रपति शिवाजी जयन्ती

रविवार, 13 जून 2010

जो जिस भाव से भजे गुरुदेव को वैसा ही बना देते है गुरुवर.


सेवी साहिब आपनों, और ना जाचों कोई.....
"हे गुरुदेव! मुझे बल दो, मुझे शक्ति दो कि मैं एक तेरी सेवा करुं बस सिर्फ़ तेरी सेवा करुं"

शिष्य के आसरा है सदगुरुदेव और जो शिष्य गुरुदेव को छोड़कर किसी और के पास जायेगा, किसी देवी-देवता के पास, किसी मन्त्र-तन्त्र वाले के पास या किसी कब्र या मजहार में जायेगा तो जैसे बछडा अपनी गौ माता को छोड़कर किसी दूसरी गाय के पास जा कर उससे दूध माँगेगां तो उसको दूध नही मिलेगा लातें मिलेगी। वैसे ही अगर अपने गुरु को छोड़कर यदि कोई कही और जायेगा तो फिर इसी संसार में फँसा रह जायेगा। कभी पार नही पायेगा।
सेवा कर गुरु की तो पार ही पायेगा कभी मार नही खायेगा, जितने भी महान संत प्रसिद्ध हुए है अपने गुरु की सेवा करके ही प्रसिद्ध हुए है। भाई लहड़ा गुरुनानक जी की सेवा करके ही गुरुगद्दी ले गयें। गुरुदेव की सेवा जिसने मनोकामना करके की उसकी मनोकामना पूरी हो गयी और जिन्होनें सदगुरु की सेवा निष्कामता से की उन्होने गुरुदेव को ही पा लिया। भाई लहड़ा जी ने गुरुनानक जी की सेवा निष्कामता से की जिसके फ़लस्वरूप गुरुनानकजी ने उनको बुलाया और कहा कि "लहडियाँ जो तू लहड़ा है तो असी तेरा देड़ा है" और गुरुनानक जी ने उनको अपने अंग से लगा कर उनको अंगद कर दिया और अपनी ज्योति उनके अंदर जला दी और आज्ञा दी कि आप खण्डूर जा कर साध-संगत को नाम जप करवाओं। गुरु अंगद देव जी खण्डूर की धरती पर बैठें हर रोज सिर्फ़ एक ही अरदास करते है गुरुनानक जी से कि जब से मैने तुझे देखा है तब से मुझे और कोई जचता ही नही हैं।
"सेवी साहिब आपनों और ना जाचों कोई, नानक ता का दास है बिंद-बिंद चुख-चुख होई "
रोज सवेरे उठकर गुरु अंगद देव जी साध-संगत को दर्शन देते है और कीर्तन करते हैं। एक दिन सवेरे गुरु अंगद देव जी खण्डूर की धरती पर बैठें है और गुरु का दरबार सजाया हैं और कीर्तन गा रहे है सेवी साहिब आपनों और ना जाचों कोई, नानक ता का दास है बिंद-बिंद चुख-चुख होई तो भाई बाला गुरु अंगददेव के दर्शन करने के लिये आये कि देखुं वो कौन है जिन्होने गुरु नानक जी को भी जीत लिया है। जिन्होने गुरुनानक जी का हृदय भी जीत लिया है। जब भाई बाला गुरु के दरबार में पहुँचे तो क्या देखते है कि गुरु अंगददेव कीर्तन में झूम रहे है जब कीर्तन से उनकी आँखे खुली तो देखा कि भाई बाला खडे है। थोडी देर के बाद गुरुअंगद देव जी ने उनको पास बुलाया और पूछा कि "भाई! आप कौन है।" भाई बाला ने कहा कि "हे गरीब नवाज! मेरा नाम भाई बाला है और मैने सारी उम्र गुरुनानक जी के साथ रहकर उनकी सेवा की है।" जैसे ही गुरुअंगद देव जी ने सुना "भाई बाला" तो उठ खड़े हुए और उनको हृदय से लगा लिया कि "तू बाला है मेरे गुरु नानक जी का साथी" अपने पास बिठा लिया और बोले कि सुनाओ गुरुनानक जी की लीलायें। जैसे-जैसे भाई बाला गुरुनानक जी की लीलाओं का वर्णन करते त्युँ-त्युँ गुरु अंगददेव की आँखों से आँसू बहते हैं। जैसे कोई अपने किसी प्यारे की खबर दे तो कैसे हमारी आँखें भर आती है वैसे ही गुरु अंगददेव की आँखें गुरुयाद से भर गयी। कुछ दिन तक भाई बाला उनके साथ रहे तो गुरु अंगददेव जी ने उनसे गुरुनानक जी की साखीयाँ लिख ली और उनको रख लिया। जब भाई बाला जाने लगे तो उन्होनें गुरु अंगददेव जी से बोला "गरीब नवाज! एक शंका है मन में उसको आप निवृत कर दे" तो गुरुअंगददेव जी ने बोला "भाई बाला गुरु के सामने कोई शंका नही रखना चहिये। क्योकि गुरु के सामने जिनके हृदय में शंका रह जाता है उसका हृदय मैला हो जाता हैं"। अपनी शंका बताओं। भाई बाला बोले कि सारी उम्र गुरु नानकजी की सेवा तो मैने की, गुरुनानजी के साथ मैं रहा लेकिन जब गुरुगद्दी देने का समय आया तो उन्होने आपको बैठा दिया। गुरु अंगददेव जी बोले "भाई बाला! तूने गुरु नानकजी को क्या मान कर सेवा की थी, तूने गुरु नानकजी को क्या मान कर पूजा था"। भाई बाला बोले "मैं गुरु नानकजी को पूर्ण संत मान कर पूजा की थी"। तो गुरु अंगददेव जी ने कहा कि फिर गुरुनानकजी ने तुझे पूर्ण संत ही बना दिया। तब भाई बाला ने पूछा "गरीब नवाज ! मैने तो गुरु नानकजी को पूर्ण संत समझ कर पूजा था पर आप बताओ कि आपने गुरु नानकजी को क्या मान कर पूजा था। तब गुरुअंगद देव जी की आँखें भर आई और उन्होने कहा कि मैने गुरुनानक जी को पारब्रह्म परमेश्वर जान कर पूजा था तब भाई बाला की आँखे भर आयी और उन्होने बोला तो फिर गुरुनानकजी ने आपको पारब्रह्म परमेश्वर का रूप ही बना दिया।
"सदगुरु नो जेहा को कर जाणें, तेहा फल पावे सोई...."
सदगुरु की सेवा सदगुरु को जो जैसा मानकर करता है वो वैसा फल पाता है। भाई लहड़ा पा गये और गुरु अंगददेव बन गयें।
साहिब मेरा नीत नवाँ सदा सदा दातार.................

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