कार्तिक मास के अन्य महत्वपूर्ण नियम - १
कार्तिकेय जी बोले - पिताजी ! अन्य धर्मों का भी वर्णन कीजिये, जिनका अनुष्ठान करने से मनुष्य अपने समस्त पाप धोकर देवता बन जाता है।
महादेव जी ने कहा - बेटा ! कार्तिक मास को उपस्थित देख जो मनुष्य दूसरे का अन्न त्याग देता है, वह प्रतिदिन कृच्छव्रत का फल प्राप्त करता है। कार्तिक में तेल, मधु, काँसे के बर्तन में भोजन और मैथुन का विशेष रूप से परित्याग करना चाहिये। एक बार भी मांस भक्षण करने से मनुष्य राक्षस की योनि में जन्म पाता है और साठ हजार वर्षों तक विष्ठा में डाल कर सडाया जाता है। उस से छुटकारा पाने पर वह पापी विष्ठा खानेवाला ग्राम-शूकर होता है। कार्तिक मास में शास्त्रविहित भोजन का नियम करने पर अवश्य ही मोक्ष प्राप्त होता है। भगवान विष्णु का परमधाम ही मोक्ष है। कार्तिक के समान कोई मास नहीं है, श्रीविष्णु से बढकर कोई देवता नहीं है, सत्य के समान सदाचार, सत्युग के समान युग, रसना के तुल्य, तृप्ति का साधन, दान के सदृश सुख, धर्म के समान मित्र और नेत्र के समान कोई ज्योति नही है।
स्नान करनेवाले पुरुषों के लिये समुद्र्गामिनी पवित्र नदी प्रायः दुर्लभ होती है। कुल के अनुरूप उत्तम शीलवाली कन्या, कुलीन और शीलवान दम्पति, जन्मदायिनी माता, विशेषतः पिता, साधु पुरुषों के सम्मान का अवसर, धार्मिक पुत्र, द्वारिका का निवास, भगवान श्रीकृष्ण का दर्शन, गोमती का स्नान और कार्तिक का व्रत - ये सब मनुष्य के लिये प्रायः दुर्लभ है। चन्द्रमा और सूर्य के ग्रहण काल में ब्राह्मणों को पृथ्वीदान करने से जिस फल की प्राप्ति होती है, वह कार्तिक में भूमि पर शयन करने वाले पुरुष को स्वतः प्राप्त हो जाता है। ब्राह्मण-दम्पति को भोजन कराये, चन्दन आदि से उनकी पूजा करे। ओढने के साथ ही बिछौना भी दे। तुम्हें कार्तिक मास में जूते और छाते का भी दान करना चाहिये। कार्तिक मास में जो मनुष्य प्रतिदिन पत्तल में भोजन करता है, वह चौदह इन्द्रों की आयुपर्यन्त कभी दुर्गति में नहीं पडता। उसे सम्पूर्ण कामनाओं तथा समस्त तीर्थों का फल प्राप्त होता है। पलाश के पत्ते पर भोजन करने से मनुष्य कभी नरक नही देखता; किन्तु वह पलाश के बिचले पत्र का अवश्य त्याग कर दे।
स्रोत - पद्मपुराण, उत्तरखण्ड, अध्याय - ११९-१२०
कार्तिकेय जी बोले - पिताजी ! अन्य धर्मों का भी वर्णन कीजिये, जिनका अनुष्ठान करने से मनुष्य अपने समस्त पाप धोकर देवता बन जाता है।
महादेव जी ने कहा - बेटा ! कार्तिक मास को उपस्थित देख जो मनुष्य दूसरे का अन्न त्याग देता है, वह प्रतिदिन कृच्छव्रत का फल प्राप्त करता है। कार्तिक में तेल, मधु, काँसे के बर्तन में भोजन और मैथुन का विशेष रूप से परित्याग करना चाहिये। एक बार भी मांस भक्षण करने से मनुष्य राक्षस की योनि में जन्म पाता है और साठ हजार वर्षों तक विष्ठा में डाल कर सडाया जाता है। उस से छुटकारा पाने पर वह पापी विष्ठा खानेवाला ग्राम-शूकर होता है। कार्तिक मास में शास्त्रविहित भोजन का नियम करने पर अवश्य ही मोक्ष प्राप्त होता है। भगवान विष्णु का परमधाम ही मोक्ष है। कार्तिक के समान कोई मास नहीं है, श्रीविष्णु से बढकर कोई देवता नहीं है, सत्य के समान सदाचार, सत्युग के समान युग, रसना के तुल्य, तृप्ति का साधन, दान के सदृश सुख, धर्म के समान मित्र और नेत्र के समान कोई ज्योति नही है।
स्नान करनेवाले पुरुषों के लिये समुद्र्गामिनी पवित्र नदी प्रायः दुर्लभ होती है। कुल के अनुरूप उत्तम शीलवाली कन्या, कुलीन और शीलवान दम्पति, जन्मदायिनी माता, विशेषतः पिता, साधु पुरुषों के सम्मान का अवसर, धार्मिक पुत्र, द्वारिका का निवास, भगवान श्रीकृष्ण का दर्शन, गोमती का स्नान और कार्तिक का व्रत - ये सब मनुष्य के लिये प्रायः दुर्लभ है। चन्द्रमा और सूर्य के ग्रहण काल में ब्राह्मणों को पृथ्वीदान करने से जिस फल की प्राप्ति होती है, वह कार्तिक में भूमि पर शयन करने वाले पुरुष को स्वतः प्राप्त हो जाता है। ब्राह्मण-दम्पति को भोजन कराये, चन्दन आदि से उनकी पूजा करे। ओढने के साथ ही बिछौना भी दे। तुम्हें कार्तिक मास में जूते और छाते का भी दान करना चाहिये। कार्तिक मास में जो मनुष्य प्रतिदिन पत्तल में भोजन करता है, वह चौदह इन्द्रों की आयुपर्यन्त कभी दुर्गति में नहीं पडता। उसे सम्पूर्ण कामनाओं तथा समस्त तीर्थों का फल प्राप्त होता है। पलाश के पत्ते पर भोजन करने से मनुष्य कभी नरक नही देखता; किन्तु वह पलाश के बिचले पत्र का अवश्य त्याग कर दे।
स्रोत - पद्मपुराण, उत्तरखण्ड, अध्याय - ११९-१२०
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