एक बार पार्वती जी ने भगवान शिवजी से श्री हरि की आराधना के बारे में पूछा तो भगवान शिव ने उनको भगवान श्री विष्णु की श्रेष्ठ आराधना, नित्य-नैमित्तिक कृत्य तथा भगवत्भक्तों की पूजा का वर्णन किया। जिसे सुन कर पार्वती जी ने कहा - नाथ ! आपने उत्तम वैष्णव धर्म का भलीभाँति वर्णन किया। वास्तव में परमात्मा श्री विष्णु का स्वरूप गोपनीय से भी अत्यन्त गोपनीय है। सर्वदेव वन्दित महेश्वर ! मैं आपके प्रसाद से धन्य और कृतकृत्य हो गयी। अब मैं भी सनातन देव श्री हरि का पूजन करूँगी।
श्री महादेव जी बोले - देवी ! बहुत अच्छा, बहुत अच्छा ! तुम सम्पूर्ण इन्द्रियों के स्वामी भगवान लक्ष्मीपति का पूजन अवश्य करो। भद्रे ! मैं तुम-जैसी वैष्णवी पत्नी को पाकर अपने को कृतकृत्य मानता हूँ।
वसिष्ठजी कहते है - तदनन्तर महादेव जी से उपदेशानुसार पार्वती जी प्रतिदिन श्रीविष्णुसहस्त्रनाम का पाठ करने के पश्चात भोजन करने लगीं। एक दिन परम मनोहर कैलास शिखर पर भगवान श्री विष्णु की आराधना करके भगवान शंकर ने पार्वतीदेवी को अपने साथ भोजन करने के लिये बुलाया। तब पार्वति देवी ने कहा - "प्रभो ! मैं श्रीविष्णुसहस्त्रनाम का पाठ करने के पश्चात भोजन करूँगी, तब तक आप भोजन कर लें" यह सुन कर महादेव जी ने हँसते हुए कहा - "पार्वती ! तुम धन्य हो, पुण्यात्मा हो ; क्योकि भगवान श्रीविष्णु में तुम्हारी भक्ति है। देवि ! भाग्य के बिना भगवान श्रीविष्णु की भक्ति प्राप्त होना बहुत कठिन है। सुमुखि ! मैं तो "राम ! राम ! राम !" इस प्रकार जप करते हुये परम मनोहर श्रीराम नाम में ही निरन्तर रमण किया करता हूँ । राम-नाम सम्पूर्ण सहस्त्रनाम के समान है। पार्वती ! रकारादि जितने नाम हैं, उन्हें सुनकर रामनाम ही आशंका से मेरा मन प्रसन्न हो जाता है।
श्री महादेव जी बोले - देवी ! बहुत अच्छा, बहुत अच्छा ! तुम सम्पूर्ण इन्द्रियों के स्वामी भगवान लक्ष्मीपति का पूजन अवश्य करो। भद्रे ! मैं तुम-जैसी वैष्णवी पत्नी को पाकर अपने को कृतकृत्य मानता हूँ।
वसिष्ठजी कहते है - तदनन्तर महादेव जी से उपदेशानुसार पार्वती जी प्रतिदिन श्रीविष्णुसहस्त्रनाम का पाठ करने के पश्चात भोजन करने लगीं। एक दिन परम मनोहर कैलास शिखर पर भगवान श्री विष्णु की आराधना करके भगवान शंकर ने पार्वतीदेवी को अपने साथ भोजन करने के लिये बुलाया। तब पार्वति देवी ने कहा - "प्रभो ! मैं श्रीविष्णुसहस्त्रनाम का पाठ करने के पश्चात भोजन करूँगी, तब तक आप भोजन कर लें" यह सुन कर महादेव जी ने हँसते हुए कहा - "पार्वती ! तुम धन्य हो, पुण्यात्मा हो ; क्योकि भगवान श्रीविष्णु में तुम्हारी भक्ति है। देवि ! भाग्य के बिना भगवान श्रीविष्णु की भक्ति प्राप्त होना बहुत कठिन है। सुमुखि ! मैं तो "राम ! राम ! राम !" इस प्रकार जप करते हुये परम मनोहर श्रीराम नाम में ही निरन्तर रमण किया करता हूँ । राम-नाम सम्पूर्ण सहस्त्रनाम के समान है। पार्वती ! रकारादि जितने नाम हैं, उन्हें सुनकर रामनाम ही आशंका से मेरा मन प्रसन्न हो जाता है।
श्रीराम राम रामेति रमे रामे मनोरमे । सहस्त्रनाम ततुल्यं रामनाम वरानने ॥
रकारादीनि नामानि श्रृण्वतो म्म पार्वति । मनः प्रसप्रतां याति रामनामाभिशंकया ॥ (२८१ । २१-२२)
अतः महादेवि ! तुम राम-नाम का उच्चारण करके इस समय मेरे साथ भोजन करों ।" यह सुन कर पार्वती जी ने राम-नाम का उच्चारण करके भगवान शंकर के साथ बैठकर भोजन किया। इसके बाद उन्होने प्रसन्नचित होकर पूछा - ‘ देवेश्वर ! आपने राम-नाम को सम्पूर्ण सहस्त्रनाम के तुल्य बतलाया है यह सुन कर राम-नाम में मेरी बडी भक्ति हो गयी हैं अतः भगवान श्री राम के यदि और भी नाम हों तो बताइयें।’
श्री महादेव जी बोले - "पार्वती ! सुनो, मैं श्रीरामचन्द्र जी के नामों का वर्णन करता हूँ। लौकिक और वैदिक जितने भी शब्द हैं, वे सब श्रीरामचन्द्रजी के ही नाम हैं। किन्तु सहस्त्रनाम उन सबमें अधिक है और उन सहस्त्रनामों में भी श्रीराम के एक सौ आठ नामों की प्रधानता अधिक है। श्रीविष्णु का एक-एक नाम ही सब वेदों से अधिक माना गया है। वैसे ही एक हजार नामों के समान अकेला श्रीराम-नाम माना गया है। पार्वती ! जो सम्पूर्ण मन्त्रों और समस्त वेदों का जप करता है, उसकी अपेक्षा कोटिगुना पुण्य केवल राम-नाम से उपलब्ध होता है।"
[{( स्रोत - पद्मपुराण - उत्तरखण्ड, अध्याय २९१ (श्रीराम-नाम महिमा और श्रीरामचन्द्रजी के १०८ नाम का माहात्म्य )}]
यही नाम अगर गुरुदेव से गुरुमन्त्र के रूप में मिल जाये तो फिर उसकी बराबरी कोई नही कर सकता........
bahute anand mayi blog he apka apko sadho sadho
जवाब देंहटाएंhariom g
जवाब देंहटाएंaapke dawra jo Bapu g ye sewa karwa rahe hai bagwan kare ye sabi sadhko tak phauche,aur naye sadhak be sewa me lag jaye,meri aur se aapko sadhuwad.
goyal.om@gmail.com
amit goyal,haryana